जब मन पढ़ने में न लगे-देव कांत मिश्र - Teachers of Bihar

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Thursday 28 May 2020

जब मन पढ़ने में न लगे-देव कांत मिश्र

जब मन पढ़ने में न लगे

          विद्यालय में कुछ बच्चों से आपने कभी-कभी अवश्य ही सुना होगा कि सर जी- 'मेरा मन पढ़ने में बिल्कुल भी नहीं लगता' है! इस बार परीक्षा में मेरा पास होना मुश्किल है, क्या करें, क्या नहीं करें, कुछ भी समझ में नहीं आता है इत्यादि बातें उनके मन को बार-बार कुरेदती रहती हैं। इस परिस्थिति में आपको उन्हें डाँट-डपट नहीं करनी है, उनके मनोबल को कमजोर नहीं करना है बल्कि उनकी मनःस्थिति की अच्छी तरह परख करते हुए उनके उत्साह व मनोबल को मजबूत करते रहना है। एक शिक्षक होने के नाते आपको उन चीजों, उन बातों को उनमें खोजना है जो उनके मनोबल को कमजोर करने में सहायक सिद्ध हो रही है। यूँ तो कोरोना महामारी की वजह से इस बार बच्चों को बिना मूल्यांकन किए ही अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया गया है। इसे तंत्र की खामी कहा जाय या कोरोना संकट की स्थिति से लिया गया निर्णय लेकिन इस घड़ी में परीक्षा या मूल्यांकन की बात भी मेरी राय में उचित नहीं है। यह सर्वानुमति से उठाया गया कदम है। खैर जो भी हो, वर्तमान की बातों को छोड़ दीजिए। आगामी परीक्षा में या मूल्यांकन में उनके हौसले एवं उत्साह  को तो अफजाई करना ही होगा जो इनके मनोबल व आत्मविश्वास को कायम रख सके। तो आइए जरा 'पढ़ने में मन न लगने के कारण' को खोजें।
1. घर में पढ़ाई का माहौल उपयुक्त न होना: अच्छा वातावरण पठन-पाठन पर गहरा प्रभाव डालता है। अगर घर का माहौल अच्छा नहीं हो, आए दिन वहाँ लड़ाई झगड़े और अन्य तरह के तनाव रहेंगे ही और दिमाग उनमें ही उलझा रहेगा और पढ़ाई करते समय भी वही बातें दिमाग में आएँगी। इसके अतिरिक्त अगर घर में पढ़ाई हेतु जगह कम है, शोर ज्यादा है या अन्य कोई और व्यवधान है तो इनसे बचने की कोशिश की जानी चाहिए या ऐसी स्थिति में पढ़ाई के लिए किसी पुस्तकालय की मदद, सच्चे दोस्तों के साथ समूह अध्ययन या तो फिर एकांत रात्रि में पढ़ने की आदत डालनी चाहिए।
2. पठन हेतु उपयुक्त साम्रगी की कमी: पढ़ाई में मन न लगने का कारण पठन सामग्री की कमी भी है। ऐसा देखा गया है कि सरकार द्वारा पाठ्य पुस्तकों की खरीद हेतु पैसे दिए जाने के बावजूद कुछ बच्चे के अभिभावक उन्हें समय पर पुस्तक न खरीदकर उस पैसे को इतर कार्य में लगा देते हैं यहाँ तक कि उनकी पढ़ाई के प्रति भी उदासीनता दिखती है। ऐसा खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलता है। यह सौ फीसदी हकीकत है। स्वाभाविक है ऐसे में बच्चों को पढ़ने में बिल्कुल भी मन नहीं लगेगा।
3. उचित मार्गदर्शन का न होना: वर्तमान समय में पढ़ाई के लिए मार्गदर्शन जरूरी है। एक अभिभावक अच्छा मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है। मान लिया जाए कि घर में सारी सुविधाएंँ हैं परन्तु यह नहीं पता कि पढ़ाई कैसे और कहाँ से शुरू करनी है, किन विषयों पर पहले समय लगाना है और किन पर बाद में। अतः सबसे पहले अपनी समस्या को सुलझाकर बाद में पढ़ाई शुरू करनी चाहिए। यथासंभव अपने घर में किसी बड़े भाई, बहन या शिक्षित व्यक्ति से सहायता लेनी चाहिए।  
4. एकाग्रता में कमी: ऐसा अक्सर देखा गया है कि जब मन अशांत या तनाव में रहता है तो पढ़ने में मन का न लगना स्वाभाविक हो जाता है। पूरी तरह से एकाग्रता या तन्मयता नहीं बन पाती है।
5. परीक्षा या मूल्यांकन को फोबिया बनने से रोकें: इसे एक तरह से Insomnia Disorder भी कहा जा सकता है। इसमें Anxiety या Stress के कारण व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। जैसा कि मनोचिकित्सकों का मानना है कि फोबिया के शिकार बच्चों में अधिकांशतः वे शामिल हैं जो शुरू में पढ़ाई को लेकर गंभीर नहीं होते या जिनका मन पढ़ाई में नहीं लगता परन्तु परीक्षा निकट आते ही परिणाम के बारे में सोच-सोच कर चिंतित होने लगते हैं। अत्यधिक चिंता या नकारात्मक सोच के कारण दिमाग में कैमिकल डिसऑर्डर विकसित हो जाता है। यह आगे चलकर परेशानी का सबब बन जाता है। यूँ तो पढ़ने में मन नहीं लगने के और भी कई कारण हो सकते हैं लेकिन उपर्युक्त कारणों को मद्देनजर रखकर यदि बच्चों के लिए उचित व सही समाधान किया जाए तो उनके लिए बेहतर होगा



देव कांत मिश्र 
मध्य विद्यालय धवलपुरा
सुलतानगंज, भागलपुर

5 comments:

  1. बहुत-बहुत सुन्दर आलेख!

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  2. बहुत सुंदर सर !

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  3. वास्तव में शिक्षक एक कुशल माली के समान होता है। उन्हें बाल मनोविग्यान की गहन समझ होनी चाहिए। तभी वे बच्चों के भविष्य को सफलतापूर्वक सँवार सकेंगे। बहुत सुंदर और उपयोगी आलेख। बधाई हो सर जी । :- पंकज कुमार

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  4. बहुत सुंदर,सारगर्भित बिंदुवार विवेचना ।

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