Wednesday, 8 July 2020
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प्रकृति की ओर लौटें-रूही कुमारी
प्रकृति की ओर लौटें
धूप का जंगल, नंगे पाँवों, इक बंजारा करता क्या ?
रेत के दरिया, रेत के झरने, प्यास का मारा करता क्या ?
बादल-बादल आग लगी थी, छाया तरसे छाया को,
पत्ता-पत्ता सूख चुका था, पेड़ बेचारा करता क्या ? "
शायर अंसार कम्बरी की ये पंक्तियाँ घोर पर्यावरणीय संकट पर प्रकाश डालती हैं, जिनमें प्रासंगिकता झलकती है। पर्यावरण मनुष्य के जीवन का आधार है। बिना स्वस्थ पर्यावरण के मानव का जीवन संभव नहीं है। वैश्विक रूप से अंधाधुंध संसाधनों के दोहन से पर्यावरण की शुद्धता समाप्त होती नज़र आ रही है। सच तो यह है कि आज इस यांत्रिक युग में हमने भौतिक सुख के नाम पर बहुत कुछ अर्जित कर लिया है किंतु इंसानियत के दौर में पीछे होते जा रहे हैं। धन-दौलत, बंगला-गाड़ी आदि ये सारी भौतिक वस्तुएँ हमें बाहरी सुविधा तो प्रदान करती है मगर आत्मीय तृप्तता नहीं। इन सुविधाओं के बावज़ूद मनुष्य अक्सर तनावग्रस्त ही रहता है। हम इनपर इतना ज्यादा निर्भर होने लगे हैं कि बिना इन वस्तुओं के जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। गाँधी जी का यह कथन कि "प्रकृति हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए है, लालचों को नहीं " अब इस रूप में प्रासंगिक होने लगी कि प्रकृति सिर्फ हमारी लालचों को पूरा करने का माध्यम बन कर रह गई है, आवश्यकताओं से तो हमारा पेट कब का भर चुका है।
हम जिस तरह से प्रकृति की उपेक्षा कर रहे हैं निकट भविष्य में इसके और भी भयंकर परिणाम हमें देखने मिलेंगे। हाल ही के दिनों में घटित होने वाली गैस त्रासदी, जंगलों में लगने वाली आग, सूखा व बाढ़ की समस्या, कई तरह की नई जानलेवा बीमारियाँ, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, ओज़ोन क्षरण, अम्ल वर्षा, आदि ये सब लालच के ही दुष्परिणाम हैं। कुछ दिनों पूर्व प्रकाशित हुए ग्लोबल एनवायरनमेंट परफॉर्मेंस इंडेक्स में भारत 120वेें(2008) स्थान से लुढ़कते हुए 168वें स्थान पर पहुँच गया है। आईयूसीएन के मुताबिक लगभग 12 प्रतिशत से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ पहले से ही खत्म हो चुकी हैं। भारत में मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण है। आज पेड़-पौधे, जीव-जंतुओं की हज़ारों प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं। सदियों से सभ्यता की साक्षी रही नदियाँ भी विलुप्त होती जा रही हैं। प्रकृति से छेड़छाड़ करने पर हम सावन महीने में बारिश के लिए तरसेंगे तथा सर्द मौसम में ठंड के लिए। यदि हम अपने लाइफ स्टाइल में बदलाव अभी भी नहीं लाते हैं तो इसका दुष्परिणाम बहुत जल्द देखने को मिल सकता है। आज हमारे पास सांँस लेने के लिए ना तो शुद्ध हवा रह गई है और ना ही पीने ले लिए शुद्ध जल। एयर प्यूरिफायर और बोतल बंद पानी के भरोसे हम कब तक रह सकेंगे? हवा में जहर घुला हुआ है तो नदी तथा समंदर प्लास्टिक और कचरों से पटा पड़ा है।
कई पेड़-पौधे तथा जीव-जंतु हमारी संस्कृति से जुड़े हैं, जिन्हें हम आज भी पूजते हैं या इनका उपयोग किसी शुभ कार्य में किया जाता है। जैसे- नीम, तुलसी, वट, आंँवला, हल्दी आदि तथा साँप, मोर, उल्लू, हाथी इत्यादि। पौराणिक सभ्यता के मनुष्य प्रकृति के ज्यादा करीब थे। उनकी जीवन प्रत्याशा भी अपेक्षाकृत बेहतर थी। हमें भी प्रकृति की ओर लौटना चाहिए। इसका तात्पर्य यह बिल्कुल नहीं है कि हमें भी गुफाओं में वास करना चाहिए बल्कि हमें जरूरत है पर्यावरण के साथ सामंजस्य बैठाने की, संसाधनों का उपभोग आवश्यकतानुसार ही करने की, अपने लालच को सीमित करने की।
हमें अपने बच्चों को भी इसके बारे में सचेत करना चाहिए। उन्हें पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना चाहिए। बच्चों को अधिक से अधिक पेड़ लगाने, जल का अनावश्यक उपयोग ना करने, पशु-पक्षियों को चोट ना पहुँचाने आदि को लेकर प्रेरित कर सकते हैं। विद्यालय स्तर पर किए जाने वाले कार्यक्रमों जैसे जल दिवस, पृथ्वी दिवस, पर्यावरण दिवस आदि में पास-पड़ोस के लोगों की भागीदारी बढ़ाकर उन्हें पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जा सकता है। अतः हम अपने प्रकृति को सहेज कर ही सच्चे अर्थों में विकास कर सकते हैं।
रूही कुमारी
मध्य विद्यालय पचीरा
रानीगंज, अररिया
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बहुत अच्छी रचना है मैम। वाकई जब हम प्रकृति की ओर लौटेंगे तभी वह हमारी साथ देगी। अच्छी रचना हेतु दिल से धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका 🙏
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteप्रकृति और पर्यावरण के प्रति मानव समाज को जगाने हेतु बहुत ही सुंदर आलेख....👌👌👌
Deleteबहुत ही धन्यवाद सर आपका 😊
Deleteबहुत विचारणीय और उपयोगी आलेख। वास्तव में संतुलित पर्यावरण स्वस्थ और सुखी जीवन का आधार है। पर्यावरण संरक्षण हमारा पुनीत कर्त्तव्य है। सुंदर आलेख के लिए हार्दिक बधाई।👌👌💐
ReplyDeleteशुक्रिया 😊
DeleteVery good
ReplyDeleteThank u 😊
DeleteThanks sir 😊
ReplyDeleteप्रकृति की ओर लौटो, ये कथन रूसो ने कहा है ।आपकी की ये लेख हमे उनकी याद दिला गयी।बहुत खूब
ReplyDeleteMoral education is the first education of child.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
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