Monday, 31 August 2020
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कोरोना एक समाजिक परिवर्तन-चन्द्रशेखर कुमार गुप्ता
कोरोना : एक सामाजिक परिवर्तन
एक ओर जहाँ पूरा विश्व कोरोना महामारी से गुजर रहा है, अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है, पूरी मानव जाति त्रस्त है, वही कोरोना महामारी को एक सामाजिक अवसर एवं सामाजिक परिवर्तन के तौर पर भी देखा जाना चाहिए। करोड़ों रुपए खर्च किए जाने के बावजूद गंगा स्वच्छ नहीं हो पाई, वातावरण प्रदूषण मुक्त नहीं हो पाया, ओजोन परत के छिद्र छोटे नहीं हो पाए तो ऐसे में प्रकृति को स्वयं कदम उठाना ही था जो येन केन प्रकारेण संभव होता दिख रहा है मानव जाति को अपनी गलतियों का आभास होना चाहिए और सुधार हेतु तत्पर भी, वरना इससे बड़ी पर्यावरणीय परिवर्तन के लिए तैयार रहना चाहिए जो या तो हमारे लिए हितकर हो सकता है या अहितकर भी।
बचपन में माँ के आँचल से दूर हॉस्टल में भेज दिया गया बाबू अक्सर गर्मी की छुट्टियों में घर आया करता था, तब उसे नदी, आहार, पोखर सब सूखे मिलते थे। सन सन चलती लू उसका स्वागत किया करती थी। भरी दोपहरी घर में कैद रहना पड़ता था लेकिन इस बार कोरॉना के कारण स्कूल बंद होने के बाद जब घर आया तो गर्मी तो देखी ही, उसने अपने गाँव का झमाझम बरसात भी देखा। वही पोखर में टर्रटराते मेंढ़क नहीं सुनने को मिले l
मीठे आम खाने को तो मिले ही साथ ही अमरूद, जामुन, भुट्टे भी खूब खाने को मिले और तो और दादी माँ का बनाया गिलोय का काढ़ा भी खूब पीने को मिले।
शादियों के इक्के-दुक्के सुनने को तो मिले ही पंगत में खाने को भी मिले जिसे पुस्तक में पढ़ा सामाजिक कार्यक्रम अच्छी तरह समझ में आए l वही गाँव के बूढ़े दादा की मृत्यु पर पूरे गाँव के लोग को एकत्रित होता देख सुख-दुःख में ग्रामीण एकता की झलक देखने को मिली जो आज तक किताबों तक ही सीमित थी। तीज, करमा, जीउतिया में माँ बहनों का प्यार देखने को मिला तो मन आनंदित हो गया जिससे आज तक अछूता था।
माँ-पापा द्वारा दादा-दादी की सेवा देखी, आधी रात को पूरा गाँव मिलकर खेत से भगाता नीलगाय देखा और मचान पर सोते चाचा को देखा। जब सोमरी दादी के घर कुछ खाने को न था तो पूरे गाँव को मिलकर पूरे लॉकडाउन में खिलाते देखा। वैसे सिर्फ सोमरी दादी ही नहीं थी बल्कि उन सब को गाँव वालों ने हाथों-हाथ लिया जिनका लॉकडाउन में जीवकोपार्जन ठप्प था। इस बार बाबू ने वह सब देखा जो आज तक नहीं देखा था और अगर कोरोणा वायरस न आया होता तो शायद यह मौका भी नहीं आता और बाबू नौकरी पाकर बड़े शहरों में रह रहा होता वही उसके बूढ़े माँ-बाप टूटी झोपड़ी में दो जून की रोटी और उसकी एक झलक पाने को तरस रहे होते और वह शहर की चकाचौंध में चूर अपने गाँव परिवार को भूल चुका होता और न्यूक्लियर फैमिली के नाम पर एक कमरे के फ्लैट में पूरी दुनियाँ जी रहा होता लेकिन अब हर परिस्थितियों में बाबू अपने परिवार समाज गाँव को एक नजर जरूर देखेगा।
चंद्रशेखर कुमार गुप्ता
प्राथमिक विद्यालय टंडवा (गया)
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चन्द्रशेखर कुमार गुप्ता
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बहुत बहुत आभार धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया है सर
ReplyDeleteभाग दौड़ भरी जिंदगी में सच मे कोरोना एक वरदान की तरह हुआ।
Dhanyawad sir
Deleteबहुत-बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeletecarry on brother......
ReplyDeleteबहुत सुंदर शेखर बाबू।।।।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteआप अपने इस लेख से लोगों में साकारात्मक सोच का उदय कर रहे हैं । जहां एक ओर लोग कोरोना से परेशान हैं वहीं दूसरी ओर पर्यावरण साफ और स्वच्छ भी हुआ है जो कि हमारे लिए वरदान से कम नहीं है।
ReplyDeleteयह कोरोना वायरस बहुत लोगों को अपने परिवार के साथ रहना सिखा गया।
ReplyDeleteDear bhaiya,u didn't focus on it's negative aspect i.e uncertainty of youth's dream, wandering lobours on foot,job loss, ideological differences due to economy and unemployment of many small worker.
ReplyDeleteObviously due to corona a lot problem but my blog focus only in postitive aspect....... although I've mension first para on that.plz read carefully n think deep Bro
Deleteसचमुच कोरोना काल में एक ओर जहां बहुत से लोग अपने बिछड़े परिवार से मिले तो वहीं अनेकों ने बहुतों को खोया भी। साथ ही पर्यावरणीय वातावरण में बदलाव भी देखने को मिला। आपका ब्लॉग अत्यंत ही सराहनीय व रोचक लगा।
ReplyDeleteThank you sir
Deleteसचमुच कोरोना काल में एक ओर जहां बहुत से लोग अपने बिछड़े परिवार से मिले तो वहीं अनेकों ने बहुतों को खोया भी। साथ ही पर्यावरणीय वातावरण में बदलाव भी देखने को मिला। आपका ब्लॉग अत्यंत ही सराहनीय व रोचक लगा।
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