Thursday, 7 May 2020
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स्वच्छता की आदत-मो. सदाब आलम
स्वच्छता की आदत
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आज से लगभग 5 साल पहले जब मैं एक शिक्षक के पद पर एक प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत हुआ तो मेरी नियुक्ति एक ऐसे विद्यालय में हुई जहाँ शिक्षा के साथ-साथ स्वच्छता की भी बहुत अधिक आवश्यकता थी। क्योंकि मेरे विद्यालय में अधिकांशतः बच्चे अनुसूचित जाति से संबंधित हैं। शिक्षा के साथ-साथ इन बच्चों को स्वच्छता और सफाई के लिए जागरूक करना और इनमें स्वच्छता और सफाई की आदत को विकसित करने की भी ज्यादा जरूरत थी
इसलिए मैंने इस दिशा में बच्चों को प्रेरित करने के लिए और स्वच्छता का महत्व बताने के लिए बहुत सारे क्रिया-कलाप कर उन्हें समझाया। साफ हाथों में जादू है को क्रिया-कलाप के द्वारा समझाया। विद्यालय प्रबंधन के साथ मिलकर और विद्यार्थियों के सहयोग से साबुन बैंक की स्थापना की। मध्यान्ह भोजन से पहले बच्चों को मैं खुद साबुन देता और बारी-बारी से नल पर हाथ धुलवाता। उन्हें कम से कम 20 सेकंड तक अच्छी तरह हाथ धोने को बताता। शुरू में कुछ बच्चे हाथ धोने पर लापरवाही करते जो मेरी नजरों से बच कर बिना हाथ धोए ही मध्याह्न भोजन करने की कोशिश करते। मेरी कुछ सख्ती और कठोर निगरानी लगातार जारी रही और उस दिन और आज का दिन अब बच्चे विद्यालय में ही नहीं घर पर भी बिना हाथ धोए नहीं खाते। कभी-कभी तो विद्यालय में साबुन देने में देर हो जाए तो ये बच्चे नल पर देर तक साबुन के लिए इंतजार करते रहते।
यह सब संभव हो पाया इन नन्हे बच्चों में आदत डालवाने पर। कहा भी जाता है कि अगर किसी काम की आदत बन जाए तो वह बहुत दिनों तक चलती है यानी जल्दी खत्म नहीं होता। हर बच्चों में अच्छी आदतों को विकसित करना हम शिक्षकों का कर्तव्य भी है।
बच्चों को मध्याह्न भोजन से पहले और शौच के बाद नियमित रूप से हाथ धुलवाने की व्यवस्था और उसकी आदत डलवाने के साथ-साथ मैंने अपने विद्यालय के कार्यालय का एक कोना स्वच्छता कोना के रूप में विकसित किया। इस कोने में पेंटर द्वारा बड़े-बड़े अक्षरों में "स्वच्छता कोना" लिखवाया जहाँ पर ऐनक, कंघी, नाखून काटने वाला, तौलिया इत्यादि की व्यवस्था विद्यालय प्रशासन के सहयोग से करवाया। शुरू-शुरू में कुछ बच्चे अपने बाल संवार कर जो घर से विद्यालय नहीं आते उन्हें कंघी देकर बाल संवरवाता। जिनके नाखून बड़े होते उनके नाखून कटवाता लेकिन अब तो इन सभी चीजों की बच्चों को आदत लग गई। अब वे खुद घर से ही यह सब करके आते हैं। इन सबके अलावा विद्यालय में फर्स्ट एड बॉक्स और कुछ जरूरी दवाईयों की भी व्यवस्था करवाई है।
बच्चों में स्वच्छता और सफाई निरंतरता के लिए शुरू में थोड़ी निगरानी और सख्ती के बाद विद्यालय के बच्चों में इसकी आदत पड़ गई। अब इन्हें स्वच्छता और सफाई के लिए न तो मुझे प्रेरित करना पड़ता है और न ही किसी तरह का दबाव देना पड़ता है। अब बच्चे खुद ही इन आदतों को अपना लिए हैं। यह देख कर बहुत अच्छा लगता है कि स्वच्छता और सफाई की बच्चों में अच्छी आदत विकसित हो गई।
अक्सर विद्यालयों में देखा गया है कि बच्चे प्रायः आकर कहते हैं- सर/मैडम! मेरे पेट में दर्द है लेकिन मेरे विद्यालय में इस तरह की शिकायत बहुत ही कम आती है या यूं कहें कि नहीं के बराबर। ऐसी शिकायतें नहीं आने का कारण शायद विद्यालय के बच्चों में स्वच्छता और सफाई की अच्छी आदतों से ही संभव हुआ है।
मो. सदाब आलम
शिक्षक - प्राथमिक विद्यालय बनौली खुर्द हरिजन
सदस्य - TEACHERS OF BIHAR
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सराहनीय कार्य।
ReplyDeleteIt's great...
ReplyDelete“Congratulations and best wishes for your next adventure!”
Regards,
Md Faiz Alam
Bahot khub behtar karya aur behtar karya. Karte rahein aap it's very great mastarji & you great master ji Allah aap ko aur tarakki de
ReplyDeleteSarahaniy work, well done, keep it
ReplyDeleteबहुत हीं अच्छा कार्य!
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