Friday, 2 October 2020
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महात्मा गाँधी-अमरेन्द्र कुमार
महात्मा गाँधी
मित्रों, आज से 150 साल पहले 2 October 1869 को गुजरात के पोरबंदर में करमचंद गाँधी और पुतलीबाई के घर उनकी सबसे छोटी संतान मोहनदास करमचंद गाँधी का जन्म हुआ। उनका बचपन श्रवण कुमार, प्रहलाद और हरिश्चन्द्र की कहानियाँ सुनने और उनसे मिली सीख को आत्मसात करने में बीता। पढाई-लिखाई और खेल-कूद में बेहद साधारण रहे। मोहनदास का विवाह मात्र 13 साल की उम्र में उनसे 1 साल बड़ी कस्तूरबा से करा दिया गया।
गाँधी जी डॉक्टर बनना चाहते थे पर वैष्णव परिवार में चीरफाड़ की अनुमति नहीं थी, सो उन्हें वकालत की पढाई करने को कहा गया। इसलिए 1888 में कुछ ही महीने पहले पैदा हुए अपने पुत्र हरिलाल और पत्नी कस्तूरबा को छोड़ मोहनदास बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए। 4 साल बाद वे पढाई पूरी कर भारत लौटे और कुछ दिनों तक बॉम्बे और राजकोट में प्रैक्टिस की जहाँ उन्हें अधिक कामयाबी नहीं मिल सकी क्योंकि होनी को तो कुछ और ही मंज़ूर था। 1893 में दादा अब्दुल्लाह नाम के एक व्यापारी ने उन्हें साउथ अफ्रीका बुला लिया, जहाँ भारत की तरह ही ब्रिटिश हुकूमत थी।
23 साल की उम्र में साउथ अफ्रीका पहुँचे। मोहनदास को वहाँ कदम-कदम पर भेदभाव का सामना करना पड़ा। सही टिकट होने के बावजूद सिर्फ अलग रंग और नस्ल का होने के कारण उन्हें ट्रेन के प्रथम दर्जे से बाहर फेंक दिया गया। कोई आम इंसान होता तो भाग कर वापस आ जाता लेकिन इस तरह के अनगिनत घटनाओं के बावजूद गाँधी जी 21 साल तक साउथ अफ्रीका में रहे और वहाँ व्याप्त कई कुरीतियों और अत्याचारों के खिलाफ लड़ते रहे। साउथ अफ्रीका में रह कर ही गाँधी जी ने अपने द्वारा स्थापित किये गए फीनिक्स और टॉलस्टॉय फार्म में सत्याग्रह को एक शस्त्र के रूप में विकसित किया। गाँधी जी द्वारा साउथ अफ्रीका में बिताया समय कितना महत्त्वपूर्ण था ये इस बात से समझा जा सकता ही कि एक भाषण में उन्होंने कहा था। भारत वापसी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष
गोपाल कृष्ण गोखले के निवेदन पर भारत को अंग्रेजी हुकूमत से स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से महात्मा गाँधी 1915 में भारत लौट आये।
भारत आने के बाद गाँधी जी ने जो पहला आन्दोलन चलाया वह था, चंपारण सत्याग्रह जिसके अंतर्गत 1917 में उन्होंने बिहार के चम्पारण जिले में किसानों को अंग्रेजों द्वारा जबरदस्ती नील की खेती कराये जाने से मुक्ति दिलाई। इसके बाद इसी साल उन्होंने गुजरात प्रदेश के खेड़ा जिले में बाढ़ और अकाल की स्थिति होने के बावजूद लगान वसूले जाने का अहिंसक विरोध कर अंग्रेजों को समझौता करने पर मजबूर किया। इन सफल आन्दोलनों कि वजह से गाँधी जी की कीर्ति पूरे भारत में फ़ैल गयी और धीरे-धीरे उन्हें गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा “महात्मा” और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस द्वारा “राष्ट्रपिता” की दी हुई उपाधि भी सर्वव्यापक हो गयी और आम जनमानस उन्हें महात्मा और बापू कह कर पुकारने लगा।
1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आन्दोलनों को कुचलने के लिए रॉलेट ऐक्ट लाया गया जिसके अंतर्गत किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए उसे जेल में बंद किया जा सकता था। इसके खिलाफ गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन चलाया और देशवासियों से अंग्रेजी हुकूमत का शांतिपूर्ण विरोध करने के लिए कहा। इस दौरान देश भर में लोग अंग्रेजी कपड़ों व वस्तुओं को जलाने लगे। 13 अप्रैल 1919 को जब इसी तरह का एक विरोध प्रदर्शन जालियाँवाला बाग़ में किया जा रहा था तब जनरल डायर ने सैकड़ों लोगों को गोलियों से भुनवा दिया। इसके बावजूद गाँधी जी अहिंसा के मार्ग पर चलने का संदेश देते रहे और धीरे-धीरे पूरा देश इस आन्दोलन का हिस्सा बना गया। अंग्रेज परेशान हो उठे और ऐसा प्रतीत होने लगा कि जल्द ही भारत को स्वराज मिल जाएगा लेकिन तभी 5 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा काण्ड हो गया जिसमें कई पुलिस वालों को जिंदा जला दिया गया। इस घटना ने क्षुब्ध कर दिया और गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया। इसके बाद गाँधी जी कुछ सालों तक जेल में रहे।
मार्च 1930 में गाँधी जी ने नमक पर टैक्स लगाने का विरोध करते हुए अहमदाबाद से दांडी तक लगभग 400 किलोमीटर की पैदल यात्रा की और क़ानून तोड़ते हुए खुद नमक बनाया। इस आन्दोलन को आपार जन समर्थन मिला, यहाँ तक कि विश्व के कई देशों में मीडिया ने इसे प्रमुखता से उछाला। अंग्रेज दबाव में थे और गाँधी जी को राउंड टेबल कांफ्रेंस के लिए लन्दन बुलाया गया, लेकिन इसका परिणाम भी निराशाजनक रहा।
इसके बाद 1942 में गाँधी जी के नेतृत्व में एक बहुत बड़ा आन्दोलन "भारत छोड़ो आंदोलन" शुरू हुआ।
यह एक शक्तिशाली आंदोलन बन गया जिसमें पुलिस की गोलियों से हजारों की संख्या में स्वतंत्रता सेनानी या तो मारे गए या घायल हो गए और हजारों गिरफ्तार कर लिए गए। यही वो समय था जब गाँधी जी ने देशवासियों को एकजुट करते हुए अंतिम स्वतंत्रता के लिए अहिंसावादी संघर्ष जारी रखने को कहा और “करो या मरो” का नारा दिया। इस पर गाँधी जी को दो साल के लिए जेल में डाल दिया गया लेकिन इस आन्दोलन ने पूरे देश को संगठित कर दिया और अंततः सैकड़ों सालों की गुलामी और असंख्य बलिदानों के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हो गया।
यह विडम्बना ही कही जायेगी कि दुनियाँ भर को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गाँधी का अंत हिंसा द्वारा किया गया। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मार कर उनकी हत्या कर दी गयी लेकिन मरने के बाद भी वे अमर हैं और सदा रहेंगे।
अमरेंद्र कुमार
प्राथमिक विद्यालय भईया टोला दरिहट
TOB डिस्ट्रिक्ट मैंटर
रोहतास
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