समावेशी शिक्षा का केंद्र विद्यालय-अमृता चंद्रा - Teachers of Bihar

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Tuesday 23 June 2020

समावेशी शिक्षा का केंद्र विद्यालय-अमृता चंद्रा


समावेशी शिक्षा का केंद्र विद्यालय

          विद्यालय एक ऐसा स्थान है जो सबका होता है, जहाँ सभी अपनाए जाते है। जहाँ सभी अपने विद्यालय, समुदाय व सहपाठियों का सहयोग करते है और यह सहयोग शैक्षिक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए होता है।
          आज हमारे समाज मे विभेदीकरण बहुत ही जोर शोर से बढ़ रहा है जैसे रंग के आधार पर, जन्म के आधार पर, जाति के आधार पर, शारीरिक संरचना के आधार पर और बहुत सारी विभिन्नताओ के आधार पर जो कि पूर्णतः गलत है। हमे इसे रोकना होगा क्योंकि इससे समाज  बँट जाएगा और बँटवारा समाज में नकारात्मकता लाता है। अब सवाल यह है कि इसे रोका कैसे जाए? तो हम इसे रोकने की शुरुआत बच्चो से कर सकते है । इसके लिए समावेशी शिक्षा से अच्छा उपागम और कोई नहीं हो सकता। विभिन्नता के साथ जीवन जीना ओर उसके साथ अनुकूलता स्थापित करते हुए सीखना समावेशी शिक्षा से ही सम्भव है और विद्यालय एक ऐसा केंद्र है जहाँ विभिन्न परिवेश से विभिन्न प्रकार के जाति, धर्म, लिंग, गरीब, अमीर, तेज, साधारण, मंद बुद्धि के बालक इत्यादि आकर एक साथ शिक्षा ग्रहण करते है । यहाँ हम शिक्षकों का दायित्व बनता है कि बिना किसी भेद भाव के उन्हें आपस में मिल-जुलकर रहना सिखाना होगा। एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करना सिखाना होगा।
          यदि किसी कक्षा में एक मंद बुद्धि का बालक है तो उसे सामान्य और प्रखर बुद्धि के बालकों की तुलना में कोई भी बात कम या देर से समझ आएगी। शिक्षकों को वहाँ उस मंद बुद्धि बालक के साथ संयम और प्यार से पेश आना होगा ताकि उस बालक के अंदर आत्मनिर्भरता आए और आपके व्यवहार को देखकर बाकी बालको में उस मंदबुद्धि बालक के साथ मित्रवत व्यवहार करने की शिक्षा मिले। जैसे जैसे उस मंदबुद्धि बालक की आत्मनिर्भरता बढ़ेगी उसकी बुद्धि प्रखर होती चली जाएगी ओर हो सकता है आगे चलकर वह सामान्य बालकों की श्रेणी में आ जाए। इसी तरह से बालको में गरीब, अमीर, जात-पात का भेद मिटाकर साथ मिलकर सहयोगात्मक शिक्षा ग्रहण करने का परिवेश तैयार करने के लिए विद्यालय से अच्छा उचित स्थान नही हो सकता है। बच्चे कच्ची मिट्टी के बने होते हैं जिसे हम शिक्षक जिस तरह चाहे वैसा रूप दे सकते हैं।
          विद्यालय में स्कूल ड्रेस अनिवार्य होता है क्योंकि स्कूल ड्रेस का एक जैसा होना बच्चों के बीच आपसी सम्पन्नता और विपन्नता के भेद को मिटाता है ठीक उसी प्रकार कक्षा कक्ष में सीखने सिखाने के दौरान शिक्षक को सभी बच्चों से प्रश्न पूछने चाहिए ताकि उन्हें यह समझ में आए कि शिक्षक सभी बच्चों पर बराबर ध्यान दे रहे हैं।गतिविधि आधारित शिक्षण में भी हमें सभी बच्चों को शामिल करना चाहिए । जैसे प्रकृति और पेड़ों का महत्व बताते हुए हमें बच्चों को पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। कक्षा में आने वाले सभी बच्चों को 5 भागों में बाँट कर 5 टीम बनानी चाहिए और प्रत्येक टीम का नामकरण कर उनके कार्य बाँट देनी चाहिए। जैसे किसी टीम को मिट्टी उपलब्ध कराने का कार्य तो दूसरी टीम को खाद का इंतजाम, तीसरी टीम को पौधों का इंतजाम तो चौथी टीम को पानी का ओर, पाँचवी को खुरपी कुल्हाड़ी का इंतजाम करने का कार्य देना होगा। इस तरह सभी बच्चे एक साथ शामिल होकर पौधा रोपण और उसकी देखभाल करने का कार्य करेंगे।
          इस तरह से विद्यालय एक समावेशी शिक्षा के केंद्र के रूप में स्थापित होकर समाज को सकारात्मक दिशा प्रदान कर सकता है । बस जरूरत है थोड़ी सी इक्षा ओर प्रयास की।

अमृता चंद्रा
उत्क्रमित उच्च माद्यमिक विद्यालय मौजीपुर
फतुहा पटना 

3 comments:

  1. बहुत-बहुत सुन्दर!

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  2. समावेशी शिक्षा से ही बच्चों के बीच के भेदभाव को खत्म किया जा सकता है🙏

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