शिक्षक दिवस की कहानी शिक्षक की जुबानी-राकेश कुमार - Teachers of Bihar

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Saturday, 5 September 2020

शिक्षक दिवस की कहानी शिक्षक की जुबानी-राकेश कुमार

शिक्षक दिवस की कहानी शिक्षक की जुबानी

          शिक्षक जी हाँ अजीब ताकत है इस शब्द में जब भी इस शब्द को सुनिए तो मन श्रद्धा भाव से भर उठता है ऐसा व्यक्तित्व हमारे समक्ष होता है जो सदैव दोनों हाथों को खुला रखते हैं ज्ञान का खजाना लुटाने के लिए। इनका सिर्फ एक हीं ध्येय होता है समाज को एक नैतिकतापूर्ण बेहतर भविष्य देने की।
          आज का आलेख शिक्षक एवं शिक्षक दिवस पर केंद्रित है और शिक्षक को हीं लिखना है और बड़ी मुश्किल होती है खुद की व्याख्या करना लेकिन हम शिक्षक हैं। हम किसी भी चीज को अवसर के रूप में लेते हैं। यह सर्वविदित है कि शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से पूजनीय रहा है। कोई उसे गुरु कहता है तो कोई अध्यापक या टीचर कहता है। ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्तित्व को चित्रित करते हैं जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है और जिसका योगदान किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना है। सही मायनों में कहा जाय तो  एक शिक्षक हीं अपने विद्यार्थी का जीवन गढ़ता है। शिक्षक ही समाज की आधारशिला है। एक शिक्षक अपने जीवन के अंत तक मार्गदर्शक की भूमिका में रहता है और समाज को सदैव सत्मार्ग पर चलने को प्रेरित करता है, तभी शिक्षक को समाज में ऊँचा दर्जा दिया जाता है। मुझे स्मरण है कि मैं जब शिक्षक बना था तब प्रथम बार मुझे किसी ने प्रणाम मास्टरसाहब कहा था तो मुझे बहुत हीं सुखद अनुभूति हुई थी और मेरा नया नामकरण भी हो गया था। समय के साथ बहुत कुछ परिवर्तन हुआ लेकिन नहीं परिवर्तन हुआ तो गुरु-शिष्य के बीच संबंध और आगे भी नहीं होगा। हम सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि माता-पिता बच्चे को जन्म देते हैं। उनका स्थान कोई नहीं ले सकता, उनका कर्ज हम किसी भी रूप में नहीं उतार सकते लेकिन शिक्षक हीं हैं जिन्हें हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता के समतुल्य माना जाता है क्योंकि शिक्षक हीं हमें समाज में रहने योग्य बनाता है। इसलिए हम शिक्षकों को समाज का शिल्पकार कहा जाता है। मैं अपने वर्ग शिक्षण के दौरान हमेशा इस बात का जिक्र बच्चों के सामने करता हूँ कि जिस तरह से तुम्हारी किसी भी सफलता से तुम्हारे माता-पिता गौरान्वित महसूस करते हैं उसी तरह हम शिक्षक भी तुम्हारी सफलता पर गौरान्वित महसूस करते हैं।
          आज के संदर्भ में अगर हम चर्चा करें यानि वर्ष 2020 की जिसे कोरोना वर्ष कहा जा रहा है। इसने वैश्विक स्तर पर एक अजीब सी स्थिति उत्पन्न कर दी और इसने सबसे ज्यादा प्रभावित किया गुरु और शिष्य। को सरल शब्दों में कहें तो शिक्षा व्यवस्था को यानि कि विद्यालय पूरी तरह से बच्चों के लिये बंद, उनकी शिक्षण गतिविधि ठप। जो बच्चों के साथ-साथ गुरुजनों के लिए भी अजीब स्थिति की पृष्ठभूमि तैयार कर रही थी। जो शायद शिक्षकों को मंजूर नहीं था। आज का दिन समस्त शिक्षकों का दिवस होता है लेकिन यहाँ पर मैं थोड़ा व्यक्तिगत अभिव्यक्ति (बिहार के सरकारी विद्यालय) की चर्चा कर रहा हूँ क्योंकि मेरा व्यक्तिगत मानना है कि कोरोना काल में जहाँ शिक्षण गतिविधि बिल्कुल ठप थी उस स्थिति में टीचर्स ऑफ बिहार की सरकारी विद्यालय के संदर्भ में एक अनूठी पहल जो आज तक नहीं हुआ था SoM (स्कूल ऑन मोबाइल) की शुरुआत हुई इस कार्यक्रम को बिहार के सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों ने संचालित किया और इस कार्यक्रम की सफलता ने इस मानक को स्थापित किया कि हम शिक्षक किसी भी परिस्थिति को अवसर में बदल देते हैं। इन सभी चर्चा के बाद उस व्यक्तित्व की चर्चा जिनके जन्मदिन ने हम सभी शिक्षकों को सम्मानित होने का मौका दिया। लाजमी है, जी हाँ आपने सही आकलन किया वो हैं डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन। इनका जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के  तिरूतनी गाँव में हुआ। वह शुरू से हीं पढ़ाई-लिखाई में काफी रुचि रखते थे। इनके बारे में एक प्रसंग है कि इन्होंने स्कूल के दिनों में ही बाइबल के महत्वपूर्ण अंश कंठस्थ कर लिए थे जिसके लिए इन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान मिला था। डॉ. राधाकृष्णन के नाम के पहले  सर्वपल्ली का सम्बोधन इन्हें विरासत में मिला था। राधाकृष्णन के पूर्वज 'सर्वपल्ली' नामक गाँव में रहते थे और 18 वीं शताब्दी के मध्य में वे तिरूतनी गाँव में बस गए लेकिन उनके पूर्वज चाहते थे कि उनके नाम के साथ उनके जन्मस्थल के गाँव का बोध भी सदैव रहना चाहिए।
          राधाकृष्णन बचपन से हीं मेघावी थे। सन 1909 में मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में इन्होंने शिक्षक जीवन की शुरुआत की। इसके बाद अध्यापन कार्य करते हुए कई विश्वविद्यालयों के कुलपति भी रहे। आगे चलकर रूस में भारत के राजदूत और 10 वर्ष तक भारत के उपराष्ट्रपति और अंत में सन 1962 से 1967 तक  भारत के राष्ट्रपति रहे। एक बार भारत के राष्ट्रपति बनने के बाद उनके कुछ दोस्तों और शिष्यों ने उनसे उनका जन्मदिन मनाने की अनुमति देने के लिए कहा। इस पर उन्होंने कहा कि मेरे जन्मदिन का जश्न मनाने के बजाय पाँच सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो मुझे गर्व महसूस होगा औऱ इसके बाद 5 सितम्बर 1962 से इनके जन्मदिन के अवसर शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा। इन्होंने देश के महत्वपूर्ण पदों पर रहकर देश की अनेक सेवाएँ की परन्तु वे सर्वोपरि एक शिक्षक के रूप में हीं रहे। इनका जीवन हम समस्त शिक्षकों के लिए एक प्रेरणा है तथा इस बात के लिए प्रेरित करता है कि एक शिक्षक के रूप में हमें जो मौका मिला है कि एक शिक्षक  द्वारा दी गई शिक्षा ही शिक्षार्थी  के सर्वांगीण विकास का मूल आधार है। हम बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिसमें ज्ञान, विनम्रता, व्यवहारकुशलता और योग्यता प्रदान करती हो साथ हीं साथ शिक्षकीय आदर्शों पर चलकर एक आदर्श मानव समाज की स्थापना में अपनी महती भूमिका का निर्वहण करें।
शिक्षक दिवस की शुभकामनाओं के साथ 
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राकेश कुमार
शारीरिक शिक्षक
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर(पटना)

1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना है। बहुत बहुत धन्यवाद!

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