हमारी पहचान-चाँदनी झा - Teachers of Bihar

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Friday 19 June 2020

हमारी पहचान-चाँदनी झा


          हमारी पहचान
            हम हिंदुस्तान में रहते हैं। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है परंतु गौरव की भाषा नहीं? हम हिंदी को गौरव की भाषा नहीं मान पाते क्यों? और इसके विपरीत अंग्रेजी हमारे लिए गर्व का विषय बन जाता है। साथ ही हम यदि अंग्रेजी नहीं जानते हैं तो हमारा सारा ज्ञान सारा आत्मविश्वास ही खत्म हो जाता। हिंदी की महत्ता और अंग्रेजी न बोल पाने के लिए जो झिझक होती उनके प्रति मेरा विचार निम्न है।
          हम लोग जिस समय पढ़ रहे थे और अभी भी, अंग्रेजी अनिवार्य विषय नहीं था और न ही है। इस भाषा में पास करना जरूरी नहीं था। अधिकतर लोग उस भाषा या विषय को पढ़ते हैं जो हमारे पाठ्यक्रम में हो या जिसे पास करना जरूरी हो  इसलिए हम अंग्रेजी सीख नहीं पाते या अच्छी अंग्रेजी बोलने के कौशल का विकास नहीं हो पाता। हम जानते हैं हमारा भारत बहुभाषी देश है। "त्रिभाषा" सूत्र हमारे देश के संविधान में पारित है। अंग्रेजी, हिंदी एवं एक क्षेत्रीय भाषा। वैसे भी हम जिस क्षेत्र में रहते हैं, हमारी क्षेत्रीय भाषा का हमें संपूर्ण ज्ञान या यूं कहें बिना पढ़े लिखे भी अपने क्षेत्रीय भाषा में लोग दक्ष होते हैं। बच्चे जब विद्यालय जाना प्रारंभ करते हैं तो हिंदी भाषा बोलने-सुनने को मिलता है। साथ ही अंग्रेजी भी पढ़ाया जाता है और छठी कक्षा से प्राचीन और देव भाषा कही जाने वाली संस्कृत भाषा को भी पढ़ा जाने लगता है।
         मैं यह स्पष्ट करना चाहती हूँ कि आप संस्कृत नहीं जानते हैं तो कोई बात नहीं। उर्दू यदि आपकी भाषा नहीं है या आपको नहीं आती तो भय की कोई बात नहीं। बांग्ला, उड़िया आदि भाषा तो हमारे पाठ्यक्रम में ही नहीं है। तो जानने या आत्मसम्मान से जोड़ने की कोई बात है ही नहीं। परंतु 1757 ई. से भारत में आई अंग्रेजी भाषा का अंग्रेजी भाषा में संपूर्ण दक्ष न होना हमारे ज्ञान में कमी को दर्शाता है। हम शिक्षक हैं, हमें ज्ञान का भंडार कहा जाता है तो हम इस भंडार में विषयागत ज्ञान, शिक्षण कौशल आदि चीजों का समावेश करते हैं । साथ ही शिक्षक समाज से इतर लोगों के लिए भी यह कुंठा मिटनी चाहिए न कि हम यदि एक ऐसी भाषा जिसे हमारे कोर्स में महत्व न दिया गया हो अचानक से हमारे प्रतिष्ठा का विषय बन जाए। सोचने वाली बात है? साथ हीं हम बच्चों को संदेश दे सकते हैं, आप अंग्रेजी जरूर सीखें परंतु आप हिंदी लेकर पश्चाताप न करें क्योंकि यह हमारी मातृभाषा है। इसे कम न समझें
          14 सितंबर को हम लोग हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं। इसकी समृद्धि और उन्नति का संकल्प लेते हैं परंतु इसके विपरीत हम अंग्रेजी नहीं जानते हैं तो अपने आप को कुंठित और अज्ञानी समझ लेते हैं। हमारा संदेश यह नहीं है कि हम अंग्रेजी न सीखे, न बोले परंतु यदि आपको अंग्रेजी नहीं आती तो अब तनिक भी मन छोटा न करें। हम संस्कृत भी तो आसानी से नहीं बोल पाते हैं तो कुंठा नहीं होती? बस अंग्रेजी को भाषा ही रहने दें। प्रतिष्ठा न बनाएँ। अपने आपको शर्मिंदा न करें और अच्छी हिंदी हमारी पहचान है। मैं अपना भी उदाहरण देती हूँ। अंग्रेजी का ज्ञान है परंतु अच्छी अंग्रेजी बोलने का कौशल विकसित नहीं है  फिर भी जहाँ भी गई हूँ हिंदी में ही अपनी बातों को व्यक्त कर अच्छा सम्मान पाई हूँ। हमारी सोच होनी चाहिए, ज्ञान का विकास न कि हम अपनी कमियों के कारण कुंठित होकर अन्य ज्ञान जो हमारे पास है, उस गौरव को महसूस न कर पाएँ। अच्छी हिंदी, समृद्ध हिंदी, के साथ हम अपनी पहचान अपने ज्ञान से कराएँ साथ में अंग्रेजी भी सीखें। जैसे संस्कृत भाषा का ज्ञान है परन्तु न बोल पाने का गम नहीं उसी तरह अंग्रेजी की आरंभिक और पढ़ने लायक समझने लायक जानकारी तो हो ही जाती है। इसलिए हमारे विद्वत जन, हमारा समाज, हमारे बच्चे सबों को हमारी हिंदी भाषा आनी ही चाहिए। 
          अन्य किसी भाषा से इसकी तुलना नहीं हो सकती क्योंकि हम हिंदी भाषा के साथ बड़े हुए हैं। धीरे-धीरे अंग्रेजी भी पैठ बना रही है। जैसे स्कूल, हॉस्पिटल, डॉक्टर, गुड मॉर्निंग, प्लेट, कप, प्रॉब्लम इत्यादि। हमारे हिंदी के बीच अंग्रेजी शब्द पाँव जमा चुकी है। हम इस्तेमाल भी करते हैं लेकिन मुझे गर्व हिंदी पर ही है। यही हमारी पहचान है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी और स्वामी विवेकानंद जी ने हिंदी  भाषा के साथ ही अपनी पहचान विदेशों में बनाई थी। हम यदि अंग्रेजी में दक्ष नहीं भी हैं तो कम नहीं है।  अंग्रेजी को न जानना एक भाषा का ज्ञान न होना है न कि अशिक्षा। जिन्हें अंग्रेजी  का ज्ञान न हो तो उन्हें अशिक्षित न समझे न खुद को ही। हमें ध्यान रखना है, हमारा सर्वांगीण विकास हो, नैतिक, मानवीय मूल्य के साथ आत्मविश्वास मजबूत हो तभी हम कामयाब होते हैं। हमारा गौरव हिंदी है और हम अपनी बातों को अच्छे तरीके से हिंदी में रख पाते हैं तो यह हमारे लिए जरूरी है। 
       
        हिंदी हमारी भाषा है, है हमारी जान, 
       बोलती हूँ हिंदी, लिखती हूँ हिंदी,
       हिंदी हमारी पहचान है,
       हिंदी और हिंदुस्तान ही है हमारा अभिमान।

चाँदनी झा
मध्य विद्यालय बिहमा 
तारापुर मुंगेर 

21 comments:

  1. बहुत सुंदर , विचारणीय औरअनुकरणीय विचार

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  2. 💐💐 हिंदी नहीं हमारी हार

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  3. बहुत ही सुंदर विचार हैं हम लोगों को इस पर अमल करना चाहिए।
    जय हिंद जय हिंदी

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  4. बहुत अच्छा। आपके सुन्दर प्रयास से खुद को भी प्रेरणा मिली। धन्यवाद। मेनी मेनी थैंक्स टू यू।

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  5. Replies
    1. जी mam धन्यवाद💐💐

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  6. आत्मसम्मान के धनी आत्मविश्वास भरे विचार को बहुत-बहुत ही सुन्दर तरीके से प्रस्तुत करनें के लिए अपने चांदनी जी को बहुत-बहुत धन्यवाद एवं ढेरों सारी शुभकामनाऔं के साथ बहुत-बहुत बधाई एवं सहृदय आभार 👌👌👌👌

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  7. 👌👌👌👌👌👌👌👌
    EXCELLENT
    अरविंद कुमार पाण्डेय
    बेलहर (बाँका )

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  8. बढ़िया आलेख।

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  9. बढ़िया लिखा
    मनोज कुमार दुबे
    बलिया / सीवान

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  10. बहुत ही सुंदर सटीक और प्रेरणा दायक आलेख बहुत बहुत धन्यवाद

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  11. बहुत बेहतरीन विचार
    हिंदी है हम वतन है हिंदुस्ता हमारा

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  12. नीरज कुमार19 June 2020 at 22:57

    वाह.....हकीकत से रूबरू��

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  13. बहुत अच्छा लिखा है मैम आपने

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    1. जी धन्यवाद सर🙏🙏

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  14. बहुत ही सुंदर लेख आपने लिखा है

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