Monday, 22 June 2020
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आशावादी बने-रूही कुमारी
आशावादी बनें
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दूगुणा उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय-जय कार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
सोहन लाल द्विवेदी जी की इस कविता से तो हम भलीभांति परिचित होंगे। इन पंक्तियों के पढ़ने मात्र से ही शरीर में जैसे एक रोमांच पैदा हो जाता है। यह हमें अपने लक्ष्य की ओर अग्रसरित रहने की प्रेरणा देती है, अपने अंदर छुपी कमियों को पहचान कर उन्हें दूर करने की तथा निरंतर प्रयासरत रहने के लिए भी प्रेरित करती है।
अक्सर हम अपनी छोटी-छोटी परेशानियों को लेकर गुनते रहते हैं तथा अपना कीमती समय यह सोचने में बर्बाद कर देते हैं कि 'यह मेरे साथ ही क्यों हुआ या इसी समय मेरे साथ इस दुःखद घटना को घटित होना था, भगवान हमारे साथ न्याय नहीं करते सारी विपत्ति हमारे ही सर आती है आदि। इन सबसे परे हमें अपना ध्यान विकट परिस्थिति से निकलने की ओर केंद्रित करना चाहिए। हम भूत में जाकर उन्हें बदल नहीं सकते और भविष्य में सब ठीक हो ही जाएगा, इस विचार मात्र से चुपचाप बैठ भी नहीं सकते। बेहतर यह होगा कि हम वर्तमान में जियें और अपने आज को सुधारने का प्रयास करें। इस प्रयास में हो सकता है हमें कई बार असफलता हाथ लगे किन्तु अपना धैर्य, साहस एवं विश्वास नहीं खोना चाहिए।
जिस प्रकार एक नन्हीं चींटी अपनी मंजिल तक पहुँचने में मशक्कत करती है, कई बार असफलताओं का सामना करती है फिर दूसरे ही पल पुनः उठकर कोशिश में लग जाती है, हमें इससे सबक लेनी चाहिए। हममें हर क्षण सीखने की तीव्र इच्छा भी होनी चाहिए। इस धरा पर छोटे-बड़े सभी प्राणी अपने-अपने मक़सद से हैं। सभी अपने तरीके से जीवन व्यतीत करते हैं। सभी के जीवन में कमोवेश परेशानियाँ बनी ही रहती है। गरीब, बेसहारा, कम सम्पन्न लोग जो थोड़ी सुविधाओं तथा ज्यादा मुश्किलों के साथ अपनी जिंदगी बसर करते हैं। हमें अपने दुःखों को उनके साथ आँकना चाहिए तब शायद उनके विशाल दुःख के सामने हमें अपनी समस्या तुच्छ लगने लगे तथा इनसब के लिए हम ईश्वर को कोसना बंद करें।
बात "कोरोनाकाल" की करें तो घर में रहकर हमें आज अपनों के साथ कुछ क्षण बिताने में तकलीफ़ हो रही है। घर के अंदर हमें घुटन महसूस होती है। तत्काल मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध होने के बावजूद हम बेवजह बाहर सैर में लगे हैं जबकि इसके दुष्परिणाम से हम वाकिफ़ हैं मगर दूसरी तरफ वे लोग हैं जो अपने घर आने के लिए परिजनों की झलक पाने के लिए मीलों का फ़ासला पैदल ही तय कर रहे हैं। इस समय न वे रास्ते में आने वाली चुनौतियों पर ध्यान दे रहे हैं और न भूख-प्यास की। अनवरत चले जा रहे हैं। अपनों से मिलने की आश में शायद वे निरंतर बढ़े जा रहे हैं।
हमें मालूम होना चाहिए कि इस घोर विपदा के काल में सभी के साथ अपने-अपने स्तर की परेशानियाँ हैं। आवश्यक है कि हम धैर्यपूर्वक इस काल का सामना करें। साथ ही ध्यान रहें कि हम जहाँ भी है अपने लक्ष्य को थामे रहें तथा उनकी पूर्ति के लिए स्वयं वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दें तथा लगन एवं उत्साह से परिपूर्ण होकर नई-नई दिशाओं में नवाचार में संलग्न रहें और आशावादी बनें क्योंकि उद्देश्यहीन जीवन निरर्थक एवं बोझिल सा प्रतीत होने लगता है।
रूही कुमारी
मध्य विद्यालय पचीरा
रानीगंज अररिया
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आशावादी बने-रूही कमारी
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बहुत अच्छा
ReplyDeleteशुक्रिया 😊
DeleteBaat to aapki bahut acchi hai ...per jis kavita ka aapne varnan kiya hai ,unke kavi hariwansh ray bacchan ji hain ...sohanlal ji nahi
ReplyDeleteआप गूगल पर सर्च करके संतुष्ट हो जाएँ।
Deleteये कविता तो हरिवंश राय बच्चन जी का है
ReplyDeleteआपने सोहन लाल द्विवेदी लिखा है
प्लीज correct kare
गूगल पर जाकर सर्च करें।
DeleteO yes you are right
DeleteYe vivad me rahi hai
Ab clear hua hai
Waise maximum log yahi jaante hai
Thank you so much for responding
बहुत बहुत शुक्रिया ...आपने अपना कीमती वक़्त दिया 🙏
Deleteवैसे आपने लिखा अच्छा है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
केवल ये सुधार कर दें।
सोहन लाल द्विवेदी हीं सही है।
Deleteबहुत-बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत सारा धन्यवाद 😊
Deleteआशावादी तथ्य
ReplyDeleteशुक्रिया आपका 🌷
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