वर्तमान परिदृश्य में वन महोत्सव की सार्थकता-राकेश कुमार - Teachers of Bihar

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Wednesday 1 July 2020

वर्तमान परिदृश्य में वन महोत्सव की सार्थकता-राकेश कुमार

वर्तमान परिदृश्य में वन महोत्सव की सार्थकता 
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          सर्वविदित है कि वर्तमान परिदृश्य ने आज पूरी दुनियाँ अर्थात् वैश्विक स्तर पर एक प्रश्न छेड़ दिया है कि क्या हम वाकई इतने विकसित हो गए हैं या हमारा विज्ञान इतना तरक़्क़ी कर गया है कि "प्राकृतिक संसाधनों" का दोहन कर जो विकसित होने का पैमाना तैयार करते हैं अर्थात् बड़ी-बड़ी इमारत जिसे हम विकास का मापदंड मानते हैं, उस दोहित प्राकृतिक संसाधनों की भरपाई हम कर लेंगे? इसे हम दुर्भाग्य कहें या "प्राकृतिक संसाधनों" की उपयोगिता की आज तक हम प्राकृतिक संसाधनों का कोई विकल्प नहीं ढूंढ पाए हैं?
          1950 ई.भारत में वृक्षारोपण को प्रोत्साहन हेतु उस समय के कृषि मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने वन महोत्सव की शुरुआत की थी। जिसे हम पेेड़ों के त्योहार के नाम से भी जानते हैं। हर साल हमारे देश में जुलाई के प्रथम सप्ताह में विस्तृत तरीक़े से "वन महोत्सव" मनाया जाता है।
          हमारे जीवन में पेड़ों का सदैव महत्व रहा है। पेड़ -पौधे हमारे जीवन में एक बहुत हीं महत्वपूर्ण एवं अहम भूमिका का निर्वहन करते हैं । वनों अर्थात् पेड़ों से हमारे जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है जो हमें जीवित रहने में मदद करती है। वर्तमान आधुनिक जीवनशैली में  "वन महोत्सव" अर्थात् पर्यावरण एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है क्योंकि बड़े पैमाने पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर उनके स्थान पर मानव निर्मित विकास ने वैश्विक स्तर पर एक नई बीमारी का ईजाद किया जिसका नाम है प्रदूषण। इस बीमारी ने प्रत्यक्ष रूप से हमारे ऑक्सीजन क्षमता पर प्रहार किया और हमारे लिए साँस संबधी बीमारी को उपहार में दिया।
आज हम प्राकृतिक सौंदर्य की खोज एवं वन विहार हेतु अपने घर से सैकड़ों मिल दूर जाते हैं और आत्मसंतुष्टि का भाव महसूस करते हैं ।
         अब प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों ? अब समय आ गया है कि हम अभी से एक मनोरम, सुंदर और प्राकृतिक संसाधनों से लैस परितंत्र का निर्माण हेतु अग्रसर हो जाएँ और इस हेतु राष्ट्र निर्माता "हम शिक्षकों" की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि कई भविष्य का निर्माण हमारे हाथों से होता है अर्थात् किसी भी जागरूकता की नींव प्रारंभिक स्तर पर हीं शुरू की जाती है जो हमारे विद्यालय में होती है। हमें इस मानक के साथ आगे बढ़ना होगा कि पर्यावरण को जानने की उत्सुकता हम सबमें जन्मजात होती है। हम हर क्षण उसका अध्ययन करते रहते हैं। बच्चा भी इसका अपवाद नहीं है। पर्यावरण से हमारा अटूट रिश्ता है। हम हर पल पर्यावरण से प्रभावित होते रहते हैं।
          हमारे बच्चे अपने पर्यावरण को जानना चाहते हैं, उसे समझना चाहते हैं तथा उससे अपना घनिष्ट संबंध बनाए रखना चाहते हैं। उनमें अपने प्राकृतिक संपदा पेड़ -पौधे, वनों के महत्व, उससे होने वाले लाभ तथा अपने पर्यावरण के साथ समायोजन करने तथा उसे सुरक्षित रखने की क्षमता विकसित करने के लिए आवश्यक है कि वे अपने प्राकृतिक धरोहर को जानें, समझे, महत्व दें और अपने अंदर ऐसी कुशलता विकसित करें कि पर्यावरण अर्थात् वनों का संरक्षण और संवर्धन हो सके।
          एक सामान्य सी मान्यता है कि जब हम कठिनाई का सामना करते हैं तो उससे संदर्भित पहलू पर ज्यादा संजीदगी प्रदर्शित करते हैं । हाल के दिनों पर हम गौर करें तो जनजीवन से संबंधित कुछ समस्या वर्षा में कमी, गिरते भू-जल स्तर, गर्मी में बढ़ोतरी और वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी इन सबने पूरे मानव जाति के अस्तित्व को हीं संकट में डाल दिया  तो हमारे सामने अपने प्रकृति प्रदत्त धरोहर को हीं संरक्षित करने का विकल्प उपयुक्त लगा। आने वाला समय मानव जाति पर कैसा प्रभाव डालेगा इस तथ्य को आज से 70 वर्ष पूर्व हीं भाँप लिया गया था और अपने अमूल्य जीवनदायिनी पेड़-पौधों को संरक्षित करने हेतु "वन महोत्सव" की शुरुआत कर दी गई थी। वर्तमान समय में हम मानव निर्मित संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन इसके साथ-साथ हमको यह भी सोचना होगा कि क्या हम जो कृत्रिम संसाधनों का मूल्य सहित इस्तेमाल कर रहे हैं क्या उसे प्रकृति से निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं।
          आज हमारे राज्य(बिहार) में भी प्राकृतिक धरोहर हेतु व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। हमें ज्ञात है कि पेड़ों की लगातार कटाई अब लंबे समय से एक समस्या है और इसके परिणामस्वरूप हमारे लिए वनों के संरक्षण के लिए जागरूकता पैदा करना बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। इसके लिए हमलोगों(शिक्षक) के द्वारा देश के भावी नागरिकों (बच्चों) को स्थिति की भयावहता से परिचित कराया जाए तथा इसके प्रति उन्हें संवेदनशील किया जाए। पेडों का संरक्षण एवं संवर्द्धन अनिवार्य है, यह भाव बच्चों में बचपन से हीं भरना आवश्यक है।
          तो चलिए न पेड़ लगाने के लिए "वन महोत्सव" का क्यों इंतज़ार करें  बल्कि हर खुशी के मौके पर पेड़ लगाकर वन महोत्सव मनाएँ ताकि मानवता का भला हो सके और वातावरण बेहतर हो सके साथ ही साथ वन महोत्सव को सार्थकता प्रदान करें और ये संकल्प लें कि-
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राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर, पटना 

6 comments:

  1. बहुत उपयोगी और विचारणीय आलेख। वास्तव में वन जीवन का आधार है।

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  2. बहुत-बहुत सुन्दर!

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  3. बहुत अच्छी व प्रेरणादायक विचारणीय आलेख है। वाकई वन हैं तो हम हैं।यह हमारे आर्थिक जीवन का मूल आधार है। बहुत बहुत धन्यवाद सर!

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