ममतामयी करूणामयी दयामयी माता-विमल कुमार "विनोद" - Teachers of Bihar

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Sunday, 10 May 2020

ममतामयी करूणामयी दयामयी माता-विमल कुमार "विनोद"

ममतामयी करूणामयी दयामयी माता
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          विश्व में सृष्टि की उत्पत्ति नर (पुरुष) नारी(औरत) के साथ वैवाहिक संबंध में बंधने से हुई है। समाज में नारी के तीन रूप हैं- माता, पत्नी और बेटी। विश्व में नारी के तीनों ही रूप एक दूसरे से अन्योन्याश्रित रूप से जुड़े हुए हैं। तीनों की उत्पत्ति एक दूसरे का पूरक है। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व का बना रहना असंभव है।
          नारी का पहला रूप माता का है जो नौ माह तक अपने बच्चे को अपने गर्भ में धारण करके उसका लालन-पालन करती है। बहुत अरमान के साथ बीजावस्था, भ्रूणावस्था, गर्भावस्था, शैशवावस्था से लेकर जीवन भर अपने बच्चे का बड़ी अरमान के साथ पालन-पोषण करती है। हाय रे माता, तू तो दुनियाँ की अनमोल चीज हो, जैसे "तुझे न देखूँ तो चैन मुझे आता नहीं, एक तेरे सिवा मुझे कोई भाता नहीं"। "मेरी माँ तुम कितनी सुन्दर, कितनी प्यारी, कितनी भोली हो जो कि मेरे द्वारा बार-बार तंग किए जाने के बाद भी अपने गोद में लेकर लालन-पालन करती हो। ऐसा कहा जाता है कि ईश्वर ने अपने बदले तुम्हें इस धरती पर भेजा है। माँ यदि तुम नहीं होती तो जन्म देने के बावजूद भी आज अनाथ बनकर वन-वन भटकता रहता। "पंत जी" ने माता के कष्टदायक जीवन को देखकर कहा है- "हाय रे अबला नारी जीवन तेरी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी"।
          जब नारी माँ  के रूप में आती है तो उसका पूरा जीवन अपने बच्चे के परवरिश के लिए न्योछावर रहता है। स्वाभाविक रूप से गर्भ धारण करने के बाद अपने बच्चे को जन्म देने के लिए तथा एक सुन्दर नवागंतुक  शिशु को लाने के लिए आस लगाए रहती है। माँ अति ममतामयी होती है, चाहे उसे कितना भी दुःख या विपत्ति आए वह अपने बच्चे को खुश रखने का प्रयास करती है तथा उसके परवरीश में किसी भी प्रकार की कमी नहीं होने देती है। अपने आप को भूखे रखकर भी अपने बच्चों को खिलाती है। ऐसा माना जाता है कि प्रसव की पीड़ा दस हज़ार बिच्छू के डंक मारने के समान होती है जिसे वह खुशी के साथ सहन कर लेती है। जब बच्चा खाना नहीं खाता है तो वह बहुत परेशान रहती है। उसके बाद बड़े प्रेम से बच्चे का लालन-पालन करती है। उसका मल मूत्र साफ़ करना तथा एक अच्छे व्यक्तित्व का विकास करना उसका सर्वप्रिय कार्य माना जाता है।
          लड़के की शादी होने पर एक लड़की पत्नी के रुप में उसके जीवन में आती है जिसके प्रभाव में आकर उसका प्यार माँ से बँटने लगता है जिससे बेटा, माँ को संभाल  नहीं पाता है। कल तक जिस बेटे को माँ को देखे बिना चैन  नहीं आती थी आज उसको ऐसा लगने लगता है कि शायद उसकी माँ अपनी बेटी को ज्यादा प्यार करने लगी और पतोहू को कम। समय बदलता है और माँ-बेटे के बीच बहु को लेकर विवाद होता है और माँ को अपने से अलग करने की बात होती है। माँ भी बेटे की सुख, शांति, खुशी के लिए अलग रहकर किसी तरह अपना जीवन यापन करने को मजबूर हो जाती है। अगर दो भाई हो तो उसको पंद्रह-पंद्रह दिन करके खिलाने का नियम बनाती है और इकतीसवें दिन वाले महीने में उस भाग्यहीन माँ को एक दिन भूखा ही रहना पड़ता है। इसको देखते हुए यह कहना सही प्रतीत होता है कि "कल भी माँ रोती थी जब बेटा नहीं खाता था और आज भी माँ रोती है जब बेटा नहीं खिलाता है"।
          विश्व के सारे लोगों से प्रार्थना है कि माँ की सेवा करें उससे पूरी जिंदगी प्यार करें क्योंकि इस दुनियाँ में वही एक ऐसा संबंध है जो आपसे निःस्वार्थ प्यार करती है। अंत में दो पंक्ति माँ के लिए- 

तू कितनी अच्छी है, तू कितनी भोली है, तू कितनी सुंदर.. है, प्यारी प्यारी है....ओ माँ....ओ माँ....ओ माँ....ओ माँ..!



श्री विमल कुमार"विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक 
राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा बांका

5 comments:

  1. ममतामयी माँ को कोटि-कोटि नमन!

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  2. वात्सल्य की साक्षात प्रतिमूर्ति माँ के चरणों में कोटि-कोटि नमन। बहुत ही मार्मिक व मनभावन आलेख।

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  3. ममतामयी माँ की वास्तविक और सारगर्भित लेखनी.. .. धन्यवाद🙏

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  4. मां के सम्मान में आलेख बहुत खूब

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  5. सराहनीय आलेख।

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