Wednesday, 3 June 2020
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बच्चे जरूर खेलें-चन्द्रशेखर प्रसाद साहु
बच्चे जरूर खेलें
स्थानांतरण के बाद मैंने जिस विद्यालय में योगदान किया वह एक बड़ी बस्ती के मध्य सघन आबादी में अवस्थित था। जितनी जगह में विद्यालय का भवन निर्मित था उतनी ही जमीन भी थी। शेष चारों ओर निजी आवास बने हुए थे। विद्यालय का निकास एक गली में खुलता था। विद्यालय के बच्चों को खेलने-कूदने के लिए जरा सी भी खाली भूमि उपलब्ध नहीं थी परंतु बच्चे जो सबसे अधिक पसंद करते हैं, वह है- खेलना।खेलना बच्चों का जन्मजात स्वभाव है। शैशवावस्था हो या बाल्यावस्था, खेलना उनकी पहली पसंद होती है। उस विद्यालय में बच्चों को बाहर खेलने की जगह तो थी नहीं, वे मन-मसोस कर रह जाते थे। उनकी यह बलवती इच्छा रहती थी कि पढ़ाई के साथ-साथ खेल-गतिविधि का मनोरंजन भी हो। हमारे विद्यालय में एक शारीरिक प्रशिक्षित शिक्षक पदस्थापित थे। वह भी संकीर्ण जगह में विद्यालय भवन निर्माण को लेकर अफसोस करते थे। वह बच्चों को आउटडोर गेम खेलाना चाहते थे परंतु जगह अभाव के कारण लाचार थे।
बच्चे विनोदी प्रकृति के होते हैं। उछलना-कूदना उनका जन्मजात स्वभाव है। अतः खेलना स्कूली बच्चों के लिए नितांत आवश्यक है। इससे बच्चों का मनोरंजन तो होता ही है साथ-साथ उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह बच्चों को ताजगी एवं स्फूर्ति से भर देता है। इससे बच्चों में टीम भावना का विकास होता है। उनमें एकाग्रता, सजगता, धैर्य, एकता, सहनशीलता, अनुशासन, सदभाव आदि भावना का विकास करने के लिए खेल एक बेहतरीन माध्यम है परंतु हमारे विद्यालय में खेलने के लिए जगह तो थी नहीं और बच्चों का खेलना भी अनिवार्य था इसलिए हमने उन्हें इंडोर गेम खेलाने की योजना बनाई।
हमने क्रिकेट को इंडोर गेम के रूप में खेलाने के लिए बच्चों को दो टीम में बाँटकर क्रिकेट खेल से जुड़े शब्दावली को एक-एक पर्ची पर लिखकर एक बॉक्स में डाल दिया। प्रत्येक टीम बॉक्स में से एक-एक पर्ची निकाल कर अपना-अपना स्कोर बनाया। इस खेल में बच्चों को खूब मजा आया।
बच्चों को डॉम-डिस्क का भी खेल खेलाया गया। इसके लिए बाजार से बल्ब का फाइबर का कटोरीनुमा कुछ होल्डर कवर लाया गया। इसमें कुछ को डिस्क स्वरूप (खुला मुँह) में तथा कुछ को डॉम स्वरूप (ढककर) में रखकर एक टीम को उन्हें डिस्क रूप में और दूसरा टीम को डॉम के रूप में उलटने-पलटने के लिए कहा गया। इस खेल में भी उन्हें बहुत आनंद मिला।
बच्चों को म्यूजिकल चेयर का भी खेल खेलाया गया। म्यूजिक अचानक बंद होने पर कुर्सी पर बैठने को लेकर उत्पन्न होड़ में उन्हें खूब मजा आया आता है। वे खूब खिलखिलाए और हँसे। रस्सी कूद में भी बच्चों को खूब मजा आया। रस्सियों को घुमाते हुए उछलने में शारीरिक कसरत के साथ-साथ उनमें एकाग्रता एवं सजगता की भावना का भी विकास हुआ।
पास बॉल में भी उन्हें बहुत आनंद आया। बारी-बारी से एक दूसरे के पास बॉल फेंकने और उसे पकड़ने में उन्हें खूब मजा आया। इसके अतिरिक्त लूडो, कैरम बोर्ड शतरंज आदि भी खेलने की सुविधा दी गई। बच्चे इंडोर गेम में इतनी रुचि लेने लगे कि उन्हें अपने विद्यालय में खेल का मैदान नहीं होने का अब मलाल नहीं रहा।
चंद्रशेखर प्रसाद साहु
प्रधानाध्यापक
कन्या मध्य विद्यालय कुटुंबा
प्रखंड-कुटुंबा, औरंगाबाद
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अनुकरणीय लेख, कई विद्यालयों में ऐसी समस्या है आपने उसका निराकरण किया बहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसीमित संसाधन एवं सीमित जगह में ये सभी करना काफी संघर्षपूर्ण होता है।आप जैसे शिक्षक के मार्गदर्शन में ही संभव है👌👌👌💐💐💐
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteअनुकरणीय। आप जैसे योग्य,लगनशील और अनुभवी शिक्षक की राह में कुछ भी बाधक नहीं हो सकता।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteकभी कभी परिस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं होती हैं और हमें कुछ महत्वपूर्ण कार्य उन्हीं परिस्थितियों में करने की चुनौती होती है। एक सुयोग्य शिक्षक कभी भी परिस्थितियों का रोना नहीं रोता। हालांकि कि इनडोर गेम्स कभी भी आउटडोर गेम्स का विकल्प नहीं हो सकते, परंतु मनोरंजन एवं कुछ हद तक व्यायाम के मामले में दोनों ही उपयोगी हैं। अतः यदि आउटडोर गेम्स के लिए स्थान का अभाव था तो इनडोर गेम्स का उपयोग कर एक हद तक बच्चों के खेलने-कूदने के लिए प्रयास किया गया तो यह बिल्कुल सही एवं अनुकरणीय प्रयास है। एक सामान्य परंतु महत्वपूर्ण समस्या पर उपयोगी आलेख हेतु बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं.....
ReplyDeleteजी। बहुत आभार।
ReplyDeleteBht achha sr g
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