Tuesday, 16 June 2020
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शिक्षक की लोकप्रियता-अमरेन्द्र कुमार
शिक्षक की लोकप्रियता
विद्यालय एवं बच्चों के हित में रचनात्मक कार्य करने वाले शिक्षक बच्चों में, विद्यालय एवं समाज में अत्यधिक लोकप्रिय हो जाते हैं। यह जीने की कला मनुष्य को अपने कार्य के प्रति कर्तव्यनिष्ठ एवं अनुशासित बना देती है। आप किसी भी विद्यालय में जाकर देखिये- एक-दो शिक्षक ऐसे मिलेंगे जो प्रत्येक क्षेत्र में रचनात्मक कार्य से जुड़े होंगे। जो बच्चों का दिल जीत लेते हैं, प्रशासन में उनकी विशेष पहचान बन जाती है। विद्यालय में कक्षा-कक्ष में 40 मिनट का क्लास लेकर केवल अध्ययन करवाने से शिक्षक लोकप्रिय नहीं बन सकते। यह कहिए कि वह मात्र अपनी ड्यूटी पूरा करते हैं। हाँ, यह सत्य है कि सरकारी ड्यूटी पूरा करना एक नौकरी है। मानवीय पहलुओं के साथ बहुत कुछ बातें जुड़ी होती है। यदि हम उन बिंदुओं पर विश्लेषण करें तो शिक्षण कार्य के साथ-साथ रचनात्मक कार्यों पर भी ध्यान देना चाहिए। एक विद्यालय में, जहाँ 15 शिक्षक नियुक्त हैं तो विद्यार्थी उन सभी गुरुजनों के शिक्षण, व्यवहार, चाल -चलन, बातचीत, रहन-सहन एवं रचनात्मक कार्यों के बारे में विश्लेषण करते रहते हैं। क्यों न हम उन बालकों के विश्लेषण में खरे उतरे? मैं स्वयं एक सहायक शिक्षक हूँ। अंतर सदन खेलकूद प्रतियोगिता में गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस एवं अन्य शिक्षकों के सहयोग की कितनी आवश्यकता होती है।कुछ शिक्षक कहते हैं कि यह काम तो शारीरिक शिक्षक का है, अकेले भी कर सकते हैं। कुछ शिक्षक स्वत: ही बिना कहे प्रतियोगिता में निर्णायक कार्य, राष्ट्रीय पर्व पर परेड, पिटी, हार्मोनियम बजाने एवं अन्य दिशानिर्देशों में हाथ बटाते हैं। राष्ट्रीय पर्व पर ग्रामीण क्षेत्रों में समस्त अभिभावक विद्यालय आते हैं, वे अपने आप ही कह देते हैं कि उन गुरु जी का क्या नाम है जो सांस्कृतिक कार्यक्रम में हारमोनियम बजा रहे थे, उनका नाम जो पीटी परेड करवा रहे थे, उनका नाम जो अनुशासन में विशेष योगदान दे रहे थे, उनका नाम जो मंच संचालन उद्घोषक थे? ।
शिक्षक अधिकतर एक स्थान से नहीं, अलग-अलग दूर-दराज क्षेत्रों से अनभिज्ञ स्थानों पर कार्यरत रहते हैं। उनके स्थानांतरण होते रहते हैं और उनका प्रायः अनभिज्ञ स्थान, समाज, बालक एवं गाँव से वास्ता पड़ता है। गाँव में मकान तलाशने, अनुकूल वातावरण प्राप्त करने, अपने परिवार को अनभिज्ञ स्थान पर रहन-सहन में ढालने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। रचनात्मक कार्य करने से यह समस्या स्वतः ही दूर हो जाती है। ऐसे गुरुजनों का संकट काल में ग्रामीण समाज, बालक एवं अधिकारी भी साथ देते हैं। राष्ट्रीय साक्षरता कार्यक्रम मेें, पल्स पोलियो, टीकाकरण, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, खेल-कूद प्रतियोगिताओं में, लेखन कार्य, समाजोपयोगी उत्पादन शिविर, स्काउट, एनसीसी, विद्यालय अनुशासन इत्यादि कितने ही आधार मौजूद हैं। शिक्षक चाहे तो विद्यालय शिक्षण के अतिरिक्त समय में अपनी भागीदारी निभाएँ। रचनात्मक कार्यों की कमी नहीं है ।
सबसे बड़ी बात यह है कि जिस विद्यालय में अनुशासनहीनता फैली हुई है उस विद्यालय में उपरोक्त रचनात्मक कार्य प्रारंभ कर दिया जाए तो अनुशासनहीनता पर अंकुश लग जाता है वे गुरुजन जो सृजनात्मक कार्य करते हैं उनके विद्यालय में अनुशासन भी रहता है। विद्यालय का हर बालक उनके कार्यों का विवरण अपने अभिभावकों को बतलाता है। कभी अभिभावक भी अपने बच्चों से पूछते हैं कि आपके विद्यालय में सबसे अच्छे गुरू कौन हैं? बालक तुरंत उनका नाम ही बताएगा जो शिक्षक उन्हे प्रिय हैं और लोकप्रियता तभी हासिल होती है जब हम बच्चों के हित में अतिरिक्त कार्य करते हैं। आइए, हम सब मिलकर विद्यार्थी, विद्यालय, समाज के हित, में रचनात्मकता के पुनीत कार्य से जुड़ें जिससे राज्य और देश का विकास होगा, साथ ही अपने घर में बरकत की बेल बढ़ती जाएगी।
अमरेंद्र कुमार
प्राथमिक विद्यालय भईया टोला, दरिहट
डेहरी, रोहतास
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आपने बिल्कुल सही फरमाया है कि हमारी लोकप्रियता हमारे काम से होती है, न कि नाम से ।
ReplyDeleteधन्यवाद सर ।
बहुत-बहुत अच्छा!
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख 👌👌
ReplyDeleteविद्यालय के सभी कार्यक्रमों में सहयोग करने वाले शिक्षक सदैव लोकप्रिय होते हैं।उनका सहयोगात्मक रवैया न केवल कार्यक्रम को सफल बनाने का काम करता है बल्कि यह दूसरे सहयोगी शिक्षकों को भी प्रेरित करता है। मिल जुलकर कार्य करने एवं एक दूसरे का सहयोग करने के कारण ही तो विद्यालय परिवार कहलाता है। एक अच्छे विषय पर अच्छी रचना हेतु बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं........
ReplyDeleteसृजनात्मकता से अनुशासनहीनता को खत्म किया जा सकता हैं🙏
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअच्छा आलेख आपने लिखा है सर
ReplyDeleteबहुत व्यवहारिक व ईमानदार आलेख ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख
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