हिंदी भारत की शान-देव कांत मिश्र दिव्य - Teachers of Bihar

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Monday, 14 September 2020

हिंदी भारत की शान-देव कांत मिश्र दिव्य

हिन्दी भारत की शान

  हिन्दी सबकी शान है, सभी करें सम्मान।
   भाषा है प्यारी सुघड़, सरल सुगम गुण खान।।
       
          वस्तुत: हिन्दी हमारे देश की शान है। इसकी भाषा सुघड़ (सुन्दर) और प्यारी है ही, सरल, सुगम तथा अनेक गुणों से भरी पड़ी है। सच में, हिन्दी हमारी मातृभाषा है, राष्ट्रभाषा है। इस भाषा में जो रोचकता, सुगमता व सरसता है वह अन्यत्र दुर्लभ है। राष्ट्रभाषा सम्पूर्ण राष्ट्र की आत्मा को पावन व शक्तिसम्पन्न बनाती है। यूंँ तो राष्ट्रभाषा, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत, तथा राष्ट्रचिह्न  किसी देश की स्वतंत्रता के प्रतीक होते हैं। इनके बगैर कोई भी देश स्वतंत्र होने का ढिंढोरा नहीं पीट सकता है। इन सारे तत्त्वों में राष्ट्रभाषा का विशिष्ट महत्त्व है। 
          जब हमारा देश पराधीन था उस समय यहाँ कोई राष्ट्रभाषा नहीं थी। अंग्रेजी का ही बोलबाला था परन्तु देश की आजादी के बाद संविधान निर्माण के समय यह समस्या पैदा हुई कि किस भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में अंगीकार की जाए। इस विषय पर कुछ दिनों तक विवाद चलता रहा। उस समय छत्तीस करोड़ भारतीयों में से एक करोड़ भी ऐसे नहीं थे जो सुगमतापूर्वक अंग्रेजी  बोल सकते हों फलस्वरूप अंग्रेजी को दर्जा देने का प्रश्न ही समाप्त हो गया। साथ ही अन्य प्रान्तीय भाषाएँ भी अपनी व्यापकता में हिन्दी से बहुत पीछे थीं। इसके  अलावे और कई अन्य विशेषताएँ थीं
*  सबसे पहले यह भारतीय भाषा है।
*  हिन्दी भाषा-भाषी की संख्या अन्य प्रांतीय भाषा की तुलना में सर्वाधिक है।
*  हिन्दी बोलनेवालों की संख्या से समझने वालों की संख्या अधिक है।
*  यह भाषा हमारे देश के प्रत्येक अंचल में सरलता से समझी जाती है, भले ही लोग बोल नहीं सकते हों।
*  हिन्दी भाषा सरल एवं सुबोध है तथा इसमें शब्दों का प्रयोग तर्कपूर्ण है।
*  यह बहुत कम समय में सीखी जा सकती है।
*  यह जिस तरह बोली जाती है उसी तरह लिखी भी जाती है।
*  हिन्दी एक समृद्ध व्यंजन प्रणाली से सुसज्जित है।
*  इस भाषा में  राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक सभी प्रकार के कार्य  व्यवहारों के संचालन की पूर्ण क्षमता है। इस प्रकार इन्हीं विशेषताओं को मद्देनजर रखते हुए भारतीय संविधान  में सर्वसम्मति से देवनागरी लिपि वाली हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने का विचार क्रियान्वित हुआ। हमारे देश में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो  हिन्दी की टाँग पकड़कर पीछे घसीटने की कोशिश कर रहे हैं। इसके विरोध में अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। मेरी राय है कि कोई भी भाषा बुरी नहीं है, चाहे वह अंग्रेजी हो, बंगला हो या मराठी या मलयालम। सभी का अपना-अपना महत्त्व है, सभी में रस है। अन्य भाषाओं को सीखना गुनाह नहीं है। हिन्दी का पंजाबी, गुजराती, मराठी, बंगला आदि भाषाओं से इतना गहरा सम्बन्ध है कि इन भाषाओं के बोलने वाले बिना किसी कोशिश के हिन्दी समझ लेते हैं। लेकिन यथार्थ के धरातल पर देखा जाय तो पता चलता है कि अपनी मातृभाषा ही सर्वोपरि है। इसमें अन्य सभी भाषाओं के वनिस्पत अलग ही भाव है, संवेदना है, ताकत है, ऊर्जा है। वर्तमान समय में हमारे देश में चालीस से पचास फीसदी लोग हिन्दी भाषा बोलते हैं। विश्व में बोली जाने वाली भाषाओं में हिन्दी का चतुर्थ स्थान है। तीस करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलते हैं। यह तो हिन्दी की महत्ता को ही तो दर्शाता है। हमारे संविधान में देवनागरी लिपि में हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया है। हमारे संविधान में व्यवस्था है कि केन्द्र सरकार की पत्राचार की भाषा हिन्दी और अंग्रेजी होगी। अनुच्छेद 344 और 351 में वर्णित निदेशों के अनुसार राज्य सरकारें अपनी पसंद की भाषा में कामकाज करने के लिए स्वतंत्र होंगी। हिन्दी हमारे देश की पहचान है, स्वाभिमान है।  यह देश को एक सूत्र में कायम रखती है। हम प्रत्येक कार्य जैसे- सामान्य व विशेष पत्र व्यवहार, वार्तालाप, आमंत्रण पत्र, शादी विवाह के पूर्व कार्ड की छपाई तथा मीटिंग, सेमिनार के आयोजन में हिन्दी को प्रमुख स्थान दें। अगर हमें हिन्दी को समृद्धशाली व सम्पन्न बनाना है तो हमें उदार दृष्टिकोण अपनाते हुए व्याकरण के नियमों को सुगम, सरल करना होगा। भाषा की जटिलता से बचने के लिए तद्भव शब्दों का परिवर्तन तत्सम में हो जाने से जो कृत्रिमता आ गई है उसे मिल जुल कर दूर करना होगा। नये-नये पारिभाषिक शब्दों के निर्माण को पूरी प्रमाणिकता से सिद्ध करना होगा। इस संबंध में बाबू गुलाब राय ने ठीक ही कहा है- "पारिभाषिक शब्दावली का सारे देश के लिए प्रमाणीकरण आवश्यक हो क्योंकि जब तक हमारी शब्दावली सारे देश में न समझी जाएगी तब तक न तो वैज्ञानिक क्षेत्रों में सहकारिता ही संभव हो सकेगी और न छात्र ही लाभ उठा सकेंगे।" जनता यदि हिन्दी के प्रति पूर्ण समर्पित व निष्ठावान हो जाए तो हिन्दी को उसका गौरवपूर्ण पद दिला सकती है। यह भारत माता के ललाट की बिन्दी है। मेरे विचार के अनुसार यह सटीक है-

मातृभाषा बिन व्यर्थ है, दुनियाँ का सब ज्ञान।
भारत माँ की बोली हिन्दी, करें इसका सम्मान।।

देव कांत मिश्र 'शिक्षक' 
मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर

2 comments:

  1. उम्दा लेखनी आपने बहुत ही सुंदर तरीके से हिंदी की शान को दर्शाया है ।

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  2. वास्तव में हिन्दी हमारे हृदय की भाषा है। हिन्दी हमारी शान है। अत्यन्त सुंदर आलेख।👌👌💐💐

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