Saturday, 5 September 2020
New
डाॅक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक शिक्षक के रूप में-विमल कुमार विनोद
डाॅक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक शिक्षक के रूप में
डाॅक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जन्म 5 सितम्बर 1888 को मद्रास के तिरूट्टानी में हुआ था। वे 1952 से 1962 तक भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे। वे बीसवीं सदी के एक प्रसिद्ध विद्वान थे। उनका जन्मदिन "शिक्षक दिवस" के रूप में मनाया जाता है। पाँच सितंबर को "शिक्षक दिवस"के शुभ अवसर पर मैं विश्व के तमाम शिक्षकों, अपने गुरूजनों के प्रति श्रद्धा पूर्वक नमन करते हुए उनके द्वारा दिये गये संदेश को विश्व के चारों दिशाओं में पहुँचाने का प्रयास करता हूँ। डाॅक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जो कि भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे का गौरवमय 40 वर्ष विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को विद्या प्रदान करने में बिता। पाँच सितंबर "शिक्षक दिवस" के शुभ अवसर पर मेरी लेखनी इनके द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये गये उत्कृष्ट कार्यों को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही है।
"शिक्षक" विश्व निर्माता के रूप में जाने जाते हैं क्योंकि विश्व की सारी समस्याओं की जननी "अशिक्षा" को समाप्त कर प्रकाश का साम्राज्य बिखेरने का प्रयास शिक्षक ही करते हैं। शिक्षा के बिना लोगों का जीवन "पतवार विहीन नाव" के समान होता है। शिक्षा
वास्तव में एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक मानव की छिपी हुई शक्तियों को विकसित किया जाता है, उजागर किया जाता है। नये ज्ञान, कुशलताओं, मूल्यों, आदर्शों आदि को सिखाया जाता है जिससे कि व्यक्ति अपने वातावरण पर अधिकार पा सके, समाज में अपना सही स्थान प्राप्त कर सके और मानव-जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।
डाॅक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा के क्षेत्र में अपनी" बुद्धिमता पूर्ण" व्याख्याओं, आनंददायक
अभिव्यक्तियों और हँसाने, गुदगुदाने वाली कहानियों से अपने छात्रों को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे। उनका मानना था कि शिक्षक तथा छात्र को अपने जीवन में उच्च नैतिक मूल्यों को धारण करना चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में उनका कहना था कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाय तो समाज की अनेकों बुराइयों को मिटाया जा सकता है। उनके द्वारा कही गई कुछ बातें हैं-
पढ़ाने के पहले पढ़ना आवश्यक
डाॅक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का यह मानना था कि किसी भी शिक्षक को अपने छात्र-छात्राओं को शिक्षा देने के लिये उस विषय का स्वंय अध्ययन करना आवश्यक है क्योंकि जो शिक्षक स्वंय ज्ञानी नहीं होगा, विषय का पूर्ण जानकार नहीं होगा वह दूसरों को शिक्षा दे पाने में समर्थ नहीं हो पायेगा। शिक्षक अपने विषय को सुगमता तथा सहजता से प्रस्तुत करके "दर्शन"जैसे गंभीर विषय को भी अपनी शैली की नवीनता तथा सहजता से प्रस्तुत कर सकते हैं। वर्तमान समय में जब शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक ह्रास हो रहा है और गुरु-शिष्य संबंध की पवित्रता पर ग्रहण लगता जा रहा है वैसे समय में उनका तथा श्रेष्ठ एवं पूज्य गुरूजनों का स्मरण फिर एक नई चेतना पैदा कर सकता है। डाॅक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का कहना था कि "मात्र जानकारियाँ देना ही शिक्षा नहीं है" क्योंकि जानकरी का अपना महत्व भी है और आधुनिक युग में तकनीक की जानकारी महत्वपूर्ण भी है। तथापि व्यक्ति के बौद्घिक झुकाव और उसकी लोकतांत्रिक भावना का भी बड़ा महत्व है। ये बातें व्यक्ति को उत्तरदायी नागरिक भी बनाती है।
शिक्षा का लक्ष्य - इस संबंध में
उनका कहना था कि शिक्षा का लक्ष्य ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना तथा निरंतर सीखते रहने की प्रवृत्ति है। शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान और कौशल दोनों प्रदान करती है। जीवन में शिक्षा को धारण करके उसका सही उपयोग किये जाने से जीवन में विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। जीवन में करूणा, प्रेम और श्रेष्ठ परंपरा का विकास भी शिक्षा ही करती है। एक शिक्षक के रूप में उनका कहना था कि "जब
तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता है और शिक्षा को अपना लक्ष्य नहीं मानता है तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती है।
जीवन के अनमोल चालीस वर्ष तक एक शिक्षक के रूप में सेवा करते हुए उनका कहना था कि एक अच्छे शिक्षक में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है-
(1)शिक्षक को बुद्धिमान होना चाहिए
(2)शिक्षक को अध्यापन करके संतुष्ट होना चाहिए क्योंकि जब तक शिक्षक अध्यापन करके संतुष्ट नहीं होता है तब तक शिक्षक को अपने जीवन का पूर्ण आनंद प्राप्त नहीं हो पाएगा।
(3)शिक्षक का काम है ज्ञान को एकत्र करना, प्राप्त करना तथा बच्चे-बच्चियों में बाँटना।
(4)शिक्षक का एक आवश्यक गुण होता है "दीपक की तरह बनकर अपने प्रकाश को चारों ओर फैलाना"।
(5)शिक्षक को जीवन में सादा जीवन उच्च विचार का पालन करते हुए बच्चों को शिक्षा देने का प्रयास करना चाहिए।
(6) ज्ञान की गंगा प्रवाहित करते रहना चाहिए।
एक शिक्षक तथा लेखक के रूप में मेरी राय है कि शिक्षक को शिक्षक की तरह व्यवहार को अपने जीवन में आत्मसात करते हुए अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिए। समाज में शिक्षक सम्मान की चीज है और सम्मान कटोरे में माँगने की भीख नहीं है। हमारे बीच के ही शिक्षक महामहिम राष्ट्रपति के हाथों
सम्मानित भी होते हैं इसलिए हम शिक्षकों को लगातार अपनी शिक्षा को बाँटने का प्रयास, निरंतर शिक्षा में होने वाले नवाचारों को जीवन में आलिंगन करते हुए शिक्षा का विकास करने का प्रयास करते रहना चाहिए। इन्हीं
चंद विचारों के साथ विश्व के तमाम गुरुजनों को चरण स्पर्श प्रणाम करते हुए सभी शिक्षकों को "शिक्षक दिवस" की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
श्री विमल कुमार "विनोद"
प्रभारी प्रधानाध्यापक राज्य संपोषित उच्च विद्यालय पंजवारा (बांका)
About ToB Team(Vijay)
Teachers of Bihar is a vibrant platform for all who has real concern for quality education. It intends to provide ample scope and opportunity to each and every concern, not only to explore the educational initiative, interventions and innovations but also to contribute with confidence and compliment. It is an initiative to bring together the students, teachers, teacher educators, educational administrators and planners, educationist under one domain for wide range of interactive discourse, discussion, idea generation, easy sharing and effective implementation of good practices and policies with smooth access.
विमल कुमार विनोद
Labels:
Blogs Teachers of Bihar,
Teachers of Bihar,
Teachers of Bihar Blogs,
ToBBlog,
ToBblogs,
विमल कुमार विनोद
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment