Tuesday, 2 June 2020
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शारीरिक शिक्षा की उपयोगिता-राकेश कुमार
शारीरिक शिक्षा की उपयोगिता
जैसा कि हमें ज्ञात है कि शारीरिक शिक्षा का ध्येय शिक्षा प्रबंध एवं व्यक्ति का सर्वांगीण विकास है। वर्तमान में बदलते परिवेश एवं नित नए-नए स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से जिस तरह हमलोग वैश्विक स्तर पर रूबरू हो रहें जिससे आने वाले भविष्य को बचा कर रखना एक चुनौती बनती जा रही है। इन सबों में हमारी आधुनिक जीवनशैली कितना प्रभाव डालता है, यह एक सोचनीय यक्ष प्रश्न है? इन सबके बीच बच्चों के संदर्भ में शारीरिक शिक्षा का महत्व काफी बढ़ जाता है क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में हमें उन्हें कहना होगा कि तन स्वस्थ से मन स्वस्थ की ओर चलो।
ज्ञातव्य है कि शारीरिक शिक्षा मानव समुदाय के प्रारंभिक काल से हीं अस्तित्व में है। इसकी महत्ता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इसे उच्च प्राथमिक विद्यालय से हीं पाठ्यचर्या का अंग बनाया है जो मानवीय चेष्टा के माध्यम से व्यक्ति के अधिकतम शारीरिक क्षमता और उनसे सम्बद्ध सामाजिक, संवेदनात्मक और बौद्धिक वृद्धि के विकास पर केंद्रित करता है। इस विषय का प्राथमिक उद्देश्य अधिगमकर्ता में सम्पूर्ण स्वस्थता और इसे बनाये रखने की स्थायी इच्छा विकसित करना है। अभी के समय में स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है कि अंतरिक्ष युग व स्वचलिकरण युग के वर्तमान विश्व में हम सभी (मानव) अधिक से अधिक निष्क्रिय जीवन जीने लगे हैं। वे टहलने के बजाए सवारी करते हैं।खड़े होने के बजाए बैठते हैं। भागीदार होने के बजाए देखते हैं। इस प्रकार की निष्क्रियता या स्थानबद्ध जीवन मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इस प्रकार स्वस्थ जीवन के एक अंग के रूप में शारीरिक शिक्षा की बहुत जरूरत है।
ज्ञात हो कि शारीरिक शिक्षा, शिक्षा प्रक्रिया का एक अनिवार्य अंग है। इसके माध्यम से हम बच्चों को दैनिक जीवन में शारीरिक गतिविधि को सम्मिलित करना सिखाते हैं और वे सीखते हैं कि शारीरिक शिक्षा एक सक्रिय, स्वस्थ जीवन शैली व्यक्तिगत वृद्धि को पोषित करता है और उन्हें समुदाय की चुनौतियों का सामना करने में समर्थ बनाता है। नियमित शारीरिक शिक्षा स्वयं एवं दूसरों के प्रति सकारात्मक मनोवृति को प्रोत्साहित करता है। यह एक स्वस्थ अधिगम वातावरण सृजित करने में भी सहायता करता है।
वर्तमान समय में जैसा कि हम सभी देख रहें हैं- कोरोना बीमारी ने वैश्विक स्तर पर पूरी दुनियाँँ को एक चुनौती दे डाली है और आधुनिक जीवन शैली को एक कटघरे में खड़ा कर दिया है। उसने हमारे आधुनिक जीवनशैली के दुष्प्रभाव (कम होती जा रही रोग प्रतिरोधक क्षमता) पर जबरदस्त प्रहार किया है और पूरी दुनियाँ को अपने चपेट में ले लिया।
ऐसे समय में जहाँ तकनीक का बोलबाला है, हम हर चीज को इस नजरिये से देखना शुरू कर दिए हैं कि कम समय में हम कैसे अपने कार्य को पूरा कर लें। इन सबके बीच हमारी शारीरिक गतिविधि शिथिल होते जा रही है और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होते जा रहे हैं। इसलिए ऐसे समय में शारीरिक शिक्षा का महत्व बढ़ जाता है।
विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षक विद्यार्थियों को सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन शैली जारी रखने के बारे में शिक्षित कर सकते हैं। शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चे स्वस्थ जीवन के महत्व को समझ सकेंगे। अगर हम इसके दूसरे पहलू पर गौर करें तो स्पष्ट है कि शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व के सामाजिक, मानसिक और संवेदनात्मक पहलुओं पर भी केंद्रित करता है। छोटे बच्चों के लिए खेल अधिगम को एक मूल्यवान अनिवार्य घटक के रूप में जाना जा चुका है। जो विद्यार्थी नियमित रूप से शारीरिक शिक्षा में भाग लेते हैं वे समृद्ध स्मृति और अधिगम, बेहतर एकाग्रता और समृद्ध समस्या समाधान, क्षमताओं के विकास की ओर अग्रसर होते हैं।आधुनिक जीवन शैली बच्चों के शारीरिक गतिविधि पर व्यापक प्रभाव डाल रहा है।
भौतिक संरचनाओं के विकास हेतु हम प्राकृतिक संसाधनों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।आज एक सोचनीय प्रश्न है कि बच्चों के शारीरिक गतिविधि (खेल) हेतु स्थानों की घोर कमी होते जा रही है जिससे बच्चों की स्वाभाविक गतिविधियों पर व्यापक असर पड़ रहा है। इस हेतु हम सभी को मिलकर काम करना पड़ेगा ताकि बच्चों का स्वाभाविक विकास स्वतः विकसित हो क्योंकि हमारे जीवन में खासकर वर्तमान एवं आनेवाले भविष्य को ध्यान में रखकर शारीरिक शिक्षा के इस मानक को पूर्ण करना अतिआवश्यक हो गया है।
शारीरिक शिक्षा वह शिक्षा है जो बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व तथा उसकी शारीरिक प्रक्रियाओं द्वारा शरीर, मन एवं आत्मा के पूर्णरूपेण विकास हेतु दी जाती है। इसे स्थापित करने का प्रयास करना होगा ताकि हम अपने विद्यालय से आने वाले भविष्य हेतु एक मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ (बच्चा) भविष्य तैयार कर सकें जो आने वाले किसी भी चुनौतियों का डटकर सामना कर सके।
राकेश कुमार
शारीरिक शिक्षक
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर, पटना
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शारीरिक शिक्षा मन एवं शरीर दोनों को स्वस्थ रखती है बहुत बढ़िया आलेख🙏
ReplyDeleteधन्यवाद मैम
Deleteज्ञानवर्धक!
ReplyDeleteआभार सर
Deleteशारीरिक शिक्षा आरंभ काल से ही मुख्यधारा की शिक्षा का अभिन्न अंग है। प्राचीन काल के गुरुकुल में भी व्यायाम आदि को पर्याप्त महत्व देते हुए स्वास्थ रक्षा के उपाय बताए जाते थे। वर्तमान में तो इसकी आवश्यकता और भी अधिक हो गई है। एक शिक्षक के रूप में बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु हमें शारीरिक शिक्षा भी अवश्य देनी चाहिए ताकि बच्चों के स्वस्थ तन में स्वस्थ मन का विकास हो सके। अच्छे एवं प्रासंगिक आलेख हेतु बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं.....
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार सर
DeleteVery appreciable articl. As a teacher We must teach physical education. It will be better for children.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय श्री राकेश सर, आप जैसी खुबसूरत शख्शियत का ज्ञानवर्धक लाभ हम उठा चुके हैं,
ReplyDeleteआप एक लाभदायक नागरिक, ईमानदार अनुशासन के प्रतीक हैं,