Saturday, 15 August 2020
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भारतीय स्वतंत्रता की गाथा-भवानंद सिंह
भारतीय स्वतंत्रता की गाथा
15 अगस्त 1947 को भारत परतंत्रता की बेड़ी से मुक्त होकर स्वतंत्र हो चुका है। भारत को स्वतंत्रता प्राप्त करने में लगभग दो सौ साल लगे। इस दौरान हमारे अनेक क्रान्तिकारियों को अपनी कुर्बानी देनी पड़ी। न जाने कितनी माताओं की गोद सुनी हो गई और कितनी ही बहनें विधवा हो गई। आईए अब हम दो सौ साल पीछे फ्लैश बैक में चलते हैं और जानने का प्रयास करते हैं कि कैसे भारत ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथों से होता हुआ ब्रिटिश शासन के अधीन चला गया।
बात उन दिनों की है जब भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना व्यापार के लिए हुआ था। कम्पनी की स्थापना 31 दिसंबर 1600 ई. को हुआ था। यह कम्पनी भारत में मसाला का व्यवसाय के लिए जल मार्ग से आता था। बाद में अफीम, रेशम, चाय, कपड़ा, नील आदि भी व्यापार में शामिल किया गया। यहाँ इनके प्रतिद्वंद्वी के तौर पर हाॅलेंड तथा फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी भी व्यापार करना प्रारंभ किया। इनके बीच शक्ति संतुलन के लिए आपस में संघर्ष भी होता था। ये कम्पनियाँ व्यापार के लिए भारत में अपना कार्यालय खोलना प्रारंभ किया। कलकत्ता, बम्बई, गोवा, सूरत आदि जगहो पर अपना कार्यालय खोला गया। ये कम्पनी धीरे-धीरे काफी मजबूत स्थिति में पहुँच गया। धीरे-धीरे ये लोग यहाँ के शासन में हस्तक्षेप करने लगा। इस काम के लिए इसे ब्रिटिश सरकार से भी मदद मिलने लगा और ये साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति अपनाकर देशी रियासतों पर अपना अधिकार जमाना शुरू कर दिया। एक दिन ऐसा हुआ कि कम्पनी ने ब्रिटिश सरकार के सहयोग से और अपनी कूटनीतिक चाल से सभी देशी राजा रजवाड़ो को पराजित कर भारत पर पूर्ण रूपेण अपनी सत्ता स्थापित कर लिया। अब भारत पर कम्पनी का शासन होने लगा ।
अब प्रारंभ हुआ भारतीय स्वतंत्रता का संघर्ष। भारत को स्वतंत्र कराने के लिए यदा-कदा दबे पाँव आंदोलन होता रहता था। लेकिन बड़े चालाकी से अंग्रेजी सैनिक इन आंदोलनो को कुचल दिया करता था। सन 1857 में सिपाही विद्रोह हुआ जिसे भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संघर्ष माना जाता है। यह आंदोलन 10 मई 1857 को मेरठ से शुरू हुआ था। धीरे-धीरे यह आंदोलन भारत के कई प्रांतों में फैल गया। इन आंदोलनकारियों में मंगल पांडे, तात्या टोपे मेरठ, बहादुरशाह दिल्ली, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई झाँसी, नाना साहब कानपुर, बेगम हजरत महल लखनऊ, कुंवर सिंह बिहार का नेतृत्व कर रहे थे। इस विद्रोह को भी दबा दिया गया लेकिन भारतीय जनमानस पर इसका गहरा असर पड़ा। धीरे-धीरे ही सही लेकिन आंदोलन सुलगता रहा। इसी बीच 2 अक्टूबर 1869 ई. को भारत में एक युग पुरुष का जन्म हुआ। जिसका नाम मोहन दास था। उन्होंन भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता आंदोलन की दशा और दिशा ही बदल दी। अनेक स्वतंत्रता प्रेमियों ने उनका साथ भी दिया। इनमें मुख्य रूप से पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, खान अब्दुल गफ्फार खान आदि लोगों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। कुछ गरम दल के क्रांतिकारियों ने भी इस आंदोलन को आगे बढ़ाने का काम किया। जिसमें सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, इकबाल, सुभाष चन्द्र बोस, अस्फाक उल्ला खाँ आदि ने भी अपना अहम योगदान दिया। इसी बीच 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य भारत को स्वतंत्र कराना था। उसके बाद गाँधी जी के नेतृत्व में आंदोलन को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया। गाँधी जी का प्रमुख हथियार सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह था।
गाँधी जी के नेतृत्व में पहला आंदोलन 1917 ई. में बिहार के चम्पारण से शुरू हुआ। उस समय यहाँ किसानों से जबरन नील की खेती कराया जाता और मजदूरी के नाम पर उसे कुछ नहीं दिया जाता था। इसी का विरोध स्वरूप किसानों के साथ मिलकर आंदोलन प्रारंभ किया गया। यह आंदोलन लोगों को एकजुट करने में सफल रहा और गाँधी जी के नेतृत्व को मान्यता मिली।1920 ई. में पुनः गाँधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया गया। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था अंग्रेजों का सहयोग नहीं करना। इससे अंग्रेजी क्रियाकलाप पर काफी असर हुआ । नमक सत्याग्रह की शुरूआत 1930 ई. में हुआ। नमक पर अंग्रेजी एकाधिकार कानून को तोड़ने के लिए इस आंदोलन को प्रारंभ किया गया। इसमें गाँधी जी ने साबरमती आश्रम से समुद्र किनारे तक 24 दिन पैदल चलकर नमक बनाया और अंग्रेजी कानून को तोड़ा ।
गाँधी जी के द्वारा 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया गया। इसी आंदोलन में गाँधी जी ने करो या मरो का नारा दिया और अंग्रेजो से कहा कि वे भारत छोड़कर चले जाएँ। यह आंदोलन इतना उग्र रूप धारण किया कि अंततः अंग्रेजो को भारत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। जाते-जाते उन्होंने एक चाल चल दिया और भारत को दो टुकड़ों में बाँटकर पाकिस्तान को अलग कर दिया। इस तरह 15 अगस्त 1947 ई. को भारत स्वतंत्र हुआ। यही है स्वतंत्र भारत का गौरवशाली इतिहास।
भवानंद सिंह
उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय मधुलता
रानीगंज, अररिया
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बहुत सुंदर आलेख सर
ReplyDeleteबहुत-बहुत सुन्दर!
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