Monday, 14 September 2020
New
अपनी हिंदी-राकेश कुमार
अपनी हिंदी
जी हाँ दोस्तों अपनी हिंदी कितना अच्छा लगता है। जब किसी चीज को आत्मीयता का लगाव का बोध से उच्चारण हो तो वह दिल के करीब महसूस होती है। हम सभी भारतीय अपनी भाषा हिंदी के साथ ऐसा हीं लगाव महसूस करते हैं। हम सभी इस तथ्य से वाकिफ हैं कि हमारा देश लगभग 200 वर्ष अंग्रेजों के अधीन रहा। दो शताब्दियों की परतंत्रता किसी भी देश की पहचान पर संकट की स्थिति उत्पन्न कर देती है। किसी भी देश के पहचान के कई पहलू होते हैं मसलन वेश-भूषा, संस्कृति और भाषा प्रमुख होते हैं और इनमें भी सबसे प्रमुख भाषा होती है। एक आम धारणा है कि किसी की भाषा से हम उसके पहचान के करीब पहुँच जाते हैं और इस बात का अंदाज लगा लेते हैं कि अमुक व्यक्ति कहाँ से ताल्लुक रखता है।
जब हमारा देश 200 वर्ष की परतंत्रता से मुक्त होकर स्वाधीन हुआ तो हम सभी भारतीयों ने भी एक सपना देखा कि एक दिन पूरे देश की एक ही भाषा होगी जिसके जरिए देश के कोने-कोने में वाद-संवाद होगा। संविधान निर्माताओं ने देवनागरी में लिखी भाषा हिंदी भाषा को अंग्रेजी के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया। समय बीतता गया और हम सभी अपनी भाषा के साथ आगे बढ़ते गए लेकिन एक बात को हम व्यक्तिगत तौर पर अभिव्यक्ति के साथ महसूस कर रहा हूँ कि क्या हम वाकई हिंदी के साथ आगे बढ़ रहे हैं? ऐसा क्यों होता जा रहा है कि नैतिकता के आधार पर अगर ईमानदारी पूर्वक मूल्यांकन करें तो हम सभी इस तरह के अवसर पर अपनी लेखनी एवं बातों के द्वारा दमदार दिखते हैं लेकिन उसको अपने कार्यशैली संस्कृति में किस तरह से चरितार्थ करते हैं ये महत्वपूर्ण हो जाता है? मैं अपनी हिंदी के संदर्भ में इन सब बातों का उल्लेख इसलिए कर रहा हूँ कि स्वाधीनता के 74 वर्ष पूरे होने के बाद हिंदी का प्रसार उतना नहीं हो पाया जितना हम सभी ने कल्पना की थी। इस बात को अगर स्वाभाविक एवं सकारात्मकता के साथ-साथ एक सार्थक नजरिए के दृष्टिकोण से कहें तो हिंदी के अपेक्षा अंग्रेजी की उपस्थिति आज भी दमदार है जिसको गलत तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि मेरा मानना है कि कोई भी भाषा गलत नहीं होती लेकिन इस आधुनिकता के दौर में अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में संतुलन आवश्यक है। हम अपने नौनिहालों पर किसी भी भाषा को जबरन थोपें नहीं बल्कि उनमें नैतिकतापूर्ण ज्ञान विकसित कर अपने गौरवपूर्ण संस्कृति से परिचित कराते हुए उनमें ये भावना विकसित करने का प्रयास करें कि उनमें अपनी भाषा के प्रति स्वतः सम्मान प्रदर्शित करने की भावना का विकास हो ।
इस संदर्भ में हम बच्चों के सामने अपने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र कर सकते हैं कि जब वो मोरारजी देसाई के सरकार में विदेश मंत्री थे सन 1977 में संयुक्त राष्ट्रसंघ का 32 वां सत्र था उस समय भारत के इतिहास में एक गौरवपूर्ण क्षण था । संयुक्त राष्ट्रसंघ में उनका पहला संबोधन था औऱ उन्होंने अपनी बात हिंदी में कहने का फैसला किया और पहली बार संयुक्त राष्ट्र में हिंदी गूंजी औऱ समस्त भारतीय गर्व से भर उठे। इसे अन्य रूप में देखे तो इसे हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने का प्रयास भी कह सकते हैं।
हिंदी दिवस के इतिहास पर अगर हम चर्चा करें तो हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है क्योंकि 14 सितम्बर 1949 को हिंदी को भारतीय संविधान द्वारा भारतीय गणराज्य की राजभाषा का दर्जा दिया गया। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर इसकी शुरुआत 14 सितम्बर 1953 को की गई। इसके बाद हर साल हिंदी दिवस मनाया जाने लगा। इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रभाषा हिन्दी को देश के हर क्षेत्र में हीं नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रसारित करना था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए मैथलीशरण गुप्त, रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी और राजेंद्र सिंह आदि लोगों ने बहुत प्रयास किया जिसके चलते इन्होंने दक्षिण भारत की कई यात्राएँ भी की । 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने के साथ राजभाषा नीति भी लागू हुई। संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि भारत की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है।
हिंदी दिवस के अवसर इसके प्रति जागरूकता एवं प्रचार-प्रसार हेतु विद्यालय एवं अन्य जगहों पर कई तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इसके प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट करने के लिए ऐसे आयोजन स्वाभाविक है। वर्तमान संदर्भ में अगर हम ईमानदारी पूर्वक मूल्यांकन करें तो इस आयोजन अर्थात् अपनी हिंदी का एक पहलू यह भी है कि विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा में से एक है लेकिन अगर इसके दूसरे पहलू पर गौर करें तो हम सभी का झुकाव अंग्रेजी की तरफ ज्यादा होते जा रहा है तथा सार्वजनिक मंच पर भी अंग्रेजी का इस्तेमाल अधिक हो रहा है। अतः यहाँ से हम ( शिक्षको ) सभी का यह दायित्व बनता है कि बच्चों के बीच इसके महत्व की चर्चा निरंतर करते रहें तथा इसके संदर्भ में अपने राष्ट्रभाषा से जुड़ी तमाम तथ्यों का उल्लेख करते रहें ताकि उनमें राष्ट्रभावना का विकास हो और जब बच्चों में राष्ट्रभावना का विकास होगा तो स्वतः अपनी हिंदी ( राष्ट्रभाषा ) का भी विकास हो जाएगा जो हिंदी दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य होता है कि हमारी आनेवाली पीढ़ी अपनी भाषा को आत्मसात कर सके तथा इस तरह ( हिंदी दिवस ) के आयोजन को सार्थकता मिले और हम सभी गर्व से कह सकें कि-
हर कण में बसी है हिंदी,
मेरी माँ की बोली भी बसी है इसमें,
मेरा मान है हिंदी,
मेरी शान है हिंदी।
हिंदी दिवस की शुभकामना के साथ
राकेश कुमार
शारीरिक शिक्षक
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर (पटना )
About ToB Team(Vijay)
Teachers of Bihar is a vibrant platform for all who has real concern for quality education. It intends to provide ample scope and opportunity to each and every concern, not only to explore the educational initiative, interventions and innovations but also to contribute with confidence and compliment. It is an initiative to bring together the students, teachers, teacher educators, educational administrators and planners, educationist under one domain for wide range of interactive discourse, discussion, idea generation, easy sharing and effective implementation of good practices and policies with smooth access.
अपनी हिंदी-राकेश कुमार
Labels:
Blogs Teachers of Bihar,
Teachers of Bihar,
Teachers of Bihar Blogs,
ToBBlog,
ToBblogs,
अपनी हिंदी-राकेश कुमार
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
उम्दा सृजन लाजवाब लेखनी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर जानकारी आपने हिन्दी के बारे में दी है। इस उत्कृष्ट सृजन हेतु दिल से धन्यवाद!
ReplyDelete