हिन्द स्वराज-शफक फातमा - Teachers of Bihar

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Friday 2 October 2020

हिन्द स्वराज-शफक फातमा

हिन्द स्वराज
(मोहनदास करमचंद गाँधी)

          2 अक्टूबर के दिन का भारत ही नहीं विश्व के इतिहास में भी एक खास महत्व है। भारत में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की तरह ही 2 अक्टूबर को भी राष्ट्रीय पर्व का दर्जा हासिल है। वैसे तो विश्व के साथ भारत  के कैलेंडर पर इस दिन अलग-अलग वर्षों में कई घटनाएँ घटित हुई हैं परन्तु भारत में ये दिवस इस कारण महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिन देश की दो महान विभूतियों के जन्म दिन के तौर पर इतिहास के पन्नों में दर्ज है। यह दो महान व्यक्ति हैं -- महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री।
          महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ जिन्हें हम "राष्ट्रपिता"( Father of the Nation) के नाम से संबोधित करते हैं।  बापू, महात्मा, मोहनदास करमचंद गाँधी, राष्ट्रपिता सब नाम गाँधीजी को ही समर्पित है। गाँधीजी के अलावा लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को हुआ जिन्होंने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया। बचपन से ही 2 अक्टूबर को गाँधी एवं शास्त्री जयंती के रूप देखने को मिला। दोनों से जुड़े कई कहानियाँ पाठ्य-पुस्तक में उल्लेखित हैं। दोनों ही भारत के रत्न हैं।
          आज इस दिवस पर मैं गाँधीजी द्वारा लिखित पुस्तक हिन्द स्वराज के बारे में बताना चाहूँगी। वैसे तो पूरे जीवनकाल में उन्होंने  बहुत सारी किताबें लिखी हैं। ये एक अच्छे नेता होने के साथ-साथ लेखक भी थे। प्रत्येक पुस्तक में उन्होंने अपने जीवन के उतार-चढ़ाव को बखूबी पेश किया। महात्मा गाँधी ने हरिजन, इंडियन ओपिनियन, यंग इंडिया और नवजीवन में संपादक  के तौर पर काम किया।
          इंग्लैंड से दक्षिण अफ्रीका  वापस आते हुए मोहनदास करमचंद गाँधी ने 1909 में जहाज़ पर अपने विचार और अनुभव लिखे जिसका संकलन 'हिन्द स्वराज' नामक पुस्तक में है। भारत में इस पुस्तक को अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था। यह पुस्तक उस समय लिखी गयी थी जब भारत में ब्रिटिश शासनकाल खत्म हो रहा था। दक्षिण अफ्रीका में सर्वप्रथम 1910 में  अंग्रेज़ी अनुवाद में हिन्द स्वराज पुस्तक स्वरूप में प्रकाशित हुई। इसकी गुजराती और हिन्दी में भी विविध संस्करण निकलते रहे। मूल पुस्तक गुजराती में प्रकाशित की गई। उसी गुजराती पुस्तक का रूपांतरण  करके हिन्दी और अंग्रेज़ी संस्करण प्रकाशित किये गए।
          गाँधीजी ने इस पुस्तक में जो मार्ग बताया है वही मार्ग स्वराज का सच्चा मार्ग है। उन्होंने यह भी बताया है कि सत्याग्रह अर्थात प्रेम धर्म ही जीवन का धर्म है। उससे च्युत होना विनाश की ओर तथा उसपर आरूढ़ रहना नवजीवन की ओर ले जाता है। महात्मा गाँधी ने अपने इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों के समक्ष 20 अध्याय को रखने की चेष्ठा की है जिसमें- स्वराज क्या है?, इंग्लैंड की हालत, हिंदुस्तान की दशा, रेलगाड़ियाँ, हिन्दू- मुसलमान, वकील, डॉक्टर के संदर्भ में, सत्याग्रह, आत्मबल, शिक्षा, मशीनें इत्यादि अध्याय  प्रस्तुत किये गए हैं।
          गाँँधीजी की राय में यह किताब ऐसी है कि यह बालक के हाथ में भी दी जा सकती है। यह द्वेषधर्म कि जगह प्रेमधर्म सिखाती है; हिंसा की जगह आत्म- बलिदान को रखती है; पशुबल से टक्कर लेने के लिए आत्मबल को खड़ा करती है। इस किताब में आधुनिक सभ्यता की सख्त टीका-टिप्पणी की गई है। इस पुस्तक में बताए हुए कार्यक्रम के एक ही हिस्से का आज अमल हो रहा है; वो है अहिंसा। हिन्द स्वराज में गाँधीजी ने अपने राजनीतिक जीवन के बारे में उल्लेख किया है। आज इस पुस्तक ने एक शताब्दी से भी  अधिक  समय काट लिए हैं। इस किताब के माध्यम से गाँधीजी इस निर्णय पर पहुँचे थे कि पश्चिम के देशों में, यूरोप- अमेरिका में जो आधुनिक  सभ्यता ज़ोर कर रही है, वो कल्याणकारी नहीं है बल्कि मनुष्य हित के लिए वो सत्यनाशकारी है। उनका मानना था कि भारत में और सारी दुनियाँ में प्राचीन काल से जो धर्म-परायण नीति प्रधान सभ्यता चली आयी है, वही सच्ची सभ्यता है।
गाँधीजी के बताये हुए अहिंसक रास्ते पर चल कर भारत स्वतंत्र हुआ। असहयोग, कानूनों का सविनय- भंग और सत्याग्रह-- इन तीनों कदमों की मदद से उन्होंने स्वराज का रास्ता तय किया। हम इसे चमत्कारपूर्ण घटना का त्रिविक्रम कह सकते हैं। गाँधीजी के सारे जीवन कार्य के मूल में जो श्रद्धा काम करती रही, वो सारी हिन्द स्वराज में पाई जाती है। हिन्द स्वराज की प्रस्तावना में गाँधीजी ने स्वयं लिखा है कि व्यक्तिशः उनका सारा प्रयत्न हिन्द स्वराज में बताए हुए आध्यात्मिक स्वराज की स्थापना करने के लिए हीं हैं। उनके प्रयत्न और विचारधारा का प्रभाव केवल भारतवासियों पर ही नहीं हुआ बल्कि विश्व पर भी छाप छोड़ा।


शफ़क़ फातमा
प्राथमिक विद्यालय अहमदपुर
प्रखण्ड-रफीगंज
ज़िला-औरंगाबाद

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