भारतीय कला संस्कृति का मौजूदा स्वरूप-मुत्युंजयम - Teachers of Bihar

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Thursday 29 October 2020

भारतीय कला संस्कृति का मौजूदा स्वरूप-मुत्युंजयम

भारतीय कला संस्कृति का मौजूदा स्वरूप

          भारतीय कला एवं संस्कृति का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। भारतीय चित्रकारी का प्रारंभिक उदाहरण प्रागैतिहासिक काल के हैं जब मानव गुफाओं की दीवारों पर चित्रकारी किया करता था। भीमबेटका की गुफाओं में की गई चित्रकारी 10000 ईसवी पूर्व एवं 6ठी  शताब्दी में अजंता एलोरा गुफाओं की चित्रकारी भारतीय चित्रकारी का सर्वोत्तम उदाहरण है। 
          कला मानव की ऐसी रचनात्मक प्रदर्शनी है जिसके माध्यम से वास्तविक और काल्पनिक स्थितियों को चित्रित किया जाता है। कला का अभिप्राय वास्तु कला, मूर्ति कला और चित्रकला से होता है। एक कलात्मक और अनूठी पहचान से किसी भी देश की संस्कृति और सभ्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है। भारतीय कला में ही विभिन्न प्रकार होते हैं जिसमें प्रतिमा कला, दृश्य कला, वस्त्र कला भारतीय कला आदि का इतिहास काफी पुराना एवं अद्भुत है। भारत की कला संस्कृति एवं इसका इतिहास अत्यंत समृद्ध है। हमारी कला संस्कृति की आधारशिला हमारे विरासत स्थल है। इन स्थलों के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व के साथ साथ इनका व्यापक आर्थिक महत्व भी है लेकिन अब तक इनकी आर्थिक संभावनाओं का पर्याप्त दोहन नहीं हो पाया है। वर्तमान में भारतीय उपमहाद्वीप अपने स्मारकों एवं उल्लेखनीय पुरातत्व स्थलों की विशाल संख्या के लिए जाना जाता है लेकिन विडंबना यह है कि भारत में 15000 से कम स्मारक और विरासत स्थल कानूनी रूप से संरक्षित हैं जबकि ब्रिटेन जैसे छोटे देश में 6 लाख स्मारकों को कानूनी संरक्षण प्राप्त है। ऐसे स्थल जिन्हें राष्ट्रीय, राज्य अथवा स्थानीय महत्व के स्थलों के रूप में जाना जाता है, के शहरी दबाब, अतिक्रमण, उपेक्षा, ध्वंश आदि के कारण वर्तमान में बदहाल स्थिति में है। ऐसे स्थलों का उपयोग होटलों, संग्रहालयों, पुस्तकालयों के रूप में किया जा सकता है। इन विरासत स्थलों को संरक्षित कर एवं इन्हें अधिका-धिक आकर्षक बनाकर इन्हें पसंदीदा पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे रोजगार सृजन होगा एवं अतिरिक्त आय का स्रोत भी बढ़ेगा। वे हमारी प्राचीन विरासत है, हमारी धरोहर है, उनको अगर हम सुरक्षित नहीं रखेंगे तो हमारी प्राचीनता का हमें कैसे पता चलेगा? हाँ हमें हमारी प्राचीनता का पता चलने के लिए प्राचीन काल की जानकारी का सर्वोत्तम साधन हमारी प्राचीन विरासत है। ऐसी स्थिति में उनको सुरक्षित रखना हमारा दायित्व है। अजंता एलोरा की गुफाएँ उसमें जो चित्र है उनको हमें सुरक्षित रखना चाहिए। खजुराहो के मंदिर हैं जो हमारे ऐतिहासिक धरोहर आज असुरक्षित हैं। ऐतिहासिक स्थलों और स्मारकों, इमारतों का विभिन्न तरीकों से नष्ट कर दिया जाता है, जैसे कि कुछ स्मारकों की दीवारों पर कुछ भी लिख दिया जाता है तथा उन्हें जान-बूझकर बर्बाद कर दिया जाता है। हमारे पास इस संबंध में पहले से ही कई कानून है। जैसा कि एक विद्वान ने ठीक ही कहा है कि ऐसी विरासत के दुरुपयोग और बर्बादी को रोकने के लिए सिर्फ कानून द्वारा मुहर नहीं लगाई जा सकती अपितु शिक्षा के माध्यम से आम जनता को जागरूक करके ही ऐसा किया जा सकता है। इन संसाधनों के बारे में बच्चों को शिक्षित करने से न केवल जनता को जागरूक करने में मदद मिलती है। बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से माता-पिता और अभिभावक को भी जानकारी प्राप्त होती है। वे अपनी सांस्कृतिक विरासत के बारे में जानना चाहते हैं और इसके रख-रखाव और संरक्षण के प्रति संवेदनशील भी बनते हैं। संग्रहालय, शैक्षिक संस्थाओं, नागरिक समूह और सरकार को इस मुद्दे पर एक साथ काम करने की आवश्यकता है क्योंकि अधूरे प्रयास जागरूकता पैदा करने में सक्षम नहीं हैं।
        ऐसा करने से हमें इतिहास और समाज को समझने में मदद मिलेगी बल्कि उनमें सम्मान एवं आदर का भाव भी पैदा होगा और वह आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारी विरासत को सुरक्षित रखने का विशेष प्रयास करेंगे।


मृत्युंजयम्
सहायक शिक्षक
मध्य विद्यालय नवाबगंज
समेली, कटिहार

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