आजादी के दीवाने राम प्रसाद बिस्मिल
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति के अग्रदूत अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था ।उनके माता का नाम श्रीमती मूलमति एवं पिता का नाम श्री मुरलीधर था। वे अपनी माता-पिता के दूसरी संतान थे । यह कहा जाए कि वह बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे तो शायद अतिशयोक्ति होगी। वे उर्दू मिडिल की परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होने पर अंग्रेजी पढ़ना प्रारंभ किए तथा बहुत ही शीघ्र वे अंग्रेजी के पांचवें दर्जे में आ गए ।रामप्रसाद जब गवर्नमेंट हाई स्कूल शाहजहांपुर में आठवीं कक्षा के छात्र थे तभी संयोग से स्वामी सोमदेव से उनकी मुलाकात हुई और सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ का उन्होंने अध्ययन किया। इन सबका उनके जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा और उनके मन में देश प्रेम की भावना जागृत हो गई जो समय के साथ प्रचंड होती गई।
सन 1915 में भाई परमानंद की फांसी का समाचार सुनकर
राम प्रसाद ने ब्रिटिश साम्राज्य को समूल नष्ट करने की ठान ली। तब तक उनसे कई युवक भी जुड़ चुके थे। पंडित गेंदालाल दीक्षित के मार्गदर्शन में मातृवेदी नामक एक संगठन बनाया गया। राम प्रसाद जो अब बिस्मिल के नाम से प्रसिद्ध हो चुके थे, के नेतृत्व में संगठन के लिए धन इकट्ठा करने हेतु तीन डकैतियाँ डाली गई। पुलिस राम प्रसाद बिस्मिल के साथ-साथ डकैती में शामिल सभी लोगों को खोजने लगी। मैनपुरी षड्यंत्र के बाद बिस्मिल फरार हो गए और वे 2 वर्षों तक भूमिगत रहे। गोली से उनके मरने की अफवाह भी फैली।
कुछ दिन अन्य कार्यों में लगे रहने के बावजूद पुन: सचीन्द्र सन्याल एवं योगेश चंद्र चटर्जी के गिरफ्तारी के बाद राम प्रसाद बिस्मिल पर उत्तर प्रदेश और बंगाल के क्रांतिकारी सदस्यों का उतरदायित्व आ पड़ा। संगठन हेतु धन के लिए उन्होंने सरकारी खजाने को लूटने का निश्चय किया। इसी क्रम में बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त 1925 में काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया गया । एक चादर जो घटनास्थल पर छूट गया था, के सहारे अंग्रेजी सीआईडी ने बिस्मिल सहित सभी साथियों को गिरफ्तार कर लिया और इस कांड के लिए लम्बी सुनवायी के बाद जज के द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई। काफी जद्दोजहद व बचाव के प्रयास के विफलता के बाद उन्हें गोरखपुर जेल में 19 दिसम्बर 1927 ई0 को प्रात: 6 बजकर 30 मिनट पर फांसी दे दी गई।
राम प्रसाद बिस्मिल एक कवि, लेखक एवं साहित्यकार थे। उन्होंने जीवन भर भारत माँ की बहुत सेवा की। मात्र 30 वर्ष के उम्र में उनकी शहादत, हम सभी को अपने देश के आन, बान और शान की रक्षा के लिए सब कुछ न्योछावर करने के लिए प्रेरित करता रहेगा।
सटीक जानकारी👌👌.
ReplyDeleteधन्यवाद सर को
अच्छी जानकारी दी आपने ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteआपने अपने आलेख के जरीये भारत के महान सपूत को जिन्दा जावेद बना दिया है, सर ।मुबारकबाद सर।
ReplyDeleteहमारे भारतवर्ष की आजादी की लड़ाई में अनगिनत वीर सपूतों ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी, उनमें से बहुतों को तो हमारी नयी पीढ़ी जानती तक नहीं। हमें इन वीर योद्धाओं के बारे में अपने छात्रों को अवसर निकाल कर बताना चाहिए भले ही उनकी जीवनी हमारे पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं हो। रामप्रसाद बिस्मिल के बारे में तथ्यपरक आलेख हेतु बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं......
ReplyDeleteThanks sir
ReplyDeleteऐतिहासिक जानकारी की सुंदर रचना
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