Saturday, 29 August 2020
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हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद-राकेश कुमार
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद
प्रत्येक वर्ष हमारे देश में 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। खेल दिवस स्कूल, कॉलेज और अन्य स्तर पर मनाया जाता है इसके उपलक्ष्य में विभिन्न स्तर पर कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।
जैसा कि हम जानते हैं विगत कुछ वर्षों में हमारे जीवन में खेल एक महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है। इसका सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य से जुड़ चुका है और इसके माध्यम से हम अपने आपको मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ महसूस करते हैं। बच्चों के सन्दर्भ में इसको देखें तो बच्चे खेल का नाम सुनते हीं रोमांचित हो उठते हैं और उनका बालमन इसे एक मनोरंजन क्रिया के रूप में समझता है जो उनकी स्वाभाविक सोच होती है। आज विद्यालयी स्तर पर हीं बच्चों को इसके महत्व से परिचित कराया जा रहा है। वर्त्तमान शिक्षण के दौरान हम सभी शिक्षक इस हेतु प्रयासरत रहते हैं कि बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु उसे तमाम सकारात्मक गतिविधि से परिचित कराया जाये उसी में एक महत्वपूर्ण गतिविधि (शिक्षा) है नैतिक शिक्षा जिसका आज के सन्दर्भ में हम सभी शिक्षक अपने वर्ग शिक्षण के दौरान करते हैं क्योंकि हम सभी का मानना है कि बच्चों में गुणात्मक एवं नैतिकतापूर्ण शिक्षा का होना नितांत आवश्यक है। इसके साथ-साथ बच्चों में उसकी रुचि के अनुसार या कहें उसका रुझान जिस ओर हो उसे उस ओर सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करते हुए उसे प्रोत्साहित करें। यहाँ पर मैं रुझान को खेल दिवस पर लिखित आलेख के संदर्भ में खेल के संदर्भ में इंगित कर रहा हूँ।
वर्तमान समय में यह स्पष्ट हो चुका है कि खेल (शारीरिक गतिविधि) और पढ़ाई को अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि ये संदर्भ प्रमाणिकता की ओर है कि बच्चों के लिए ये दोनों उनके रुचिनुसार कैरियर विकल्प प्रदान करता है। आज हम बच्चों के सामने हर उस सफल व्यक्तित्व की चर्चा करते हैं जो अपने मेहनत, लगन और मजबूत इच्छाशक्ति से तमाम कठिनाइयों को पार करते हुए अपने आपको स्थापित किया है ताकि बच्चे उनके जीवन से प्रेरित होकर अपने रुचिनुसार कार्य करें।
आज इस कड़ी में हम राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की चर्चा करते हैं। इनका जन्म 29 अगस्त 1905 में इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) जो उस समय प्रयागराज के नाम से जाना जाता था में हुआ। इनको बचपन में खेलने का कोई शौक नहीं था। साधारण शिक्षा ग्रहण कर 16 वर्ष की आयु में 1922 में सेना में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हुए। सेना में जाने के बाद इन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। इनमें हॉकी की कोई विलक्षण प्रतिभा नहीं थी बल्कि उन्होंने सतत साधना, अनवरत अभ्यास, सच्ची लगन, कड़े अभ्यास और दृढ़ संकल्प के सहारे उस मुकाम को हासिल किया जो किसी के लिए एक स्वप्न समान होता है। ऐसा कहा जाता है कि इनको हॉकी खिलाड़ी बनाने का श्रेय रेजिमेंट के मेजर तिवारी को दिया जाता है। इनका हॉकी के प्रति इतना अभ्यास था कि कहा जाता है कि गेंद इनकी हॉकी स्टिक से चिपकी रहती थी जिससे प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को लगता था कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं। यहाँ तक कि हॉलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुम्बक होने की आशंका में स्टिक तोड़ कर देखी गई थी। उनकी हॉकी की कलाकारी से मोहित होकर उस समय के जर्मनी के चांसलर एडोल्फ हिटलर ने उन्हें बड़े पद का पेशकश कर जर्मनी की तरफ से खेलने की पेशकश की थी जिसे राष्ट्रभक्त ध्यानचंद ने ठुकरा दी थी। उनके खेल कला के कायल उनके विरोधी टीम के खिलाड़ी भी थे।
उनके बारे में एक और रोचक तथ्य है कि उनका असली नाम ध्यान सिंह था लेकिन हॉकी के उनकी लगन एवं दीवानगी इतनी थी कि वह चाँद की रौशनी में खेल का प्रैक्टिस करते थे जिसके कारण उनके साथियों ने उनका नाम ध्यान में चंद्र जोड़ दिया और उनका नाम ध्यानचंद हो गया। इन्होंने तीन ओलंपिक खेल 1928, 1932 और1936 में भारत का प्रतिनिधित्व किया और तीनों बार भारत को हॉकी में स्वर्ण पदक दिलाया और भारत को विश्व स्तर पर गौरवान्वित किया। इन्होंने अपने खेल से हॉकी को एक अलग मुकाम प्रदान किया और अपने अद्भुत खेल के कारण हॉकी के जादूगर के रूप में प्रसिद्धि पाई। इन्हें भारत सरकार ने पदम भूषण सम्मान से भी सम्मानित किया। सन 1979 में इनके मृत्यु के उपरांत भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया। दिल्ली के राष्ट्रीय स्टेडियम का नाम भी बदलकर इनके नाम पर कर भारत सरकार ने इन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और इनके जन्मदिन के अवसर पर वर्ष 2012 से राष्ट्रीय खेल दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। इनके जन्मदिन के अवसर पर राष्ट्रीय खेल दिवस समारोह का आयोजन राष्ट्रपति भवन में किया जाता है तथा इस अवसर पर देश के राष्ट्रपति स्वयं देश के उन खिलाड़ियों को राष्ट्रीय खेल पुरस्कार देते हैं जो अपने खेल के उत्कृष्ट प्रदर्शन द्वारा पूरे विश्व में तिरंगे का मान बढ़ाते हैं । राष्ट्रीय खेल पुरस्कार के अंतर्गत अर्जुन अवार्ड, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार और द्रोणाचार्य अवार्ड जैसे कई पुरस्कार देकर खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाता है।
तो चलिए हम शिक्षक भी अपने कर्तव्य निर्वहन को निभाते हुए बच्चों के बीच इस खेल महापुरुष की चर्चा कर खेल-कूद के महत्व को दर्शाएँ और अपने देश के भविष्य को खेल को अपने रुचिनुसार कैरियर बनाने को प्रोत्साहित करें और उनके अंदर ये भावना उत्पन्न करें कि वे अपने खेल के उम्दा प्रदर्शन द्वारा खुद की तरक्की तो कर हीं सकते हैं साथ हीं साथ उनके अच्छे खेल प्रदर्शन से देश का मान सम्मान भी अंतराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगा और राष्ट्रीय गौरव भी बढ़ेगा।
राकेश कुमार
शारीरिक शिक्षक
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर (पटना )
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