Saturday, 5 September 2020
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शिक्षक एक राष्ट्र निर्माता-विमल कुमार विनोद
शिक्षक एक राष्ट्र निर्माता
बच्चों का विकास माता-पिता, परिवार, समाज, विद्यालय तथा शिक्षक के अथक प्रयास से होता है।
माता-पिता, परिवार, समाज के बाद जहाँ बच्चा विद्यालय में सीखने आता है तो वहाँ उसकी भेंट उसे शिक्षा देने वाले मार्ग दर्शक के रूप में शिक्षक यानि अपने गुरुदेव से होती है। गुरू जो कि दो शब्दों 'गु' और 'रू' के मिलने से बना है जिसका साधारण रूप में अर्थ होता है "अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला"।
शिक्षक हमारे राष्ट्र तथा विश्व का एक अभिन्न अंग माना जाता है क्योंकि उन्हीं के कंधों पर राष्ट्र तथा विश्व के संपूर्ण विकास के निर्माण का सारा दारोमदार रहता है। विश्व का सर्वश्रेष्ठ ज्ञानदाता अगर कोई है तो वह शिक्षक है। शिक्षक जो कि शिक्षा देने वाले विश्व के सर्वश्रेष्ठ लोग होते हैं, जो कि अपने शिष्य को विद्यालय के वर्गकक्ष में घंटों खड़े रहकर बिना किसी भी स्वार्थ के अपने बच्चे की तरह प्यार के साथ समझाते हुए शिक्षा प्रदान करते हैं तथा उसे विश्व का एक सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति बनाने का प्रयास करते हैं लेकिन एक अहम सवाल पैदा होता है कि आज के समय में शिक्षकों को अपने कार्य को धारदार और सर्वोत्तम रूप प्रदान करने के लिए क्या करना चाहिये?
इसके लिये मुझे लगता है कि निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है-
(1)अपने कार्य के प्रति जागरूकता- हम शिक्षक हैं, हमारा काम है बच्चों को शिक्षा देना। हम सभी शिक्षक बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का प्रयास भी करते हैं, जिसमें बदलते हुए समय के अनुसार परिवर्तन लाने की जरूरत है। साथ ही शिक्षक तथा विद्यालय प्रधान को अपने क्रियाकलापों में परिवर्तन लाने की आवशयकता है। जैसे- ससमय विद्यालय आगमन तथा प्रस्थान को ध्यान में रखना चाहिए, विद्यालय में कक्षा का समय से सफलतापूर्वक संचालन होना चाहिए, विद्यालय की गतिविधियों तथा संपूर्ण पाठ्यचर्या पर ध्यान देते हुए उसे मूर्त रूप देने की कोशिश करनी चाहिए।
(2)आधारभूत संरचना- विद्यालय में मौजूद संसाधनों तथा सरकार के द्वारा उपलब्ध कराये गये संसाधनों का प्रयोग करते हुए विद्यालय के रख-रखाव तथा उसकी देख-भाल करने की आवश्यकता है।
(2)विद्यालय की गतिविधि- शिक्षक तथा विद्यालय प्रधान को पाठ्यचर्या के अनुसार विद्यालय में चेतना-सत्र के समय से लेकर विद्यालय में होने वाली प्रत्येक गतिविधि पर ध्यान देने की जरूरत है। यदि आप विद्यालय में उपस्थित छात्र-छात्राओं की प्रत्येक गतिविधि पर ध्यान देने का प्रयास करेंगे तभी विद्यालय उत्तरोतर विकास की ओर बढ़ेगा। वर्तमान समय में इसमें कुछ कमी होती हुई नजर आती है, जिसके लिए विद्यालय में उपस्थित प्रधान तथा शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर कर्मी को विद्यालय के प्रति समर्पण की भावना से काम करने की जरूरत है।
(3)जिम्मेदारी- जब हमलोग शिक्षक के रूप में विद्यालय में योगदान कर लिये तो हमारी जिम्मेवारी होती है कि विद्यालय, विद्यालयी कार्यों छात्र-छात्राओं के संपूर्ण विकास के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझने का प्रयास करें। देश के लोगों ने जिस सोच तथा समझ के साथ शिक्षकों के कंधों पर समाज के नौनिहाल बच्चों के निर्माण का जिम्मा दिया है, उसे सरजमीं पर लाकर उतारने का प्रयास करना चाहिए।
(4)विद्यालय का संपूर्ण विकास- विद्यालय में हम सभी शिक्षक तथा शिक्षकेत्तर कर्मियों के कंधों पर विद्यालय के विकास का एक बड़ा कार्य सौंपा गया है जिसके तहत वर्ग कक्ष के अंदर की शिक्षा से लेकर बच्चों में अच्छे-अच्छे तथा सृजनशील गतिविधियों का विकास करने का प्रयास करना।
आज हम देखते हैं कि झारखंड, बिहार तथा भारतवर्ष के अन्य प्रांतों के बहुत से विद्यालय अपने विकास की तेज गति पर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं जिसके कारण उनके द्वारा रचे गये उत्कृष्ट कृत्यों के कारण ही उनको "राष्ट्रपति पुरस्कार" से भी नवाजा जा रहा है साथ ही बहुत सारे विद्यालय प्रधान अपनी सकारात्मक सोच का परिचय देते हुए विद्यालय का चहोन्मुखी विकास भी कर रहे हैं इसलिए अन्य विद्यालय के विद्यालय प्रधान तथा शिक्षकों को भी उनके साथ मिलकर विद्यालय के चरमोत्कर्ष की बात सोचनी चाहिये।
अंत में, हम कह सकते हैं कि हम शिक्षकों में धैर्य, साहस, शौर्य तथा असीम क्षमता है और हमलोग विद्यालय का विकास आसानी से कर सकते हैं, सिर्फ अपने इस सकारात्मक कार्य को मूर्त रूप देने की आवश्यकता है। आने वाले समय में शिक्षा तथा शिक्षकों के उत्कृष्ट कृत्यों से देश के बच्चे-बच्चियों का गुणवत्तापूर्ण विकास होगा, इसकी बहुत-बहुत बधाई!
श्री विमल कुमार
"विनोद" प्रभारी प्रधानाध्यापक
राज्यसंपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा, बांका (बिहार)
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