महामानव महात्मा गाँधी-पंकज कुमार - Teachers of Bihar

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Friday, 2 October 2020

महामानव महात्मा गाँधी-पंकज कुमार

महामानव महात्मा गाँधी

          भारतवर्ष की पवित्र भूमि पर अनेक बहुमूल्य रत्नों ने जन्म लेकर इसे गौरवान्वित किया है। भारत माँ ने अपने गर्भ से ऐसे ऐसे महामानव को जन्म दिया है जिन्होंने भारत ही नहीं वरन् संंपूर्ण विश्व को सत्य, अहिंसा, शांति और मानवता का संदेश दिया। ऐसे ही अनमोल रत्नों में एक चमकदार और बेशकीमती रत्न थे- महात्मा गाँधी। वे एक महान संत, दार्शनिक, विचारक, लेखक, समाजसुधारक, राजनेता और देशभक्त थे। वे सत्य और अहिंसा के पुजारी तथा शांति और मानवता के सच्चे पुरोधा थे। सत्याग्रह उनका अचूक हथियार था।
          महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 ई. में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता करमचंद गाँधी थे जो पोरबंदर के दीवान थे और फिर राजकोट के भी दीवान रहे। उनकी माता पुतलीबाई एक साध्वी स्त्री और कुशल गृहणी थी। उनकी धर्मपत्नी कस्तूरबा गाँधी थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंंदर और राजकोट के सरकारी स्कूल से हुई। सन् 1887 ई. में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। सन् 1888 ई. वे बैरिस्ट्री की पढ़ाई के लिए ब्रिटेन चले गए। सन् 1891 ई. में बैरिस्ट्री पास कर वे भारत लौट आए और बंबई में वकालत करने लगे।
          वकालत में उन्हें आशातीत सफलता नहीं मिली। इसी बीच पोरबंदर की एक फर्म का दक्षिण अफ्रीका में एक मुकदमा चल रहा था। गाँधी जी उसका वकील बनकर दक्षिण अफ्रीका गये। वहाँ अदालत में उन्हें अपना पगड़ी उतारकर आने को कहा गया। उन्होंने अपने पगड़ी की रक्षा की और अदालत से बाहर निकल गए। वहाँ उन्हें घोड़ागाड़ी, रेलगाड़ी, होटल सभी जगह अपमानित किया गया। वहाँ उन्होंने भारतीयों तथा काले लोगों के साथ होने वाले अन्याय तथा अत्याचार को देखा। उनका हृदय व्यथित हो गया। वहीं से गाँधी जी के व्यक्तित्व का विद्रोही और न्यायप्रिय स्वरूप उभरने लगा। उन्होंने भारतीयों के साथ मिलकर उनके अधिकार के लिए सत्याग्रह किया तथा शांतिपूर्ण आंदोलन चलाया। उनको सफलता मिली तथा भारतीयों को अधिकार व सम्मान मिला। यहीं से गाँधी जी एक संघर्षशील, न्यायप्रिय तथा अहिंसावादी राजनेता के रूप में वश्व फलक पर उभरे।
          इसके बाद गाँधी जी भारत वापस आ गए। उस समय अंग्रेजों की गुलामी और अत्याचार से संपूर्ण भारत त्रस्त था। अंग्रेजों ने आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक रूप से भारत को अपना गुलाम बना रखा था। तब गाँधी जी ने देश को स्वतंत्र कराने का व्रत लिया। सर्वप्रथम उन्होंने सन् 1917ई. में बिहार के चंपारण में नीलहे आंदोलन चलाया। वहाँ के किसानों को लैंडलार्ड के अत्याचार से बहुत हद तक मुक्ति दिलाया। इसके बाद उन्होंने सन् 1919 ई. में असहयोग आंदोलन चलाया। इसमें स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग पर बल दिया गया और विदेशी वस्तु, कपड़ा, शिक्षण संस्थान, अदालत आदि के बहिष्कार का निर्णय लिया। फिर सन् 1930 ई. में उन्होंंने सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया। इसमें दांडी मार्च करके नमक कानून भंग किया। सन् 1942 ई. मेंं उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया। इसमें उन्होंने "अंग्रेजों भारत छोड़ो" और "करो या मरो" का नारा दिया। उन्होंंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को जन आंदोलन बना दिया। उनकी प्रेरणा से बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरुष सभी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। फलतः 15 अगस्त 1947 ई. को देश आजाद हुआ।
          महात्मा गाँधी युगपुरुष थे। वे बहुमुखी प्रतिभा और व्यक्तित्व के स्वामी थे। उन्होंने संपूर्ण जगत में सत्य, अहिंसा, शांति और मानवता का प्रकाश फैलाया। आज संपूर्ण विश्व में उनके जन्म दिवस को "विश्व अहिंसा दिवस" के रूप में मनाया जाता है। उनका मानना था कि एक विनम्र तरीके से आप पूरी दुनिया को हिला सकते है। उन्होंने शिक्षा का अर्थ आत्मा तथा चरित्र का विकास बताया और जीवन को कर्म प्रधान बताया। वे एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने अस्पृश्यता, अशिक्षा, गरीबी, नशाखोरी के खिलाफ आंदोलन चलाया और स्त्री शिक्षा, धार्मिक एकता, आपसी प्रेम पर बल दिया। समस्त मानव जाति को ईश्वर का संंतान बताया। असहाय व गरीबोंं की सेवा को मानव धर्म बताया। उनके अनुसार :-"The best way to pray to God is to love his creation". उन्होंने आत्मनिर्भरता पर बल दिया। इसके लिए उन्होंने बुनियादी शिक्षा और स्वरोजगार पर बल दिया। उन्होंने मितव्ययता और संंतोष को सुखी जीवन का आधार बताया। उनका मानना था कि पृथ्वी हमारी हर जरूरत पूरी करने की क्षमता रखती है लेकिन लालच को पूरा नहीं कर सकती है। इसलिए हमें उपलब्ध संंसाधनों का बुद्धिमानी पूर्वक व मितव्ययता के साथ उपयोग करना चाहिए। उन्होंने स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग पर बल दिया ताकि अपने देश तथा देशवासियों का आर्थिक विकास हो सके। गाँधी जी के इन्हीं उच्च विचारों और आदर्शोंं को देखकर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उन्हें महात्मा कहकर संबोधित किया और पूरा देश उन्हें सम्मान से राष्ट्रपिता कहता है।
          अतः हमें विश्वशांति स्थापित करने के लिए महात्मा गाँधी के सिद्धान्तों और आदर्शों का अनुसरण करना चाहिए। सत्य, अहिंसा, शांंति, संतोष और मानवसेवा को अपने जीवन का आधार बनानाा चाहिए। आइये, गाँधी जयन्ती के पावन अवसर पर आपसी प्रेम और सहयोग का व्रत धारण करें।
     
         
            
 पंकज कुमार ( शिक्षक )
 प्रा. वि. हरिवंंशपुर, बाथ,
सुलतानगंंज, भागलपुर
 मो. 9572080331

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