Wednesday, 13 May 2020
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मैं शिक्षक कब बना-राकेश कुमार
मैं शिक्षक कब बना
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बात तो बहुत पुरानी है। माह दिसम्बर वर्ष 2006 जब मुझे शिक्षक नियुक्ति पत्र मिला और मैं शिक्षक के पद पर आसीन हुआ। मेरी नियुक्ति "शारीरिक शिक्षक" के पद पर हुई। शिक्षक बनने के पूर्व मैं एक निजी कंपनी में कार्यरत था। जब मैं शिक्षक बना, विद्यालय में योगदान किया तो हमारे प्रधान शिक्षक ने पूछा कि आप "शारीरिक" के अलावा और कौन सा विषय बच्चों को पढ़ा सकते हैं ? मैं कुछ देर शांत रहा क्योंकि इसके पूर्व शिक्षण का कोई अनुभव मुझे नही था लेकिन मुझे कोई निर्णय लेना था तो मैंने बोला सर "अंग्रेज़ी" पढ़ा दूँगा।
मैंने ये विषय इसलिए चुना की जब मैं "निजी कंपनी" में कार्यरत था तो "अंग्रेजी" मे काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता था क्योंकि मेरी शैक्षिक पृष्ठभूमि "सरकारी विद्यालय" हीं था तो मेरा मानना था कि सरकारी विद्यालय के बच्चे "अंग्रेजी" में कमजोर होते है।
मुझे याद है एक शिक्षक के रूप में अपनी पहली कक्षा वर्ग VII से शुरु की थी। वर्ग में जाते हीं पूछा कि अंग्रेजी का किताब पढ़ने किसको-किसको आता है? मुझे आश्चर्य हुआ की एकाध बच्चे ने हाथ उठाया। जिस बच्चे ने हाथ उठाया उसकी पढ़ने की क्षमता भी न के बराबर थी। इस संदर्भ के बाद मैंने कई स्तर से प्रयास किया कि कम से कम बच्चों को अंग्रेजी की किताब पढ़ने आ जाए लेकिन प्रयास नाकाफी साबित हो रहे थे। मैंने इस संदर्भ में अपने वरीय लोगों से चर्चा करता तो परामर्श नकारात्मक हीं होता था। उनके द्वारा बताए गए उपाय शायद शिक्षा के मानक के अनुरूप नहीं था।
समय दर समय बीतता गया। मैं भी आत्मसंतुष्टि के बिना कार्य करना सीख रहा था कि अचानक परिवर्तन हुआ। वर्ष 2018 में एक समाचार पत्र पढ़ रहा था कि मेरी नजर एक खबर पर आकर रुक गई वो खबर थी "टीचर्स ऑफ बिहार" की संकल्पना की उसमें जुड़ने का तरीका का भी जिक्र था लेकिन उस समय मैं सोशल मीडिया पर उतना सक्रिय नही था। मेरे शैक्षिक जीवन मे "टीचर्स ऑफ बिहार" ने यहीं से परिवर्तन लाना शुरू किया। मैं सोशल मीडिया का उपयोग हेतु सक्रिय हो गया और फेसबुक ग्रुप से जुड़ गया और इसपर होने वाली गतिविधियों को देखने लगा। यकीन मानिए मेरे लिए ये सब गतिविधियाँ एक सुखद रोचक अनुभव था, जिससे मैं अभी तक अनजान था।
अब मेरी कोशिश *टीचर्स ऑफ बिहार* के "फाउंडर" से जुड़ने की थी इस संदर्भ मे मैंने सोशल मीडिया की सहायता से उनसे संपर्क किया और उन्होंने मुझे मेरी रूचि के अनुसार एक विषय वस्तु पर एक आलेख लिखने को कहा। वो दिन था 15 दिसंबर 2019। मैंने वो आलेख लिखकर भेज दिया और विद्यालय चला गया। वो मेरा शैक्षिक कार्यकाल का प्रथम आलेख था। मैं पूरे दिन उस आलेख के बारे में हीं सोचता रहा कि "फाउंडर महोदय" को वो आलेख पसंद आएगा या नहीं और शाम में जब घर आया तो मन में नियंत्रित इच्छा अनियंत्रित हो गई और मैंने अपना मोबाइल निकाला और "फाउंडर महोदय" का संदेश देखा जिसमें लिखा हुआ था "welcome to team", मुझे अपार खुशी की अनुभूति हुई कि मैं "टीचर्स ऑफ बिहार द चेंज मेकर्स" का हिस्सा हूँ। मुझे ऐसा लगा कि मैं आज एक शिक्षक बन गया! इसके बाद मैं प्रत्येक दिन बच्चों के बीच टीचर्स ऑफ बिहार पर डाली गई गतिविधियों एवं "दिवस ज्ञान" की चर्चा करता और बच्चों को स्वयं आगे आने को प्रोत्साहित करता। मेरी यह सोच थी कि बच्चों को अधिक से अधिक क्रियाशील बनाना है और बहुत जल्द मुझे सुखद परिणाम मिलने लगे जिससे प्रोत्साहित होकर मैं भी प्रतिदिन कोई न कोई गतिविधि करता एवं करवाता।
यहाँ पर मैं एक बात का उल्लेख करना चाहता हूँ कि मुझे "टीचर्स ऑफ बिहार" के किसी भी सदस्य से प्रत्यक्षतः मिलने का मौका प्राप्त नहीं हुआ लेकिन फिर भी हमेशा ऐसा महसूस होता है कि हम एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। ये टीचर्स ऑफ बिहार का सबसे बड़ा गुण है।
कल की मीटिंग 9.4.2020 को हुई और टीचर्स ऑफ बिहार की और उसमें जो सोच (विषय) "स्कूल ऑन मोबाइल" ये मेरी नजर में अब तक कि सबसे उत्कृष्ट सोच है। एक ऐसी सोच जो आने वाले समय में देश-दुनियाँ में सरकारी विद्यालय के संदर्भ में मिसाल बन जाएगी।
धन्यवाद "टीचर्स ऑफ बिहार" का जिसने मुझे शिक्षक बनाने में मदद की। जिसने मेरी शिक्षण विधि को आसान किया। मैंने स्वयं कि अभिव्यक्ति को "मैं शिक्षक कब बना" ? नाम इसलिए दिया कि क्योंकि मेरा मानना है कि आपने पद कब धारण किया है वो महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि आप अपने कार्यों को आत्मसंतुष्टि के साथ आनंद उठाना कब शुरु किया है वो महत्वपूर्ण है। 🙏🙏🙏🙏
राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर (पटना)
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वास्तव में शिक्षण एक पेशा नहीं, बल्कि सेवा है। हमें सदैव एक अच्छे शिक्षक के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। हमें छात्रों को सिखाने के साथ-साथ स्वयं भी सदैव सीखने के लिए उत्सुक और उत्साहित रहना चाहिए तभी हम एक अच्छे शिक्षक के रूप में जाने जा सकते हैं। अच्छे आलेख हेतु बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं.....
ReplyDeleteआभार सर
Deleteअनुकरणीय एवं रचनात्मक लेखनी। धन्यवाद सर!
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत-बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबहुत अच्छे तरीके से आपने लिखा है सर।इस अच्छी रचना हेतु धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अनुभव लेखन
ReplyDelete👌👌
ReplyDeleteBahut sunder
ReplyDeleteआपके 12 वर्ष का अथक प्रयास सराहनीय रहा ।
ReplyDeleteशिक्षक बनना परम सौभाग्य की बात....आपका आलेख पढ़ते हुए मुझे अपनी योगदान तिथि भी याद आती रही !👏
ReplyDeleteदेवकांत भाई आपने मेरे मन की बात लिख डाली।मेरे शिक्षक जीवन की शुरुआत डगर केसाथ हुआ था।व्यक्ति को समय और कुछ अलग करने की ईच्छा अलग पहचान दे जाता है।आवश्यकता है सच्ची निष्ठा पूर्वक कर्तव्य पथ पर बिना रूके आगे बढ़ते रहने की।
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही चित्रण किया है।
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