Friday, 14 August 2020
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वास्तविक शिक्षा एक सार्थक जीवन-नसीम अख्तर
वास्तविक शिक्षा एक सार्थक जीवन
शिक्षक होने के नाते मैंने विज्ञान सीखा, गणित का स्वाद लिया, अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त किया, भूगोल आदि का भी अध्ययन किया परन्तु जब मैं एक क्षण के लिए एकान्त होता हूंँ तो सोचता हूँ कि मुझे इस अध्ययन एवम शिक्षा से क्या फ़ायदे हुए? मैंने यह सारा ज्ञान क्यों लिया? मैंने इस शिक्षा से दूसरों का क्या भला किया?
विषय वस्तु को निरंतर आगे बढ़ाते हुए शिक्षा के संबंध में हम जानते हैं कि परंपरागत रुप से मनुष्य को प्राप्त होने वाले ज्ञान और संस्कारों को शिक्षा कहते हैं।
ज्ञातव्य है कि शिक्षा की महत्ता स्वरूप, उद्देश्य, लक्ष्य इत्यादि पर सदैव प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक चर्चा के साथ उसके वास्तविक स्वरूप को खोजने का प्रयास किया जाता रहा है। महान शिक्षाविद डाॅ. ए. एस. अलकेतर के अनुसार वैदिक काल से लेकर आज तक भारत में शिक्षा का मूल तात्पर्य रहा है कि यह प्रकाश का वह स्त्रोत है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्र में हमारा सच्चा पथ प्रदर्शन करती है।
उपरोक्त कथनों में अभी तक हमने केवल शिक्षा और उसकी प्रक्रिया पर चर्चा की परन्तु आलेख वास्तविक शिक्षा पर केन्द्रित है जो इसे विशेष अर्थ प्रदान करता है। हमारे देश के ऋषि मुनियों ने "सा विद्या या विमुक्तये" का ज्ञान देते हुए यह कहा था कि वास्तविक शिक्षा वह होती है जो मुक्ति का मार्ग प्रदान करे, जिसका अर्थ धर्म के साथ जीविकोपार्जन एवम धर्मयुक्त कर्मों की महत्ता से है। वास्तविक शिक्षा वह है जो विद्यार्थियों में सत्यवक्ता, सच्चरित्र, निर्भय, नम्र और दयावान, ईमानदारी इत्यादि गुणों का विकास कर उन्हें सदाचार, सादा जीवन, उच्च विचार, आत्म बलिदान एवं ब्रह्म विद्या का पाठ पढाती है तथा जीवन के प्रत्येक पल को आनंद से जीने का साहस देती है। प्रत्येक विद्यार्थी में कुछ महत्वपूर्ण गुण होते हैं और वास्तविक शिक्षा का उद्देश्य उसके अंदर के विशेष महत्वपूर्ण गुण को पहचानना होता है।
आज शिक्षा का उद्देश्य रोजगार प्राप्त करने के साथ औपचारिक मात्र ही है जिसमें चारित्रिक मूल्यों एवम संपदाओं का नितांत अभाव पाया जाता है। विदेशी संस्कृति से प्रभावित होने के कारण वर्तमान शिक्षा महँगी और खर्चीली भी है जो विद्यार्थियों को अपने वास्तविक लक्ष्यों से दूर करती है जिसका नतीजा यह है कि गुणात्मक विकास के साथ समाज में फैली समस्याओं का निपटारा नहीं हो पा रहा है। शिक्षा के स्वरूप के संबंध में हम अभी तक यह जानते हैं कि समस्त बंधनों से मुक्त कर जीवन जीने की तैयारी करते हुए पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान का उपार्जन कर संचित ज्ञान के भंडार को आगे प्रेषित कर साक्षरता तक सीमित रहना परंतु वास्तविक शिक्षा महज साक्षरता, जीवन-यापन, ज्ञान का संचय तक सीमित नहीं है बल्कि यह चरित्र, संस्कृति विकास, आध्यात्मिक अनुभव, मानवता के साथ सर्वांगीण विकास और संतुलित जीवन पर भी बल देती है। वास्तविक शिक्षा से परिपूर्ण मनुष्य जीवन के उद्देश्य प्राप्त करने के साथ-साथ विनम्र, सहनशील समाज में अपने मौलिक कर्तव्यों पर बल देते हुए समाज के लोगों/ छात्र/छात्राओं/ बच्चों के जीवन को संस्कारवान और अर्थपूर्ण बनाते हैं।
वास्तविक शिक्षा जात-पात, रंगभेद और अमीरी-गरीबी से परे है। संत कबीर दास ने वास्तविक शिक्षा को ऐसे समझा-
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
उनका यह दोहा आज भी खोज का विषय है। आज अति आवश्यक हो गया है कि वर्तमान में प्रचलित शिक्षा स्वरूप को वास्तविक शिक्षा से जोड़ा जाय। इसके लिए निम्न बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है:-
2) मूल्य आधारित पाठ्यक्रम
3) चरित्र निर्माण एवं संस्कार पर विशेष बल
4) व्यावहारिक शिक्षा की ओर ध्यान देना।
आज हमें "तमसो मा ज्योतिर्गमय" नामक दीपक को प्रज्वलित कर वास्तविक शिक्षा के मूल्यों को समझने की आवश्यकता है, तभी हम अपने वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त कर सकेंगे।
नसीम अख्तर
बी० बी० राम +2विधालय
नगरा, सारण
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Very good and informative article written by you which ignited our mind to know the basic purpose of our education
ReplyDeleteVery good and informative article written by you which ignited our mind to know the basic purpose of our education
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