शिक्षा शिक्षक एवं शिक्षार्थी-डाॅ. सुनील कुमार - Teachers of Bihar

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Sunday, 19 July 2020

शिक्षा शिक्षक एवं शिक्षार्थी-डाॅ. सुनील कुमार

शिक्षा शिक्षक एवं शिक्षार्थी
         
          शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्व को विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है।
           आज शिक्षा बाजारीकरण का दंश झेल रही है। शिक्षा का राजनीतिक मुद्दा नहीं बन पाना, शिक्षा के गिरते स्तर का कारण है। ऐसी परिस्थिति में शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न खड़ा होना लाजिमी है। आखिर इसकी जिम्मेदारी लेगा कौन? इसके लिए न तो कोई राजनीतिक मंथन हो रहा है और न ही सामाजिक चिंतन किया जा रहा है।
          शिक्षा के बदलते परिदृश्य में शिक्षक की भूमिका काफी व्यापक हो गई है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 एवं शिक्षाविद ज्ञान की अवधारणा में व्यापक परिवर्तन की वकालत करते हैं। विभिन्न चैनलों के माध्यम से शिक्षकों को कर्तव्य बोध कराया जाता है।
          शिक्षकों के लिए शिक्षण वृत्ति एक स्वाभाविक प्रतिबद्धता हो, आनंद का कार्य मानते हों, शिक्षक अपने विषय एवं पढ़ाने के कौशल को अच्छी तरह से जानते हों, शिक्षक अपने शिक्षार्थी के स्वभाव को बेहतर तरीके से समझें आदि आदि। शिक्षकों के कर्तव्य-बोध की पहल तो होती है लेकिन अधिकार-बोध के लिए कोई आगे आने को तैयार नहीं है। इसके लिए न तो कोई राजनीतिक पहल हो रही है और न ही सामाजिक चिंतन।
          शिक्षा के बेहतरी के लिए कई योजनाएंँ चल रही हैं लेकिन उन योजनाओं की दशा और दिशा में कोई सकारात्मक पहल नहीं हो रही। एक रिपोर्ट के मुताबिक सर्व शिक्षा अभियान जो अब समग्र शिक्षा के नाम से संशोधित है, कई योजनाओं के माध्यम से स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों का रुझान स्कूलों की तरफ होना या निजी विद्यालयों की तरफ होना यह साबित करता है कि शिक्षा पाने के लिए हर कोई गंभीर है लेकिन शासकीय व्यवस्था को देखकर लोगों का मोह भंग हो रहा है। फलत: शिक्षा का ग्राफ दिन-प्रतिदिन नीचे की ओर आ रहा है। विद्यालयों में बच्चों के अनुपात में शिक्षकों का न होना, प्रारंभिक माध्यमिक एवं उससे ऊपर की शिक्षा प्रदान करने वाले विद्यालय एवं महाविद्यालयों में विषयवार शिक्षकों की कमी का आलम यह है कि बहुत विषयों के शिक्षक या व्याख्याता के पद विगत कई वर्षों से रिक्त पड़े हैं। फिर भी बच्चों का नामांकन उस विषय में धड़ल्ले से हो रहा है। संबंधित विषय का पठन-पाठन पूरी तरह बंद होने के बावजूद बच्चे लिखित व प्रायोगिक परीक्षा में सम्मिलित हो रहे हैं।
          देशभर में एक तरह की शिक्षा प्रणाली लागू करना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। अक्सर शिक्षकों का अपनी माँगों को लेकर हड़ताल में रहना,  बेवजह विद्यालय को बंद रखना, शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में उलझाए रखना जैसी विषम परिस्थिति में शिक्षा, शिक्षक एवं शिक्षार्थी के गिरते स्तर को कैसे सुधारा जा सकता है। हमारे देश में तो गुरु को देवतुल्य माना गया है। कहा भी गया है-
          शिक्षक समाज के सर्वाधिक संवेदनशील इकाई है। दुनियाँ के अधिकांश विकसित और विकासशील देशों में शिक्षकों को आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और प्रशासनिक दृष्टि से श्रेष्ठ माना जाता है। साथ ही ऐसी शिक्षा नीति बनाई जाती है जिसमें उनका मनोबल सदैव ऊँचा बना रहे। जब तक अनुभवजन्य ज्ञान और कौशल को महत्व नहीं दिया जाएगा तब तक शिक्षा के लुढ़कते स्तर को नही रोका जा सकता। इसके लिए शिक्षकों की दक्षता और मनोबल बनाए जाने की भी आवश्यकता है। शिक्षकों के व्यक्तित्व विकास की प्रक्रिया संहिता से प्रशिक्षण संस्थानों में जाने का मौका देने की आवश्यकता है जहाँ शिक्षकों को अपने अंदर झांकने और कुछ बेहतर कर गुजरने की प्रेरणा मिल सके।
         वर्तमान में शिक्षण की विधियाँ राज्य स्तर से तय की जाती हैं। कक्षा-कक्ष शिक्षण कौशलों को या तो नकार दिया जाता है या उन्हें परिस्थितिजन्य मान लिया जाता है। आज के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा के उद्देश्यों को सामाजिक रूप से परिभाषित कर पुनरीक्षित करने की आवश्यकता है। शिक्षकों को शिक्षक के रूप में अवसर मिले, समान कार्य के लिए समान कार्य परिस्थितियाँ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में और मानवाधिकार घोषणापत्र के अनुच्छेद 21, 22 और 23 में वर्णित होते हुए भी नाना नामधारी शिक्षक मौजूद हैं। एक ही विद्यालय में अनेक प्रकार के शिक्षकों के पदस्थ रहते सभी के मन में घोषित-अघोषित तनाव के कारण भी पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है।
           इस विषम परिस्थिति को गंभीरता से समझे बगैर और परिस्थितियों में सुधार किए बगैर भला शिक्षा, शिक्षक एवं शिक्षार्थी में सुधार कैसे संभव होगा?


✍️डॉ. सुनील कुमार
डिस्ट्रिक्ट मेंटर औरंगाबाद
राष्ट्रीय इंटर विद्यालय दाउदनगर, औरंगाबाद

2 comments:

  1. आपने बिल्कुल ठीक लिखा है।धन्यवाद ।

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    1. आपने तो शिक्षा व्यवस्था को उसके तह तक जाकर उसकी वास्तविकता को रखते हुए हम शिक्षकों के कर्तव्यवोध को रेखांकित कर किसी भी प्रकार के अनिर्णय की अवस्था से परे कर दिया। ऐसे सारगर्भित लेख के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

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