Thursday, 7 May 2020
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शिक्षाशास्त्री रविन्द्र नाथ टैगोर--रवि रौशन कुमार
शिक्षाशास्त्री रविद्र नाथ टैगोर
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विश्व बंधुत्व के प्रतीक गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे कवि, संगीतकार, चित्रकार होने के साथ-साथ एक प्रख्यात शिक्षाशास्त्री भी थे। टैगोर ने शिक्षा को विकास की एक प्रक्रिया माना है; और शिक्षा के व्यापक अर्थ को स्वीकार किया है। टैगोर का विचार है कि शिक्षा विकास का ऐसा साधन है जिससे व्यक्ति की मानसिक, भावात्मक, सामाजिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। इस प्रकार शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति की आंतरिक क्षमताएँ बाह्य रूप में अभिव्यक्त होती है।
टैगोर के शिक्षा दर्शन में तीन बातें प्रमुख थी:-
(1) स्वतंत्रता (2) रचनात्मकता आत्माभिव्यक्ति एवं (3) प्रकृति तथा मनुष्य के बीच रचनात्मक संबंध। उन्होंने अपने अनुभवों से शिक्षा के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया। विश्व भारती की स्थापना कर उन्होंने व्यावहारिक शिक्षाशास्त्री होने का परिचय दिया। टैगोर रहस्यवादी , आत्मवादी, प्रकृतिवादी एवं उच्च श्रेणी के मानवतावादी (philanthropist) थे। उनके हृदय में समाज के लिए प्रेम व दया की भावना थी। वे समाज का उत्थान करना चाहते थे ; अतीत के भारत की आत्मा को आधुनिक भारत की आत्मा में देखना चाहते थे। आध्यात्मिकता की बात करके उन्होंने भारत के अतीत का सम्मान किया है और उसी पर वर्तमान को स्थापित करने का प्रयत्न किया। वे अंतर्राष्ट्रीय समझ विकसित करने के लिए बालकों को अंग्रेजी अथवा अन्य विदेशी भाषा के अध्ययन के भी समर्थक थे परंतु उन्होंने शिक्षा के माध्यम के रूप में विदेशी भाषा को अस्वीकार किया।
शांति निकेतन के रूप में उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे तत्कालीन शिक्षा प्रणाली से अत्यंत असंतुष्ट थे। उन्होंने शिक्षा के कुछ सिद्धांतों का प्रतिपादन किया और बाद में शांति-निकेतन की स्थापना कर इन सिद्धांतों की स्थापना कर इसे व्यावहारिक रूप प्रदान किया। इस क्रम में विश्व भारती उनकी शैक्षिक विचारधारा का ही व्यावहारिक रूप है।
टैगोर ने अपने शांति-निकेतन में पाश्चात्य शिक्षा का अन्धानुकरण नहीं किया और न ही अपने विद्यालय को किसी पश्चिमी शिक्षा प्रणाली पर आधारित किया। उन्होंने शिक्षा सिद्धांतों की खोज स्वयं की। उनके शैक्षिक सिद्धांत उनके स्वयं के अनुभव पर आधारित थे। उनकी तर्क शक्ति इतनी प्रबल थी कि वे अपनी बुद्धि के बल पर किसी भी विषय के तह में बैठ सकते थे। किसी पदार्थ की मूल प्रकृति एवं उसके वास्तविक स्वरूप का पता लगा लेने में सिद्धहस्त थे। उनकी प्रखर बुद्धि का ही कमाल था कि जिस समय भारत शिक्षा के क्षेत्र में पश्चिम का अनुसरण करने में लगा था उसी समय रवींद्र नाथ टैगोर आधुनिक जीवन के अनुकूल एक बेहतर शिक्षा प्रणाली की खोज कर रहे थे। जिस समय भारत के विश्वविद्यालयों में पश्चिमी सिद्धांतों को श्रेष्ठ एवं दिव्य मानकर अपनाया जा रहा था उसी समय वे शिक्षा के नवीन सिद्धांतों का पता लगाने में व्यस्त थे।
मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा की बात करके, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए शिक्षा की बात करके तथा अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम पर जोर देकर टैगोर अपने समय की शिक्षा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन करना चाहते थे। उन्होंने 'तोता' नामक अपनी कहानी के माध्यम से तत्कालीन शिक्षा प्रणाली में व्याप्त खामियों को उजागर करते हुए करारा व्यंग्य किया है। आज भी उनकी यह कहानी प्रासंगिक है।
रवि रौशन कुमार
राजकीय उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय माधोपट्टी
प्रखंड-केवटी, जिला-दरभंगा (बिहार)
ईमेल - info.raviraushan@gmail.com
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अत्यंत ज्ञानवर्धक जानकारी। धन्यवाद।।
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteअतिउत्तम आलेख!
ReplyDeleteGreat ✅✅✍️✍️��������
ReplyDeleteGood
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