शिक्षण पद्धति में बदलाव समय की मांग-डाॅ. सुनील कुमार - Teachers of Bihar

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Tuesday 27 October 2020

शिक्षण पद्धति में बदलाव समय की मांग-डाॅ. सुनील कुमार

शिक्षण पद्धति में बदलाव समय की मांग

          मनुष्य में सुनियोजित कार्य संपादन, जीवनशैली, निरंतर खोज एवं आविष्कार करने की प्रवृत्ति अधिक तीव्र होती है। इसी प्रवृत्ति ज्ञान के कारण मनुष्य ने विभिन्न युगों में नए-नए आविष्कार करते हुए मानव जाति को एक विकसित रूप दिया है। ज्ञान एक सतत प्रक्रिया है जो वास्तविक अनुभव के अवलोकन से उत्पन्न होता है। समय के अनुसार ज्ञान प्राप्ति हेतु शिक्षा के परिदृश्य भी बदल रहे हैं। शिक्षा के बदलते परिदृश्य में शिक्षक की भूमिका व्यापक हो गई है। 21वीं सदी की शुरुआत में पाठ्यक्रम का बदलाव एक गहरा सामाजिक और राजनैतिक सवाल बनकर उभरा है। जब पाठ्यक्रम में बदलाव तेजी से हो रहा हो तो शिक्षक में इस संभावना को खोजा जाना लाजमी है कि वह नई अकादमिक स्थितियों से सामंजस्य कर सके और जरूरत पड़ने पर उनसे मुकाबला भी कर सके।
          मेरे गाँव का मंगरु नाई अब अपने पिताजी के औजार से किसी की दाढ़ी नहीं बनाता क्योंकि लोहे का वह उस्तरा (छूरा) जिससे पूरे गाँव के लोगों की दाढ़ी बन जाती थी, अब गाँव के किसी परिवार का कोई सदस्य अपनी दाढ़ी बनवाना पसंद नहीं करता। फलत: समय की मांग के अनुरूप मंगरु ने अपने आप को बदला, अपने व्यवसाय को अपडेट किया और अब मंगरु ब्लेड वाला उस्तरा का प्रयोग करता है। एक ब्लेड से केवल एक दाढ़ी ही बनाता है। मंगरु नए परिवेश में अपनी पहुँच सभी तक बनाने के लिए नई चुनौतियों का सामना हेतु अपने-आपको एवं अपने व्यवसाय को अपडेट किया।
          क्या हमने पढ़ने-पढ़ाने, सीखने-सिखाने के तरीके में समय के अनुसार अपने-आप को बदला है ! वही पुरानी घिसी-पिटी 'चॉक एंड टॉक प्रणाली' नए परिवेश में, नई पीढ़ी के सामने, हमें नई चुनौतियों का सामना करने में कितना मददगार साबित होगा !
          पिछले दो दशकों में पढ़ने-पढ़ाने एवं सीखने-सिखाने के तरीकों में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है। एक समय था जब हमारे पास ब्लैक बोर्ड, चाॅक एवं पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त दूसरी विधाएं उपलब्ध नहीं थी। क्या शिक्षक पाठ्यक्रम की बातों को गंतव्य तक पहुँचाने वाला एक एजेंट मात्र है जो कि बच्चों को पाठ्य पुस्तकों में लिखी बातों को रटवाकर परीक्षा में पुनरोत्पादित करेंगे? शिक्षक की इस रूढ़िगत भूमिका को तत्काल बदले जाने की जरूरत है।
          वर्तमान समय में सूचना तथा संचार तकनीकी हमारे सामाजिक अंतः क्रिया का एक आवश्यक अंग बन चुका है। आज शिक्षकों एवं छात्रों के लिए शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सरल तथा प्रभावी बनाने में सूचना तथा संचार तकनीकी (आईसीटी) एक महत्वपूर्ण साधन बन चुका है। ऐसी परिस्थिति में क्या आईसीटी का सकारात्मक उपयोग स्कूली शिक्षक, शैक्षिक तथा सह-शैक्षिक गतिविधियों के माध्यम से बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिए नहीं किया जा सकता?
          पढ़ने-पढ़ाने, सीखने-सिखाने के दैनिक कार्य में हम अक्सर यह महसूस करते हैं कि कुछ विषयों की समझ बच्चों तक बनाने के लिए ब्लैक बोर्ड के अतिरिक्त कुछ ऐसी विधाओं का भी प्रयोग किया जाना चाहिए जो प्रभावी, अर्थपूर्ण और रुचिकर हो। किताबों की सीमाएँ जब समाप्त हो जाती हैं तब आईसीटी उम्मीद की एक किरण दिखाई देती है। वर्तमान परिस्थिति में स्वास्थ्य संबंधित उत्पन्न वैश्विक संकट ने आईसीटी की प्रासंगिकता, महत्व को हम समझ चुके हैं।
          शिक्षा जगत में आईसीटी के उपयोग की संभावनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। इसके लिए जरूरी है कि तकनीकी युग में समय की मांग के अनुसार अपने आप को बदलें और संचार तकनीकी से अपने को लैस करें।


डॉ. सुनील कुमार
डिस्ट्रिक्ट मेंटर, औरंंगाबाद.
राष्ट्रीय इंटर विद्यालय दाउदनगर औरंंगाबाद.

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