शान भी अभिमान भी-अभिषेक कुमार सिंह - Teachers of Bihar

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Saturday 15 August 2020

शान भी अभिमान भी-अभिषेक कुमार सिंह

शान भी अभिमान भी

          कुछ बातें बरबस याद आया करती है। एक वक्त ऐसा भी था जब भारत माता गुलामी की जंजीरों से हर तरफ जकड़ी थी। हर तरफ इंसानों का इंसान बड़ी बेरहमी से कत्ल कर रह था । चारों तरफ मौत अपना तांडव दिखा रहा था । हर तरफ कयामत ही कयामत दिखाई दे रहा था। अंग्रेज हमें अपनों के बीच इस तरह धार्मिक उन्माद के जरिए  तोड़ने, कुचलने का प्रयास कर रहे थे, मानो इंसानी जिंदगी को समाप्त करने पर आमादा हो । जहाँ एक तरफ घोड़ों के चित्कार, हाथियों की गर्जना, बंदूक और तोपों की आवाज कानों में इस तरह कोतुहल मचा रहे थे की जर्रा जर्रा काँप रहा था वहींं दूसरी तरफ भारतीय सरजमीं पर कुछ ऐसे अभूतपूर्व वीर और वीरांगनाओं ने जन्म लिया जिनका नाम भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। जिन्हें आज भी पूरा देश  आन बान शान और अदब के साथ हर वर्ष याद करता है। जिन्होंने भारत की एकता और अखंडता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर अंग्रेजों के विरुद्ध उन्हें उन्हीं की भाषा में जवाब देना प्रारंभ किया। धीरे-धीरे यह विरोध जन सैलाब में बदल गया । जिसके उपरांत भारत की बहुत बड़ी आबादी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हर तरफ से हल्ला बोल दिया। चारों तरफ आंदोलनों का दौर शुरू हो गया। उन्हीं में से एक नायक, योद्धा दूरदर्शी, वीर, जज्बाती, धैर्यवान,  तयागी व बलीदानी शायद उपमाओ  की कमी पड़ जाए  सरदार भगत सिंह थे। बचपन से उनके मन में बस और बस केवल एक ही अरमान था। इस मुल्क को ब्रिटिश शासक के गुलामी की जंजीरों से तोड़  पूर्ण स्वाधीन कराना है। इसके लिए वो किसी हद, किसी सीमा तक जाने के लिए दृढ़ संकल्पीत थे ।
          बालवीर भगत सिंह का पूरा परिवार देशभक्ति से लबरेज था। सन 28 सितंबर 1907 को पंजाब प्रांत के  बंगा गाँव  में पिता किशन सिंह और माता विद्यावती कुँवर  के आंगन में इस वीर साहसी और दृढ़ निश्चय योद्धा का अवतरण हो चुका था। पूरा परिवार भगत सिंह को बड़े अरमानों और नाजो से पाला पोशा था। वो सबों  के चहेते थे। पिता ने इस तरह से उनकी परवरिश की  मानो  बचपन से ही उनके रोम रोम में देश भक्ति की ज्वाला धधक रही हो। उन दिनों की एक वाकया है- एक दिन उनके पिता अपने खेतों में पौधा लगा रहे थे।  बरबस ही वो पूछ बैठे कि आप पौधा क्यों लगाते हैं? इन जगहों पर आप बंदूक क्यों नहीं लगाते ताकि अंग्रेजों को मारने के काम आ सके? पिता उम्मीद भरी निगाहों से भगत सिंह को देखते रह गए और उनकी आंखें गर्व से नम हो गई। जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने तो उन्हें झकझोर कर रख दिया। वो अपने गाँव से 20 किलोमीटर पैदल चलकर वहाँ पहुँचे जहाँ यह दर्दनाक और निर्मम तरीके से निहत्थे भारतीयों पर निर्दयता पूर्वक गोलियाँ चला कर उनकी हत्या की गई थी। उनके हृदय पर बहुत गहरा आधात पहुँचा। उन्होंने खून से सनी  मिट्टी को उठाकर माथे से लगाया और प्रण किया कि भारत माता को पूर्ण स्वतंत्र किये बिना चैन की साँस नहीं लेंगे। उस समय इस वीर की उम्र महज 12 साल थी।
          उनके ह्रदय मे बापू के प्रति आदर-सम्मान भी था। वह असहयोग आंदोलन के पूरजोर पक्षधर थे। लेकिन कुछ कारणों से यह आंदोलन वापस ले लिया गया जिसके उपरांत सरदार भगत सिंह विचलित हो गए। 9 अगस्त 1925 को एक ऐतिहासिक घटना हुई। ब्रिटिश सरकार का खजाना वीर भारतीय क्रांतिकारियों के द्वारा लूट लिया गया जिसे उनसे हथियार खरीदने की योजना को अंजाम दिया जाना था। जी हाँ काकोरी कांड। इसके उपरांत भी भगत सिंह के हृदय के अंदर प्रतिशोध की ज्वाला शान्त नहीं हो सकी । फिर वह तारीख आया 8 अप्रैल 1929 जहाँ असेंबली में बम फेंक कर अपना इरादा जाहिर किये क्योंकि बहरों को सुनाने के लिए धमाकों की आवश्यकता होती है। ब्रिटिश सरकार जो गहरी नींद में सोई थी उसे जगाने के लिए यह काफी था। इंकलाब जिंदाबाद के साथ स्वयं अपनी गिरफ्तारी देकर अपनी ही जान भारतीयों के नाम कर दिया। इसके बाद एक क्रांति का दौर चल पड़ा। विश्व के मानस पटल पर उनके विचार उल्लेखित होने लगे। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कितनी भी यातनाएँ दी लेकिन वह अपने इरादों से तनिक भी विचलित नहीं हो सके। उस सरदार से ब्रिटिश हुकूमत इतनी डरी हुई थी कि निर्धारित समय से पहले ही  भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी  पर चढ़ा दिया  गया जो भारतीयों के लिए एक काला दिन था। उन्होंने  हँसते-हँसते मौत को गले लगा लिया।  इस गीत के साथ- 
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है 
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है। 
          धन्य है उनके माता-पिता व परिवार जिन्होंने ऐसे वीर को भारत माता के हवाले कर दिया। वे आज की पीढ़ी के लिए सबसे चमकते हुए सितारों में से एक थे जिस पर हम सभी को नाज भी है, और अरमान भी हैं।लेकिन दुर्भाग्य देश की आजादी के कई साल बीत जाने के बाद भी जहाँ एक तरफ कई सरकारें आई और चली गई लेकिन उन्हें वो सम्मान व दर्जा न मिल सका। इससे बड़ा अफसोस और आश्चर्य भला क्या हो सकता है। उनके त्याग, बलिदान, स्वाभिमान, समर्पण से लबरेज  महान क्रांतिकारी भगत सिंह को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। उन्हें शत शत नमन।
जय हिंद!  


अभिषेक कुमार सिंह
मध्य विद्यालय जहानाबाद    
कुदरा, कैमूर(भभुआ) बिहार

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