वन महोत्सव-हर्ष नारायण दास - Teachers of Bihar

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Tuesday, 7 July 2020

वन महोत्सव-हर्ष नारायण दास

वन महोत्सव

          वृक्ष हमारे जीवन दाता होते हैं जो हमारे वातावरण को सन्तुलित रखने का कार्य करते हैं। "वन महोत्सव" प्रति वर्ष भारत में जुलाई महीने में मनाया जाता है। 1950 ई. में पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक परिवेश के प्रति संवेदनशीलता को अभिव्यक्त करने वाला एक आन्दोलन शुरू हुआ था जिसका सूत्रपात तत्कालीन कृषि मन्त्री कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी ने किया था। वनों को विनाश से बचाने एवं वृक्षारोपण योजना को वन-महोत्सव का नाम देकर अधिक से अधिक लोगों को इससे जोड़कर भू-आवरण को वनों से आच्छादित करने का एक अच्छा नया प्रयास है। हाँलाकि यह कार्य एवं नाम दोनों ही नये नहीं हैं। हमारे पवित्र वेदों में भी इसका उल्लेख है। गुप्तवंश, मौर्यवंश और मुगलवंश में भी इस दिशा में सार्थक प्रयास किये गए थे। इसका वर्णन इतिहास में उल्लिखित है।
          पण्डित जवाहरलाल नेहरू, डॉ०राजेन्द्र प्रसाद एवं मौलाना अबुल कलाम के संयुक्त प्रयासों से देश की राजधानी दिल्ली में जुलाई के प्रथम सप्ताह को वन महोत्सव के रूप में मनाया गया किन्तु इस कार्य में विविधता नहीं रख सके। यह पुनीत कार्य कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी द्वारा सम्पन्न हुआ जो आज भी प्रति वर्ष हमलोग वन महोत्सव के रूप में मनाते आ रहे हैं।
शास्त्रों में भी वन की महत्ता बताई गई है--- 
तडाग कृत वृक्ष रोपी इष्ट यज्ञश्च यो द्विजः
एते स्वर्गे महियन्ते ये चान्ये सत्यवादिनः।
          अर्थात तालाब बनवाने वृक्षारोपण करने और यज्ञ का अनुष्ठान करने वाले व्यक्ति को स्वर्ग में महत्ता दी जाती है इसके अतिरिक्त सत्य बोलने वालों को भी महत्त्व मिलता है।
पुष्पिताः फलवन्तश्च तर्पयन्तीह मानवान।
वृक्षदं पुत्रवत वृक्षा स्तार यन्ति परत्र च।।
          फलों और फूलों वाले वृक्ष मनुष्यों को संतुष्टि प्रदान करते हैं साथ ही वृक्षारोपण करनेवाले व्यक्ति का परलोक में वृक्ष ही तारण करते हैं। वनों से जुड़ी हुई कई कहानियाँ भारतीय संस्कृति से जुड़ी हुई है। भारतीय संस्कृति में वृक्षों, वनों, पौधों और पत्तों को भगवान मानकर पूजा जाता रहा है। हमारे धर्मशास्त्रों में ऋषि-मुनियों ने वृक्षारोपण को किसी यज्ञ के पुण्य से कम नहीं माना है। धार्मिक कहानियों की मानें तो रामायण काल में भगवान श्रीराम का वनों में निवास करना और वृक्षों को अपना आश्रय बनाना ही उनके लिये प्रकृति प्रेम था। कण्व की पुत्री शकुन्तला का पूरा बचपन वृक्षों की छाया में ही व्यतीत हुआ। विष्णु पुराण में भी उल्लेख  किया गया है कि एक वृक्ष लगाना और उसका पालन पोषण करना सौ पुत्रों की प्राप्ति से बढ़कर पुण्य माना गया है। इसके अलावे चरक संहिता में भी वृक्ष का प्राकृतिक औषधियों और जड़ी बूटियों के रूप में चिकित्सकीय दृष्टि से उपयोग बताया गया है। वन हमारे "पारिस्थितिक तंत्र" को सन्तुलित करने में मदद करते हैं। साथ ही पर्यावरण पर पड़ने वाले कार्बन के प्रभाव को कम करने में सहायक होते हैं।
          आइये इस बार वन महोत्सव पर जनसंख्या और भौतिक वादी व्यवस्था के चलते वृक्षों की अन्धाधुन्ध हो रही कटाई को रोकने का हरसंभव प्रयास करें। काटे गए पुराने वृक्षों के स्थान पर नए वृक्ष को लगाने पर ध्यान दें। अन्यथा वह दिन दूर नहीं कि जब प्रकृति के  प्रकोप से हर मनुष्य प्रभावित होगा और अपने जीवन को खतरे में डाल लेगा।
          जैसा कि आप अभी देख रहे हैं बिन बादल ही वर्षा हो जाती है। बिन घर्षण के ही तड़ित वर्षण हो जाती है। सैकडों की संख्या में लोग मर जाते हैं। कुसमय वर्षा हो जाती है, जब पानी चाहिये तब आग बरस जाती है। ये सब प्रकृति का प्रकोप नहीं तो और क्या है? आज जो पूरे विश्व में करोना महामारी फैला हुआ है, वह भी प्रकृति का ही आक्रोश है। अगर मानव वृक्षारोपण नहीं करेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब लोग यात्रा के क्रम में पानी के बोतल की तरह ऑक्सीजन के सिलेण्डर भी अपने कंधों पर लाद कर चलेंगे।
          तो आइये आज हमलोग वन महोत्सव दिवस पर प्रण करें कि अपने या अपने सन्तानों के "जन्मदिन पर या परिणय दिवस" पर एक-एक वृक्ष लगावें और प्रकृति को सुन्दर और स्वच्छ बनावें और अपना जीवन सवारें।माननीय मुख्यमंत्री जी के कार्यक्रम जल जीवन और हरियाली को सफल बनावें।
        
हर्ष नारायण दास
प्र. उ. मध्य विद्यालय घीवहा 
फारबिसगंज अररिया

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