राष्ट्रध्वज का इतिहास-भवानंद सिंह - Teachers of Bihar

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Saturday 15 August 2020

राष्ट्रध्वज का इतिहास-भवानंद सिंह

राष्ट्रध्वज का इतिहास 

          सभी देशों का अपना एक राष्ट्रीय ध्वज होता है।किसी भी स्वतंत्र देश के लिए उसका राष्ट्रध्वज उसकी आन, बान, शान है। राष्ट्रध्वज से उस देश की गरिमा और सम्मान जुड़ा रहता है। भारत का भी एक राष्ट्रध्वज है। जिसे हम तिरंगा के नाम से भी जानते हैं। यह हमारी सभ्यता-संस्कृति की पहचान है। तिरंगा के प्रति लोगों का ऐसा सम्मान है कि अगर उसे कोई बुरी नजर से देख ले तो हम भारतीय उसकी आँखें निकालने को तैयार हो जाते हैं। इसपर हर भारतीय अपनी जान छिड़कने तथा मर मिटने को तैयार रहते हैं। ये तीन रंगों का तिरंगा अथवा राष्ट्रीय ध्वज हमारे देश की प्रतिष्ठा का प्रतीक है। जिसे हम भारतवासी न झुकने देंगे न मिटने देंगे। 
          आईए अब हम तिरंगे की इतिहास की बात करते हैं। तिरंगे का विकास अनेक चरणों में हुआ है। सबसे पहले 1906 ई0 में भारत का गैर आधिकारिक ध्वज बनाया गया जिसमें ऊपर हरे रंग की पट्टी, मध्य में पीला तथा नीचे की तरफ लाल रंग की पट्टी दिखाया गया। इसमें एक तरफ चाँद और दूसरे तरफ सूरज का चित्र अंकित था। 1907 ई0 में भीकाईजी कामा द्वारा एक झण्डा फहराया गया। जिसमें ऊपर केसरिया, बीच में पीला तथा नीचे की ओर हरे रंग की पट्टी थी। बीच वाली पट्टी पर बंदे मातरम लिखा था। इसमें भी चाँद और सूरज का चित्र अंकित था। इस झंडे को बनाने में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों का ध्यान रखा गया था। इसमें ऊपर की तरफ केसरिया रंग जो हिन्दू धर्म का प्रतीक तथा नीचे हरे रंग की पट्टी जो ईस्लाम धर्म का प्रतीक था को शामिल किया गया था।
          भारत में तृतीय राष्ट्रीय ध्वज लोकमान्य तिलक तथा एनी बेसेंट ने फहराया। इसमें पाँच लाल रंग की तथा चार हरे रंग की क्षैतिज पट्टी हुआ करती थी। इसमें बाँई ओर ऊपर की तरफ यूनियन जैक तथा दाँई ओर ऊपर की तरफ अर्धचंद्र और सितारा छपा रहता था। इसमें सप्तॠषि के प्रतीक सात तारे भी थे। 1921 ई0 में आन्ध्रप्रदेश का एक युवक पिंगली वेंकैया ने एक झण्डा बनाया और गाँधी जी को समर्पित किया। ये दो रंगों लाल तथा हरा से बना था। ये दोनों हिन्दू और मुस्लिम धर्म का प्रतीक था। तब गाँधी जी ने सुझाव दिए कि इसमें अन्य समुदाय के लिए सफेद रंग भी जोड़ा जाय और राष्ट्र की प्रगति का प्रतीक चलता हुआ चरखा भी दर्शाया जाय।
1931 ई0 में तिरंगे झंडे को राष्ट्रध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। इसमें केसरिया, सफेद और बीच में गाँधी जी का चलता हुआ चरखा दिखाया गया। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की वर्तमान स्वरूप को संविधान सभा की एक बैठक में 22 जुलाई  1947 ई0 को अपनाया गया। इसमें ऊपर केसरिया, मध्य में सफेद तथा नीचे की ओर हरे रंग की पट्टी रखा गया। गाँधी जी के चरखा के स्थान पर सारनाथ के अशोक स्तम्भ से चक्र को अपनाया गया। तब से इस तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में फहराया जा रहा है । 
          तिरंगे का रंग भी हमें खास संदेश देता है। इसमें केसरिया रंग बल और पौरुष अर्थात शक्ति तथा साहस का, सफेद रंग शान्ति का और हरा रंग हरियाली, उर्वराता, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। यही है हमारे राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास जो अनेक चरणों से होता हुआ वर्तमान स्वरूप में पहुँचा। इस झण्डे को 15 अगस्त 1947 ई0 से हमलोग फहराते आ रहे हैं और इस पर गर्व महसूस करते हैं ।


भवानंद सिंह 
उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय मधुलता 
रानीगंज, अररिया

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