स्वतंत्रता दिवस की कहानी-देव कांत मिश्र दिव्य - Teachers of Bihar

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Saturday, 15 August 2020

स्वतंत्रता दिवस की कहानी-देव कांत मिश्र दिव्य

स्वतंत्रता दिवस की कहानी मेरी जुबानी      

          स्वतंत्रता मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है। यह प्रत्येक राष्ट्र का जीवन श्वांस है। इस संबंध में अब्राहम लिंकन ने कहा था- स्वतंत्रता धरती की आखिरी सबसे बड़ी आशा है। वाकई जब हम किसी के परतंत्रता रूपी पाश से मुक्ति पाते हैं और मुक्त आकाश में विचरण करते हैं तो एक सुखद अनुभूति होती है। आनंद के सागर में हम गोता लगाने लगाते हैं क्योंकि वर्षों की आशा जो पूरी हो जाती है। इसमें उस राष्ट्र के लोगों के त्याग, तपस्या, शौर्य, पराक्रम, जज़्बा एवं वीर सपूतों के बलिदान निहित होते हैं। तभी तो सुभाष चन्द्र बोस ने इस संबंध में ठीक ही कहा था- 'स्वतंत्रता दी नहीं जाती है, इसे हासिल की जाती है।' सच में स्वतंत्रता की प्राप्ति हेतु हमें अदम्य साहस, संघर्ष तथा अथक परिश्रम तो करनी ही पड़ती है। इसके बगैर यह मिल ही नहीं सकती है। तो आज मैं अपने देश भारत की स्वतंत्रता की पवित्र कहानी लिखने का छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ। इस देश की स्वतंत्रता की कहानी 200 वर्ष पुरानी है। जब अंग्रेज यहाँ आए तो उन्होंने भारतीयों को गुलामी की जंजीरों में जकड़ लिया। मुक्त वातावरण जैसे मानो एक बंधन में बदल गया। हमलोग किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए। उसी दिन से भारतीय उस परतंत्रता के जाल को काटने के लिए अनवरत प्रयास करने लगे। इस पावन संग्राम का श्रीगणेश झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के कर कमलों से सन 1857 ई. में हुआ। तब से लेकर सन 1947 ई. तक अनंत माताओं की गोद से लाल, अनंत पत्नियों के सौभाग्य सिन्दूर तथा अनंत बहनों के भ्राता स्वतंत्रता की  बलि वेदी पर चढ़कर अमरगति को प्राप्त हुए, हँसते- हँसते फाँसी के तख्ते पर झूल गए। सच पूछा जाय तो यह एक पवित्र यज्ञ से कम नहीं था। अगर आजादी की खातिर इतनी बड़ी संख्या में लोग स्वयं को कुर्बान कर दे, स्वतंत्रता रूपी पवित्र अग्नि कुंड में भस्म कर दे, चट्टानी एकता का परिचय दृढ़ता से दिखा दे, आजादी की भूख सतत जगा दे तो इससे बड़ी देश के लिए और क्या बात हो सकती है। असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन, अगस्त क्रांति तथा अन्य विभिन्न तरह के आंदोलनों ने अंग्रेजों को यह नसीहत दी कि अब ऐसी ठोस एकता के सामने कोई गुज़ारा नहीं। यूँ तो अंग्रेज अपनी प्रभुता की रक्षा हेतु जो कुछ कर सकते थे, आखिरी दम तक सब कुछ किए पर हमारे वीर जवान अपने कर्त्तव्य पथ पर डटे रहे। कई तरह के झंझावात आए, प्रभंजन आए लेकिन हमारी मातृभूमि के सपूत अबाध गति से आजादी की राह पर चलते रहे और अपने निश्चित ध्येय से कभी भी विचलित नहीं हुए। इनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। धीरे-धीरे अंग्रेजी साम्राज्य की नींव कमजोर होकर हिलने-डुलने लगी। महात्मा गांँधी के द्वारा दिए गए सत्य और अहिंसा जैसे अमोघ अस्त्र के सामने अंग्रेजों की कठोर यातना प्रकम्पित हो उठीं। वे नौ दो ग्यारह होने को विवश हो गए। आखिर उपाय भी तो कुछ नहीं था। वे हमारी चट्टानी एकता व निरंतर संघर्ष को देखते हुए हमारे समक्ष नतमस्तक हो गए। एकता की पराकाष्ठा को देख अंग्रेज डरे गए।
          लम्बे संघर्ष और वर्षों की साधना फलीभूत हुईं और अंग्रेजों ने इस देश से जाने का मन बना लिया। 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र ( स्वाधीन) हुआ। चहुँ ओर जनमानस में आजादी की लहर दौड़ गई। सहस्त्रों दीपों की ज्योति जगमगा उठी। सभी लोगों के मानसिक पटल पर प्रसन्नता की झलक दिखने लगी। वातावरण भी पुलकित हो उठा। गौरतलब है कि स्वतंत्रता में ही प्रकाश है जबकि परतंत्रता में अँधकार ही अँधकार है। स्वतंत्रता में सुख है तो परतंत्रता में दु:ख है। यहाँ  दु:ख का अर्थ है- सीमित आकाश तथा सुख का मतलब है- मुक्त, खुला व स्वच्छ सुन्दर आकाश। इसलिए इस संबंध में मेरा कहना है- 
   आएँ! हमसब अपनी एकता की बाहें फैलाएँ
   मिल-जुल उन्मुक्त गगन में राष्ट्रध्वज फहराएँ।
          वस्तुत: स्वतंत्र का अर्थ ही है- स्व का तंत्र यानि अपनी आत्मा का विस्तार। अपने अन्तर्मन में व्याप्त विचारों को समन्वयता के रस में घोलकर उसे स्वतंत्र रूप प्रदान करना, अँधेरे से उजाले की ओर कदम बढ़ाना। अतः हमारा परम कर्त्तव्य है कि हम इस राष्ट्रीय पर्व को हर्षोल्लास से मनाएँ तथा देश की समृद्धि और आजादी की रक्षा हेतु सदैव प्रयत्नशील रहें। लेकिन एक बात दीगर है कि वर्तमान समय में कोरोना का संक्रमण जिस तीव्र गति से हो रहा है उसे मद्देनजर रखते हुए हम अपने बच्चों, अभिभावकों को इससे दूर रखें तथा मॉस्क लगाकर एक दूसरे से सामाजिक दूरी बनाते हुए झंडोत्तोलन करें साथ ही यह दिखाने का प्रयास करें कि चाहे जो भी संकट देश में आए, उसे मिल-जुलकर निबटाना है, समाधान करना है। बस सच्ची एकता ही तो स्वतंत्रता है और स्वतंत्रता में ही प्रकाश है। बस हमसब मिल-जुलकर इस प्रकाश को और दैदीप्यमान बनाएँ तथा स्वदेश का मान दुनियाँ में बढ़ाएँ।
   बना लें स्वर्ग धरा को , एकता की बयार से
   हम संतति हैं देश के, सुगठित रखें प्यार से।
     

देव कांत मिश्र 
मध्य विद्यालय धवलपुरा
सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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