Monday, 15 June 2020
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बहती का नाम जिंदगी-पूजा कुमारी
बहती का नाम ज़िन्दगी
परिवर्तन और गतिशीलता ज़िन्दगी में दो पहिये की तरह हैं, जो सही और सुचारू रूप से चलती रहे तो जिंदगी बहुत ही आरामदायक और आसान हो जाती है। जब हम परिवर्तन और गतिशीलता का विरोध करने लगते हैं तभी हमारी जिंदगी की गाड़ी के आगे अवरोध उत्पन्न होने लगते हैं। जरूरी है कि हम स्वयं में वह क्षमता विकसित करें जिससे हमारा मन और मस्तिष्क परिवर्तनों को एक अवरोध के रूप में नहीं देखे बल्कि उसे एक सहज प्रक्रिया की तरह स्वीकार करें। ज़िन्दगी में पूर्णता नाम की कोई चीज़ नहीं होती। यह निरंतर गतिशील है और इसमें अगर कुछ छूट रहा है तो बहुत कुछ साथ भी है। हम जो हैं या हमारे पास जो कुछ भी है उसे उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए जो हमारी ऊर्जा को बेकार की बातों में उलझने नहीं देती।
पानी का ही उदाहरण ले लें। नदी की धारा में जितनी बार हम हाथ डालते हैं उतनी बार हम नया जल छूते हैं। निरंतर गतिशील, अपने पथ पर जरा भी रुकावट नहीं, रास्ते सँकरे हों या विस्तृत कोई फर्क नहीं पड़ता...! पानी का अपना कोई रंग नहीं परंतु सृष्टि के समस्त रंग को अपने अंदर समेट लेने की क्षमता है इसमें। जिस रंग से मिले बस उसी रंग में रंग गए। पानी की अपनी कोई आवाज नहीं फिर भी कभी-कभी इसका शोर वाचाल हो उठता है। इसका शांत स्वरूप हमें शीतलता से भर देता है लेकिन इसकी उग्रता हमें विध्वंस की पराकाष्ठा पर पहुँचा देती है। जीवनदायिनी वर्षा के रूप में जहाँ यह वरदान है, वही विनाशकारी बाढ़ से यह जल-तांडव करती है। इतनी ही परिवर्तनशीलता प्रकृति के हर चीज़ में है। इसमें शीतलता भी है और उग्रता भी। यह जीवन देती भी है और लेती भी। सीखना हमें यह है कि किस प्रकार परस्पर-विरोधी लगने वाले तत्वों को यह खुद में समेटे हुए है। ज़िन्दगी भी ऐसी ही होती है जिसमें बहुत बार हमें उग्रता से नहीं बल्कि शीतलता से समाधान ढूँढना होता है और इसलिए हमें निरंतर गतिशील रहना चाहिए।
यह हमें सीख देता है कि जीवन में परिवर्तन और गतिशीलता ही एकमात्र स्थाई चीज़ है, बाकी सभी चीजें अस्थाई है। चाहे इसे हम महसूस करें या ना करें, लेकिन सबकुछ लगातार बदल रहा है। पर्यावरण, मौसम, समाज, संस्कृति, मित्र, परिवार और यहाँ तक कि हमारा शरीर भी। जितना अधिक हम दुनियाँ में हो रहे परिवर्तनों को गले लगाते हैं और खुद को उनके अनुरूप गतिशील बनाते जाते हैं उतना ही अधिक हम जीवन की सर्वश्रेष्ठता के करीब आते जाते हैं, उतना ही अधिक ये जीवन हमारे लिए आसान होता जाता है! जब हम परिवर्तनों का विरोध करते हैं तो हम उन सभी अवसरों से चूक जाते हैं जो व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों ही स्तर पर हमारी जिंदगी को बदलने की क्षमता रखती है।
इस कोरोना की जंग से लड़ने का हमारे पास एक ही विकल्प है कि हम खुद को ज्यादा से ज्यादा गतिशील और परिवर्तनों को सहज स्वीकार करने वाला इंसान बनाएँ। जिंदगी जितनी तेजी से बदल रही है उतनी ही तेजी से हमें खुद को भी बदलना होगा ताकि उसके साथ तालमेल बिठाकर हम चल सकें। मनुष्य और प्रकृति के बीच तालमेल बैठाने की ज़रूरत का समय है ये, और कोशिश करें तो हम अपनी आदतों को प्रकृति और समय के अनुकूल शिफ्ट कर सकते हैं।
इस प्राकृतिक कहर (कोरोना) से पहले हमने अपनी मानसिकता कुछ इस कदर बना ली थी कि हमने खुद को अपने आप में सम्पूर्ण अस्तित्व मान लिया था जबकि वास्तविकता यह है कि मनुष्य का स्वयं में कोई अस्तित्व नहीं बल्कि ये प्रकृति के अन्य सभी प्राणियों के अस्तित्व और उनकी सुरक्षा पर आश्रित है। प्रकृति की हर एक चीज़- मनुष्य, जानवर, पेड़-पौधे, मिट्टी, जल, वायु, आदि सभी आपस में जुड़ी हुई है। हमें यह बात समझनी होगी तभी हमारा अस्तित्व बचेगा। यह बात हम तभी समझ सकते हैं या इसे अपना सकते हैं जब हममें ग्रहणशीलता होगी और प्रकृति की अन्य सभी चीज़ों की तरह हम खुद को भी परिवर्तनशील और गतिशील बनाएँगे।
ज़िन्दगी एक बहाव की तरह है जिसमें हमें हर उस चीज़ को अपनानी होगी जो हमारे रास्ते में आ रही है। जब हम बहना सीख लेते हैं तो अपने आप आगे बढ़ते चले जाते हैं! इसलिए "बहती का नाम ज़िंदगी" और "बहते जाने का नाम ज़िन्दगी की सार्थकता" है!
पूजा कुमारी
मध्य विद्यालय जितवारपुर
अररिया
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परिवर्तन गतिशीलता बहाव जिंदगी को चलाती जाती है नदी का पानी भी एक जगह ठहर जाए तो गंदा हो जाता है निरंतर बढ़ते रहना स्वच्छता समृद्धि विकास का प्रतीक है सकारात्मकता से पूर्ण आलेख
ReplyDeleteसराहनीय 👌👌
ReplyDeleteBahut hi achcha lekh sakaratmakta aur urja se bhara hua prernadayak
ReplyDelete����
ReplyDeleteBahut hi prernadayak.
ReplyDeleteबहुत-बहुत सुन्दर!
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