वन महोत्सव-नम्रता मिश्रा - Teachers of Bihar

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Friday, 3 July 2020

वन महोत्सव-नम्रता मिश्रा

वन महोत्सव  

          वर्ष 2013 में देवभूमि उत्तराखंड में बाढ़ और प्राकृतिक आपदा का दृश्य दशकों तक हमारी आँखों से ओझल नहीं होगा। विकास की इस दौड़ में हम आज कंक्रीट के जंगल तक आ पहुँचे हैं । वर्तमान स्थिति यहाँ तक आ पहुँची है कि हमने अपने विकास और स्वार्थ के लिए वनों को काट-काटकर स्वयं अपने लिए ही विषम परिस्थिति पैदा कर ली है। वनों की अंधाधुंध कटाई से जो दुष्परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं वे भी कम चौंकाने वाले नहीं हैं। इसकी कल्पनामात्र से ही सिहरन हो उठती है। घटता-बढ़ता तापमान, आँधी-तूफान, बाढ़, सूखा, भूमिक्षरण जैसी विभिषिकाओं से जूझता मानव अब वनों के महत्व को समझने लगा है। तभी वनों के संरक्षण की दिशा में सोच बढ़ा है। व्यावहारिक रूप से यह उचित भी है और समय की मांग भी यही है। 
          वन महोत्सव नाम का अर्थ है ‘पेड़ों का त्योहार’।  जिसे 1950 में श्री के.एम. मुंशी द्वारा शुरू किया गया जो आज भी प्रतिवर्ष हम वन-महोत्सव के रूप में मनाते आ रहे हैं। वृक्षों के कटने को रोकने के लिए इसकी शुरुवात की थी। इसमें लोगो को प्रेरित किया गया था कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए। वन-महोत्सव सामान्यतः जुलाई माह के प्रथम सप्ताह मनाते हैं जिसमें  अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाता है। वर्षाकाल में पौधे थोड़े से प्रयास से अपनी जड़ें जमा लेते हैं। हर साल लाखों पौधे वन महोत्सव सप्ताह में पूरे भारत भर में लगाए जाते हैं। कार्यालयों , स्कूलों, कॉलेजों आदि में जागरूकता अभियान विभिन्न स्तरों पर आयोजित की जाती हैं। वन-महोत्सव त्योहार के दौरान पेड़ों का रोपण वैकल्पिक ईंधन उपलब्ध कराने जैसे विभिन्न प्रयोजनों का कार्य करता है।
          यह विचार भी मन में आता है कि वन-महोत्सव मनाने की आवश्यकता ही क्यों हुई? वे क्या परिस्थितियाँ थी कि साधारण से वृक्षारोपण को महोत्सव का रूप देना पड़ा? जैसा कि हम सब इस बात से सौ फीसदी वाकिफ़ हैं कि वृक्षों का सारा जीवन केवल दूसरों की भलाई करने के लिए ही है। ये स्वयं तो हवा के झोंके, वर्षा, धूप और पाला सब कुछ सहते हैं लेकिन हमलोगों की उनसे रक्षा करते हैं। साँस के लिए ऑक्सीजन बनाते हैं। धूप की पीड़ा और ठंड के कष्ट से बचाते हैं। धरती का श्रृंगार कर सुंदर प्रकृति का निर्माण करते हैं। पथिकों को विश्राम-स्थल, पक्षियों को नीड़, जीव-जन्तुओं को आश्रय स्थल देते हैं। पेड़ अपना तन समर्पित कर गृहस्थों को इंर्धन, इमारती लकड़ी, पत्तो-जड़ों तथा छालों से समस्त जीवों को औषधि देते हैं। पत्ते, फूल, फल, जड़, छाल, लकड़ी, गन्ध, गोंद, राख, कोयला, अंकुर और कोंपलों से भी प्राणियों की अन्य अनेक कामनाएँ पूर्ण करते हैं। 
          इन सब बातों के मद्देनज़र वन विभाग के आकड़ो के मुताबिक देश के कुल क्षेत्रफल पर तैंतीस फीसदी वन होने चाहिए। एक समय था जब हमारे कुल क्षेत्रफल पर आधे से अधिक क्षेत्र वन से अच्छादित थे। मगर जनसंख्या वृद्दि के कारण बढ़ती हुई मानव आवश्यकताओं के कारण हमारे वन निरंतर लुप्त हो रहे हैं। आज के हालात यह हैं कि हमारे कुल क्षेत्रफल पर तीस फीसदी से कम वन रह गए हैं। पिछले तीस वर्षों में कुल क्षेत्रफल का लगभग दो-तिहाई वनों को खो दिया गया है। इसका मुख्य कारण अतिक्रमणऔर औद्योगिक परियोजनाएँ हैं। 
          भारतीय वन विभाग के अनुसार प्रत्येक पेड़ के गिरने के  नुकसान की भरपाई के लिए दस पेड़-पौधे लगाए जाने चाहिए लेकिन इस प्रथा का पालन शायद ही कभी किया जाता है। हम सभी जानते हैं कि वन हमें पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने और कार्बन की मात्रा को कम करने में मदद करते हैं। हलांकि बिना सोचे समझे मीलों तक के जंगलों को जला दिया जाता है या हज़ारों पेड़ों को काट दिया जाता है। हम सभी ये जानते हैं कि हमारे द्वारा काटे गए वृक्षों पर नाना प्रकार के पक्षियों का बसेरा होता है। शाखाओं, पत्तों, जड़ों एवं तनों पर अनेक कीट-पतंगे परजीवी अपना जीवन बिताते हैं। बेतहाशा वनों की कटाई से नष्ट हुए इन आवासों के कारण कई वन्य प्राणी लुप्त हो गए एवं अनेक विलोपन के कगार पर हैं। भूमि के कटाव को रोकने में वृक्ष-जड़ें ही हमारी मदद करती हैं। वर्षा की तेज बूंदों के सीधे जमीनी टकराव को पेड़ों के पत्ते स्वयं पर झेलकर बूंदों की मारक क्षमता को लगभग शून्य कर देते हैं। 
          वन महोत्सव त्योहार के दौरान पेड़ों का रोपण, वैकल्पिक ईंधन उपलब्ध कराने जैसे विभिन्न प्रयोजनों के कार्य करता है। खाद्य संसाधनों के उत्पादन में वृद्धि, मवेशियों के लिए भोजन उपलब्ध कराने में, उत्पादकता बढ़ाने के लिए खेतों के चारों ओर आश्रय बेल्ट बनाने में मदद करता है। छाया और सजावटी परिदृश्य प्रदान करता है। पेड़, ग्लोबल वार्मिंग को रोकने और प्रदूषण को कम करने के लिए सबसे अच्छा उपाय प्रदान करता है। वन महोत्सव को जीवन के एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। भारत में यह धरती माँ को बचाने के लिए एक अभियान के रूप में शुरू किया गया था। 
जंगल बच्चों के झूले से लेकर महाप्रयाण की यात्रा का साथी है। वन से प्राप्त अन्य उपज भी हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हम स्वयं को वनों से अलग नहीं कर सकते। मानव सभ्यता का प्रारंभ जंगलों, गुफाओं, पहाड़ियों, झरनों से ही हुआ है। यद्यपि वृक्षारोपण एवं वन महोत्सव दोनों ही नए नहीं है। हमारे पवित्र वेदों में भी इसका उल्लेख है। इसका वर्णन इतिहास में उल्लिखित है। हमारे देश की प्राचीन संस्कृति में वृक्षों की पूजा और आराधना की जाती है तथा नेतृत्व की उपाधि दी जाती है। बच्चों को प्रकृति ने मानव की मूल आवश्यकता से जोड़ा है। यदि वृक्ष न होते तो नदी और आसमान न होते। वृक्ष की जड़ों के साथ वर्षा का जल जमीन के भीतर पहुँचता है। वन हमारी सभ्यता और संस्कृति के रक्षक है। शांति और एकांत की खोज में हमारे ऋषि मुनि वनों में रहते थे। वहाँ उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया और विश्व कल्याण के उपाय भी सोचे। वहीं गुरुकुल भी होते थे।आयुर्वेद के अनुसार पेड़-पौधों की सहायता से मानव को स्वस्थ एवं दीर्घायु किया जा सकता है। तीव्र गति से जनसंख्या बढ़ने तथा राष्ट्रों के ओद्योगिक विकास कार्यक्रमों के कारण पर्यावरण की समस्या गंभीर हो रही है। प्राकृतिक संसाधनों के अधिक और अधिक दोहन से पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है। वृक्षों की भारी तादाद में कटाई से जलवायु परिवर्तित हो रही है। ताप की मात्रा बढ़ती जा रही है। नदियों का जल दूषित होता जा रहा है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ रही है जो भावी पीढ़ी के स्वास्थ्य के लिए खतरा है। 
डॉ. मुंशी द्वारा वन महोत्सव की कल्पना करने वाले कारणों में से कुछ थे :- 
          फलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए जिन्हें देश के संभावित खाद्य संसाधनों में जोड़ा जा सकता है। अपनी उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि क्षेत्रों के आस-पास आश्रय-स्थल बनाने में मदद करें। आरक्षित वनों पर चराई की तीव्रता को राहत देने के लिए मवेशियों के लिए चारे की पत्तियाँ प्रदान करें। मृदा संरक्षण को बढ़ावा देना और मृदा की उर्वरता को और बिगड़ने से रोकना।
          वनों को बचाने के अभियान में वन महोत्सव को सफल बना इसके योगदान को राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर सकते हैं। वृक्षारोपण करें। छायादार और फलदार वृक्षों को लगाएं। उन्हें अपने संतान की भांति सहेजें। पालें-पोसें और संरक्षित करें। इसके लिए भूमि एवं पौधों का चुनाव सही ढंग से करें। नीम, बरगद, पीपल, बबूल एवं बांस इत्यादि का पौधारोपन अवश्य करें। इस प्रकार अपने प्रयासों से थोड़ी भी प्रकृति संरक्षित होती है तो सभी के प्रयासों से पूरी पृथ्वी भी संरक्षित हो सकेगी। प्रकृति हमें माँ की तरह धूप, ताप, वर्षा, सर्दी, गर्मी से बचाती है और अपने आंचल में शरण देती है। आइए इसी के साथ एक संकल्प लें कि-

यूं कुछ करें कि वसुंधरा फिर गुलज़ार हो जाए
वन महोत्सव पर सब मिल-जुलकर पेड़ लगाएँ।

नम्रता मिश्रा
म. वि. मदरौनी
रंगरा भागलपुर 

7 comments:

  1. वन है तो जीवन है। बहुत ही बेहतरीन लेख।
    --kumar dewes

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  2. अति उत्तम और विचरणीय आलेख। वास्तव में वन धरती का श्रृंगार है। यह पृथ्वी पर जीवन का आधार है। अतः वन संरक्षण परम आवश्यक है। सुंदर आलेख।👌👌

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  3. Manish Kumar Pandey3 July 2020 at 22:22

    ������

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  4. बहुत-बहुत सुन्दर!

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  5. सच्चाई यह है कि हम मानव वृक्ष की कीमत उनके लकड़ी के अनुसार तय करते हैं लेकिन यह नहीं समझ पाते हैं की एक वृक्ष अपने जीवन काल में 17 लाख रुपया के बराबर हमें ऑक्सीजन प्रदान करता है। इनकी महत्ता को समझ कर इनके संरक्षण पर ध्यान देना होगा। सुंदर आलेख।
    प्रमोद रंजन
    प्रधानाध्यापक
    मध्य विद्यालय जीवछपुर बालक
    अंचल सुपौल
    जिला सुपौल।

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