Thursday, 7 May 2020
New
महात्मा बुद्ध : मानव नहीं महामानव--देव कांत मिश्र
महात्मा बुद्ध : मानव नहीं महामानव
*****************************
छठी शताब्दी ई.पू. में धार्मिक क्रांति के फलस्वरूप इतिहास के रंगमंच पर ऐसे महान व्यक्तित्व का आविर्भाव हुआ जिन्होंने अपनी कुशल प्रतिभा से वैदिक धर्म में व्याप्त बुराईयों को दूर किया। जाति व्यवस्था को जन्म के आधार पर न मानकर अपनी धार्मिक व्यवस्था से मानव समाज में समता के सिद्धांत को क्रियान्वित करते हुए नैतिक मूल्यों पर बल देकर नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। इन धर्म सुधारकों में महात्मा बुद्ध का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इन्होंने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को सरल एवं सुग्राह्य बनाकर उसे व्यापक धर्म का रूप प्रदान किया। तो चलिए उनके बारे में कुछ जानते हैं--
महात्मा बुद्ध का जीवन जन्म नेपाल की तराई स्थित कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी नामक स्थान में 563 ई.पू. में हुआ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन तथा माता का नाम माया था। बुद्ध के बाल्यकाल का नाम सिद्धार्थ था। ऐसी जनश्रुति है कि जन्म के सातवें दिन ही इनकी माँ दुनियाँ छोड़ गईं। अतः इनका पालन-पोषण उसकी मौसी व विमाता प्रजापति गौतमी ने किया।
सिद्धार्थ बचपन से ही चिंतनशील तथा कोमल स्वभाव के राजकुमार थे। वे संसार के दु:खों से दु:खित होते थे तथा दुःख का कारण जानने के लिए उत्सुक रहते थे। जब वे 16 वर्ष के हुए तो उनका विवाह राम ग्राम के कोलिय गणराज्य की राजकुमारी यशोधरा नामक रूपवती एवं सर्वगुण संपन्न एक कन्या से कर दिया गया।लगभग 12 वर्ष तक गृहस्थ जीवन में रहे तथा 28 वर्ष की आयु में उन्हें राहुल नामक एक पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र जन्म का समाचार सुनकर उन्होंने कहा "आज मेरे बंधन की श्रृंखला में एक कड़ी और जुड़ गई"। यद्यपि उन्हें सारे सुख प्राप्त थे परंतु शांति प्राप्त नहीं थी। अतः एक रात वे अपनी पत्नी तथा पुत्र को सोते हुए छोड़कर ज्ञान की खोज में घर से बाहर निकल पड़े। इनके जीवन की इस घटना को महाभिनिष्क्रमण के नाम से जाना जाता है। गृह त्याग के पश्चात जब घूमते- फिरते उरुवेला नामक स्थान पर पहुँचे तो यहाँ के रमणीय प्राकृतिक दृश्यों ने उन्हें बहुत प्रभावित किया और चिंतन की ओर अधिक अग्रसर किया। यही कारण है कि बुद्ध का प्राकृतिक पर्यावरण के प्रति दृष्टिकोण भी सकारात्मक था तभी तो वे कहते थे- "मनुष्य को चाहिए कि प्रकृति में पेड़-पौधे एवं तमाम जीव-जंतुओं के साथ नदी तालाब के जल को भी स्वच्छ रखें और उनकी रक्षा करें, तभी मनुष्य स्वयं भी स्वस्थ रह पाएगा"। ज्ञान की खोज में इधर-उधर भटकने के पश्चात पीपल वृक्ष के नीचे बैशाख मास पूर्णिमा को सच्चे ज्ञान का प्रकाश मिला। उनके जीवन काल की इस घटना को सम्बोधि ( Great Enlightenment) कहते हैं। वह पीपल वृक्ष 'बोधिवृक्ष' कहलाया। इसके बाद वे सारनाथ पहुँचे तथा सबसे पहले पाँच ब्राह्मणों को उपदेश दिया। इस घटना को धर्म-चक्र प्रवर्तन कहते हैं। धीरे-धीरे उनका यश चारों ओर फैलने लगा। शिष्यों की संख्या भी बढ़ने लगी। अपने धर्म का प्रचार करने हेतु चारों तरफ शिष्यों को भेजा और एक प्रचारक संघ की स्थापना की। अपने प्रथम व्याख्यान में ही इन्होंने शिष्यों को चार आर्य सत्य के बारे में बताया जो इस प्रकार है:
1. दु:ख ही दुःख
2. दुःख का कारण है
3. दुःख निरोध
4. दुःख निरोध मार्ग ।
महात्मा बुद्ध के अनुसार- शारीरिक यातनाओं अथवा तपस्या द्वारा निर्वाण प्राप्त नहीं किया जा सकता। इस हेतु इन्होंने अष्टांगिक मार्ग (Eight fold path) का प्रतिपादन किया। इसके अतिरिक्त अपने नैतिक उपदेशों में दस शील को उन्होंने आवश्यक बताए जिनमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, नृत्य गान का त्याग, सुगंधादि चीजों का परित्याग, असमय भोजन का त्याग, कोमल बिस्तर का त्याग तथा धन का त्याग शामिल हैं। इसके साथ-साथ बुद्ध ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 'सुत्तनिपात' में गायों की सुरक्षा पर बल दिया। कुशीनगर में बैशाख पूर्णिमा के दिन ही इन्होंने अपने जीवन लीला समाप्त की। यानि यूँ कहें- जन्म, ज्ञानप्राप्ति व निधन(महापरिनिर्वाण) बैशाख पूर्णिमा के ही दिन। सच में, ऐसे महामानव से, जो भी इनके सम्पर्क में आए, प्रभावित हुए बिना न रह सके। ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी महामानव को शत् शत् नमन।
देव कांत मिश्र
मध्य विद्यालय धवलपुरा
सुलतानगंज, भागलपुर
About ToB Team(Vijay)
Teachers of Bihar is a vibrant platform for all who has real concern for quality education. It intends to provide ample scope and opportunity to each and every concern, not only to explore the educational initiative, interventions and innovations but also to contribute with confidence and compliment. It is an initiative to bring together the students, teachers, teacher educators, educational administrators and planners, educationist under one domain for wide range of interactive discourse, discussion, idea generation, easy sharing and effective implementation of good practices and policies with smooth access.
ToBBlog
Labels:
Blogs,
Teachers of Bihar,
Teachers of Bihar Blogs,
ToBBlog
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
ज्ञानवर्धक जानकारी।धन्यवाद।।
ReplyDeleteअतिउत्तम आलेख!
ReplyDeleteज्ञानवर्धक लेख👌👌✅✍️
ReplyDeleteअहिंसा के सच्चे दूत थे-महामानव महात्मा बुद्ध। सुखद ,सफल एवं शांतिपूर्ण जीवन के लिए वे अनुकरणीय हैंउनका जीवन दर्शन विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त करता हैं। उन्हे शत् शत् नमन। - पंकज कुमार ।
ReplyDeleteThe thoughts covers what one would expect in such a study: the world into which Gautama was born, his quest, enlightenment, the development of the sangha, his relationship with the world and his legacy. He presents Gautama as a real person and grapples with the question of his humanity – and what it was that made him more than human?
ReplyDeleteIts really nice article's to stated by our dearest writer Mr. Dev Kant Mishra.
Well done Dev Jee, keep this fire on..Regards Chandra