Wednesday, 10 June 2020
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बताओ बचाओ और बसाओ-नम्रता मिश्रा
बताओ बचाओ और बसाओ
1) जनसंख्या से ग्लोबल वार्मिंग
आइए थोड़ा विमर्श करते हैं कि पृथ्वी का गर्म होना और इसकी मुख्य वज़ह जनसंख्या कैसे है? संतुलित जनसंख्या के लिए संतुलित संसाधनों का सृजन किया गया था लेकिन उबलती जनसंख्या ने संसाधनों का दोहन आरंभ कर उसे समाप्ति के कगार पर ला खड़ा कर दिया है। चाहे जंगलों का कटना, खेती युक्त जमीनों पर घर बनाना, मैदानों को कंक्रीट में बदलना, कोयला, पैट्रोलियम इत्यादि का अनहद इस्तेमाल करना और इन सबसे कार्बन की मात्रा में अत्यधिक उत्सर्जन वातावरण को गर्म कर ओज़ोन परत को बड़ा कर ऊष्मा को असंतुलित कर दिया है। इन सबके पीछे जनसंख्या है।ग्लोबल वार्मिंग के लिए ज्यादातर ऐतिहासिक जिम्मेदारी अमीर देशों की है लेकिन उनका कहना है कि भविष्य में समस्या को सुलझाने का बोझ उन पर डालना अनुचित होगा। इस बीच सबसे ज्यादा जहरीली गैसों का उत्सर्जन करने वालों की सूची में चीन, भारत और ब्राजील जैसे देश शामिल होते जा रहे हैं जो अपनी आबादी को गरीबी से बाहर निकालने के लिए कोयला, तेल और गैस का व्यापक इस्तेमाल कर रहे हैं। हालाँकि भारत में अभी भी प्रति व्यक्ति औसत खपत पश्चिमी देशों से कम है।
गाय का मांस - 34.6 किलो CO2
मेमना - 17.4
सुअर का मांस - 6.35
मुर्गी - 4.57
बीफ खाने वालों के लिए पशु फार्मिंग करना और पशु को पालने और चारा के लिए जंगलों को काटना।अप्राकृतिक तरीके से पशु फार्मिंग मिथेन की मात्रा बहुत बढ़ाती है क्योंकि जो भी पशु जुगाली कर खाना पचाते हैं वह डकार (Burp) के दौरान मिथेन उत्सर्जित करते हैं और मिथेन कहीं जाकर तापमान बढ़ाने को उत्तरदायी है। पृथ्वी के निर्माण के बाद हर चीज़ संतुलित मात्रा में थी लेकिन बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिकीकरण के कारण देशों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने पर्यावरण को कहीं का नहीं छोड़ा। दुनिया भर में, लगभग 1.5 बिलियन गाय और बैल हैं। दुनिया के सभी जुगाली करने वाले प्रति वर्ष लगभग दो बिलियन मीट्रिक टन CO2 समतुल्य उत्सर्जन करते हैं। इसके अलावा उष्णकटिबंधीय जंगलों और वर्षा वनों को साफ करने के लिए अधिक चराई भूमि और कृषि भूमि प्राप्त करने के लिए प्रति वर्ष अतिरिक्त 2.8 बिलियन मीट्रिक टन CO2 उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार- कृषि दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैसों की कुल रिहाई के 18% के लिए जिम्मेदार है। इन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए मवेशी प्रजनन भी एक प्रमुख कारक है। पशुधन आज की सबसे गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं में सबसे महत्वपूर्ण योगदानकर्ताओं में से एक है।
3) टिशु पेपर से ग्लोबल वार्मिंग
केवल अमेरिका में एक सप्ताह में प्रति व्यक्ति टिशू पेपर का तीन रोल इस्तेमाल होता है। यह देश दुनियाँ का पाँचवा देश है टिशु पेपर के अत्यधिक खपत करने वालों में से जिसके लिए यह 405000 हेक्टेयर वनों की कटाई करती है। (NDRC) के अनुसार।
4) चारागाह से ग्लोबल वार्मिंग
जैसा कि ऊपर चर्चा हुई है कि पशु खेती के लिए जंगलों की कटाई कर उसे चारागाह में बदल देना और वनों की कटाई से वर्षा वनों का ह्रास होना एवं पर्यावरण को
क्षति पहुंचना। चारागाह के लिए कीटनाशक का प्रयोग करना एवं अत्यधिक जल का प्रयोग करना भी संसाधनों का दोहन कर प्रकृति को नुकसान पहुँचा रही है। 70% अमेजन वन चारागाह में तबदील हो चुका है।
5) वन कटाई से ग्लोबल वार्मिंग
वनों की कटाई से वर्षा वनों का ह्रास, बारिश असंतुलन, बाढ़ की समस्या, फ्लैश फ्लड का शिकार होना, मौसम परिवर्तन इत्यादि आम समस्या हो गई है।
6) ग्लोबल वार्मिंग से गरीब देशों का गरीब होना और अमीर देशों का और अमीर हो जाना
अब आते हैं औद्योगिकी की मार झेलते देशों की गला काट प्रतिस्पर्धा के बीच प्रकृति का सर्वनाश होना। जो देश पहले से ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आते थे वो शोधकर्ताओं के मुताबिक़ सबसे ग़रीब और सबसे अमीर मुल्कों के बीच की खाई ग्लोबल वॉर्मिंग से पहले के मुक़ाबले 25 फीसदी ज़्यादा चौड़ी हो गई है। भारत भी ग्लोबल वॉर्मिंग के असर से अछूता नहीं है। गर्मी कम तो विकास ज़्यादा अगर गर्मी नहीं बढ़ी होती तो 2010 में भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी जिस स्तर पर होती, उससे 31 फीसदी नीचे रह गई। वहीं कई अमीर देशों की प्रति व्यक्ति जीडीपी में इज़ाफ़ा किया है। इनमें कुछ वे अमीर देश भी शामिल हैं जो ग्रीन हाउस गैसों का सबसे ज़्यादा उत्सर्जन करते हैं। औसत से गर्म तापमान होने पर ठंडे देशों में विकास की रफ़्तार बढ़ी जबकि गर्म देशों में घट गयी। ऐतिहासिक आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि जब तापमान न ज़्यादा गर्म और न ज़्यादा ठंडा था तब फसलों का उत्पादन ज़्यादा था। लोग सेहतमंद थे और हम ज़्यादा काम करते थे। ठंडे देशों को बढ़ी हुई गर्मी का फ़ायदा मिला जबकि गर्म देशों को इसका दंड भोगना पड़ा। तापमान के कारण आर्थिक गतिविधियाँ कई तरीक़ों से प्रभावित होती हैं। उदाहरण के लिए खेती को लीजिए। ठंडे देशों में सर्दियों के कारण खेती के लिए बहुत सीमित समय होता है दूसरी तरफ़ इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि तापमान ज़्यादा बढ़ने पर फसल की पैदावार तेज़ी से घटती है। इसी तरह तापमान बढ़ने पर श्रमिकों की उत्पादकता घटती है। उनका दिमाग़ कम चलता है और आपसी झगड़े बढ़ जाते हैं।
7) पर्यावरण बचाने को केवल सम्मेलन बुलाना, करना कुछ नहीं
लगभग चालीस साल के अंतराल में कई सम्मेलन आयोजित किये गये। भिन्न-भिन्न नामों से बैठकें बुलाई जाती रही लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकलता है।
8) कार्बन उत्सर्जन का मुख्य कारण गाड़ियाँ, कारखाने, एसी, फ्रिज, रोड निर्माण, बिल्डिंग, प्लास्टिक इत्यादि
हम अगर आज अपनी अमीरी का नुमायिश करना छोड़ पहले पर्यावरण के लिए सोचें तो ही कुछ हो सकता है वरना एसी घर, एसी ऑफि़स, एसी गाड़ी किसे नहीं भा रही। मुख्य रुप से जीवन शैली, जीवाश्म ईंधन, औद्योगिकीकरण।
यदि वर्तमान गति से पर्यावरण प्रदूषण जारी रहा तो आने वाले 75 वर्षों में पृथ्वी के तापमान में 3-6 C की वृद्धि हो सकती है। जिस कारण बर्फ के पिघलने से समुद्री जल-स्तर में 1 से 1.2 फीट तक की वृद्धि हो सकती है और मुम्बई, न्यूयार्क, पेरिस, लन्दन, मालदीव, हालैण्ड और बांग्लादेश जैसे देशों के अधिकांश भूखण्ड समुद्र में जलमग्न हो सकते हैं। विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कौन? जनसंख्या नियंत्रण नहीं हुआ तो आज पचास डिग्री ही तापमान है कल खौलने के लिए तैयार हो जाए।
भूमंडलीय ऊष्मीकरण का अर्थ पृथ्वी की निकटस्थ सतह, वायु और महासागर के औसत तापमान में 20वीं शताब्दी से हो रही वृद्धि और उसकी अनुमानित निरंतरता है। पृथ्वी की सतह के निकट विश्व की वायु के औसत तापमान में 2019 तक 100 वर्षों के दौरान 0.74 ± 0.18°C की वृद्धि हुई है। असंतुलन का शिकार हम हो रहे क्योंकि हम बोल पा रहे लेकिन जिसे असंतुलित कर रहे वे बेजुवान है पर दरियादिली से भरपूर है। हम आज जिस मोड़ पर आ चुके हैं वहाँ से पता नहीं अगर लौटें भी तो क्या पता लौट पाएँगे कि नहीं क्योंकि इस ब्रह्मांड में हम सबसे नसीब वाले थे कि पृथ्वी पर जन्म लिये मगर क्या पता था कि हम हीं इसके विध्वंसक बन जाएँगे। अब समय आ गया है कि हम तय करें कि हमें भयंकर विकास चाहिए या पर्यावरणीय सुरक्षा।
नम्रता मिश्रा
मध्य विद्यालय मदरौनी
रंगरा भागलपुर
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बहुत बढ़िया आलेख। धन्यवाद👌👌
ReplyDeleteBahot achchha job mam
Deleteबहुत बहुत सुंदर वह सकारात्मक लेख। धन्यवाद।
ReplyDeleteआपने बहुत सुन्दर और वर्तमान समयानुकूल प्रभावकारी आलेख लिखा है। वाकई ग्लोबल वार्मिंग के लिए मानव स्वयं जिम्मेदार है।अत: हमें सकारात्मक सोच अपनाकर यथार्थ के धरातल पर उसे क्रियान्वित करनी होगी।
ReplyDeleteआप की लेखनी आवश्यक एवम् समसामयिक है । भारत सरकार को जनसंख्या नियंत्रण पर जल्द कानून लाना चाहिए ,जंगलों का क्षेत्रफल बढ़ाना चाहिए एवम् सौर उर्जा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । 💐👍
ReplyDeleteNice information 👌👌👌👌
ReplyDeleteअतिसुंदर!
ReplyDeleteग्लोबल वार्मिंग आज पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं में सर्वप्रमुख है या कहें तो पर्यावरण से जुड़ी अधिकांश समस्याओं का कारण है। बढ़ती जनसंख्या के साथ साथ हमारे खान पान संबंधी बदले व्यवहारों ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है। यदि समय रहते हम न चेते तो हमें अंधकारमय भविष्य का सामना करना पड़ सकता है। समसामयिक विषय पर उपयोगी लेख हेतु बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं....
ReplyDeleteInformative content
ReplyDeleteNice information namrta jee ke dwara.
ReplyDeleteइस आलेख को पढ़कर मेरा ज्ञानवर्धन हुआ, इसके लिए आभार प्रकट करता हूं। यदि संभव हो तो इस तरह के समसामयिक लेख लिखने का प्रयास करते रहें धन्यवाद !
ReplyDeleteVery nice 👌👌
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