Friday, 2 October 2020
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अहिंसा के पुजारी-राकेश कुमार
अहिंसा के पुजारी
अहिंसा शब्द का उच्चारण हीं स्पष्ट करता है कि समाज में शांति, समरसता,भाईचारे औऱ सदभाव युक्त समाज की कल्पना। हम जिस देश के वासी हैं उसकी आरम्भ से हीं शांति, सदभाव की पृष्ठभूमि रही है। हम सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि या अहिंसा की चर्चा करते हैं तो अनेक अर्थों से अवगत होते हैं लेकिन इसकी सरल व्याख्या है कि किसी को शारीरिक या मानसिक दुःख न पहुँचाना अहिंसा है। अक्सर एक सामान्य धारणा के साथ हमलोग आगे बढ़ते हैं कि युद्ध का होना हिंसा और युद्ध के कारणों को ढूंढ कर उसका शांतिपूर्ण समाधान करना अहिंसा है जो कि अहिंसा की व्यापकता को प्रदर्शित करता है। इस व्याख्या के साथ एक प्रश्न ये भी दृष्टिगोचर होता है कि हम अपने दैनिक जीवनशैली में कैसे अहिंसा को देखते हैं तो हम कह सकते हैं कि मन, वचन और कर्म से किसी की हिंसा न करना हीं अहिंसा है। यहाँ तक की वाणी का कठोर होना या न होना को भी हिंसा या अहिंसा के रूप में देख सकते हैं।
किसी भी नैतिकतापूर्ण सिद्धान्तों की चर्चा हम करते हैं तो अक्सर उसकी सार्थकता को समाज में होने वाले बदलाव के रूप में देखते हैं। ऐसे तो हमारे देश का इतिहास हीं सत्य, शांति और अहिंसा का रहा है। भारत को भगवान महावीर और भगवान बुद्ध का देश माना जाता है जिन्होंने अपने सत्य, शांति और अहिंसा के संदेशों को पूरे विश्व में प्रसारित किया और अनेकों देशों में इनके अनुयायी हैं जो भारत के महान संस्कृति का परिचायक है। आज हम चर्चा करने जा रहे हैं आधुनिक युग के सबसे बड़े अहिंसावादी महात्मा गाँधी की। उनके नजर में अहिंसा का तात्पर्य क्या था, वो अहिंसा को किस नजरिये से देखते थे? उनका मानना था कि एकमात्र तथ्य जो मनुष्य को पशु से अलग करता है वो है अहिंसा। वो कहते थे कि हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जिसमें मालिक और मजदूर के बीच परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो। निःशस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशत्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी।
एक आम धारणा यह भी है कि हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान शांति औऱ सौहार्दपूर्ण ढंग से बातचीत को माना गया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है हमारे देश की आजादी सर्वविदित है कि हमारा देश लगभग 200 वर्षों तक पराधीन रहा। आजादी की लड़ाई लंबी चली, हजारों क्रांतिकारियों ने अपने वतन के खातिर अपने प्राणों की आहूति दी। आंदोलन को अनेक रूप में संचालित किया गया उसी में से एक रूप था महात्मा गांधी का अहिंसावादी आंदोलन जिसको भारत के आजादी के परिपेक्ष्य में मील का पत्थर की संज्ञा दी जाती है। उनके अहिंसावादी आंदोलन ने पूरे भारत को एक कर दिया और अंग्रेजों की हर नीति को असफल करते हुए अंततः अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा और भारत 1947 में स्वाधीन भारत बन गया और उसी समय 19 वीं शताब्दी के सबसे बड़े महानायक के रूप में उदय हुआ महात्मा गांधी का जिन्होंने दुनियाँ को संदेश दिया कि हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं और सत्य, शांति और अहिंसा के द्वारा किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है ।
यह आलेख जयंती विशेष है तो यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि उस व्यक्तित्व के जीवन परिचय की चर्चा जरूर करें जो इस आलेख के मुख्य केंद्रबिंदु हैं। जी हाँ महात्मा गाँधी का जीवन परिचय यहाँ पर उल्लेख करना चाहता हूँ कि इनका व्यक्तित्व इतना बड़ा है कि उसे कुछ शब्दों में प्रकट करना संभव नहीं है लेकिन यह हमारे शब्दों एवं विचारों के सामंजस्य पर निर्भर करता है कि इनके जीवन से संबंधित प्रेरित तथ्यों को कैसे व्यक्त करें।
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 ई. में गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ। इनके पिताजी का नाम करमचंद गाँधी एवं माताजी का नाम पुतलीबाई था। कहा जाता है कि बच्चों की प्रथम पाठशाला उसका घर होता है एवं प्रथम गुरु माँ होती है। गाँधीजी की माँ एक धार्मिक महिला थी। वह नियमित रूप से उपवास रखती थी एवं परिवार में किसी के बीमार पड़ने पर उसकी देखभाल में दिन-रात एक कर देती थीं। इन सब बातों का मोहनदास ( गाँधीजी ) पर बाल्यवस्था से हीं असर था। इनका परिवार जैन धर्म से प्रभावित था जिसके मुख्य सिद्धान्त अहिंसा एवं विश्व की सभी वस्तुओं को शास्वत मानता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सत्य, शांति और अहिंसा उन्हें विरासत में मिली।
इनका विद्यार्थी जीवन मध्यम था एवं शर्मीले स्वभाव के भी थे। ऐसा कहा जाता है कि विद्यार्थी जीवन में कोई इनके बारे यह अनुमान नहीं लगा पाया था कि आगे चलकर ये इतने महान बनेंगे। यहाँ पर मैं व्यक्तिगत अभिव्यक्ति व्यक्त कर रहा हूँ, जैसे कि वर्तमान शिक्षण पद्धति भी इस बात पर जोर देता है कि बच्चों में नैतिक शिक्षा का होना नितांत आवश्यक है। गाँधीजी के जीवन पर गौर करें तो उसमें सैद्धान्तिक एवं नैतिक मूल्यों का जबरदस्त समावेश था। ऐसा माना जाता है कि समय के साथ सिद्धांत एवं विचार दोनों में बदलाव आता है लेकिन गाँधीजी के दिखाए विचार एवं सिद्धान्त आज वर्तमान समय में भी प्रासंगिक है एवं नए हैं। आज भी हम सभी उन सिद्धान्तों एवं विचारों को आत्मसात करते हैं। बिहार के प्रत्येक विद्यालय में बापू की पाती एवं एक था मोहन का चेतना सत्र के दौरान वाचन किया जाता है ताकि बच्चों में सत्य, शांति, ईमानदारी एवं अहिंसा के भावना का संचार हो।
उनके द्वारा बताए गए सात सामाजिक पापकर्म -
1. सिद्धान्तों के बिना राजनीति
2.परिश्रम के बिना धन
3.विवेक के बिना सुख
4.चरित्र के बिना गुण
5. नैतिकता के बिना व्यापार
6. मानवता के बिना विज्ञान
7. त्याग के बिना पूजा
हर विद्यालय के दीवारों पर अंकित है।
इस संदर्भ में गाँधीजी का मानना था कि प्रारंभिक स्तर से हीं बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास आवश्यक है। हम सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है कि गाँधीजी के सिद्धांतों को सिर्फ भारत में हीं नहीं बल्कि पूरे विश्व ने अपनाया है। उनके अहिंसा के सिद्धांत का वैश्विक स्तर पर प्रभाव पड़ा और इसी कारण से 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस स्थापित करने के लिए मतदान हुआ और सभी सदस्यों नें 2 अक्टूबर को इस रूप में स्वीकार किया और उसी समय से गाँधीजी के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाने लगा।
अब हम सभी का भी यह दायित्व हो जाता है कि जिस व्यक्ति ने अपने सत्य, शांति और अहिंसा के बल पर भारत को स्वाधीन कराया एवं पूरी दुनियाँ के सामने ये संदेश दिया कि हम सभी एक हैं, सभी के अधिकार एक हैं और सभी के दायित्व एवं कर्तव्य एक हैं।
इन सभी चीजों का आत्मसात कर एक सत्य, शांति, ईमानदारी और अहिंसा युक्त समाज बनाने में सहभागी बनकर अहिंसा के पुजारी ( गाँधीजी ) के जयंती को सार्थकता प्रदान करें।
राकेश कुमार
शारीरिक शिक्षक
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर (पटना )
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बहुत सुंदर और उपयोगी आलेख। वास्तव में अहिंसा शांति और समृद्धि का आधार है।👌👌👌💐💐💐
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
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