पण्डित जवाहर लाल नेहरू-हर्ष नारायण दास - Teachers of Bihar

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Sunday 15 November 2020

पण्डित जवाहर लाल नेहरू-हर्ष नारायण दास

पण्डित जवाहरलाल नेहरू

          स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू केवल एक राजनीतिज्ञ ही नहीं थे अपितु वे एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न महान पुरुष थे। वे एक अनूठे चिन्तक भी थे। मानवीय संवेदनाओं से भरपूर यह व्यक्तित्व भारत के लोगों का ही नहीं दुनिया के लोगों का भी अभूतपूर्व प्यार और सम्मान पा सका। भारत ने तो उन्हें राष्ट्र के सर्वोच्च सम्मान "भारत रत्न'' से अलंकृत किया। विश्व ने उन्हें एक महान राजनीतिज्ञ एवं मानवतावादी माना। भारतीय क्षितिज पर एक लम्बे समय तक अपनी आभा फैलाये हुए यह नक्षत्र स्वतन्त्र चिन्तन के क्षेत्र में भी अपनी अमिट  छाप छोड़ गए।
पण्डित नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को इलाहाबाद के आनन्द भवन में हुआ था। इनके पिता प्रसिद्ध वकील पण्डित मोतीलाल नेहरू तथा माताश्री स्वरूप रानी थी। उनकी शिक्षा 16 वर्ष की आयु तक घर में ही हुई। शिक्षकगण घर पर ही आकर विभिन्न विषय पढ़ाते थे। उनका बचपन बहुत लाड़-प्यार में बीता। सन 1905 में इंग्लैंड गये जहाँ पहले हैरो स्कूल में तथा बाद में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की। सन 1912 में बैरिस्टरी पास कर भारत लौटे। 1916 में इनका विवाह कुमारी कमला कौल के साथ दिल्ली में हुआ।19 नवम्बर 1917 को इनके यहाँ एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम प्रियदर्शनी रखा गया।
          1919 ईस्वी में रॉलेट एक्ट के विरोध में जब महात्मा गाँधी ने एक अभियान शुरू किया तब नेहरू जी उनके सम्पर्क में आए। गाँधीजी के व्यक्तित्व एवं विचारधारा का नेहरूजी पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने वकालत छोड़ दी और स्वतन्त्रता संग्राम में उनके साथ हो गए। गाँधीजी के प्रभाव से ही उन्होंने ऐश्वर्यपूर्ण जीवन को त्याग कर खादी कुर्ता एवं गाँधी टोपी धारण करना शुरू किया। जब 1920-22 ई० में गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन का बिगुल बजाया तो इसमें नेहरूजी ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। इस कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पहली बार गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 1924 में वे इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इस पद पर दो वर्षों तक बने रहे। 1926ई० से 1928 ई० तक जवाहरलाल नेहरू भारतीय काँग्रेस समिति के सचिव रहे।
          भारत सरकार अधिनियम 1935 ई० के अध्यारोपित होने के बाद जब ब्रिटिश सरकार ने भारत में चुनाव करवाया तो नेहरूजी के नेतृत्व में काँग्रेस ने लगभग सभी प्रान्तों में अपनी सरकार का गठन किया एवं केंद्रीय असेम्बली में भी सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की। 1939 ई० में भारतीय सैनिकों को द्वितीय विश्वयुद्ध में भेजने के ब्रिटिश सरकार के निर्णय के खिलाफ नेहरू जी ने केंद्रीय असेम्बली भंग कर दी। नेहरू जी के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन 2 सितम्बर 1946 को हुआ।
          15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतन्त्र हुआ तो वे देश के प्रथम प्रधान मंत्री बने। इसके बाद लगातार तीन आम चुनावों 1952 ई. 1957 ई. एवं 1962 ई. में उनके नेतृत्व में काँग्रेस ने बहुमत से सरकार बनाई और तीनों बार वे प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश के विकास के लिए उन्होंने सोवियत रूस की पंचवर्षीय योजना की नीति को अपनाया। उनकी नीतियों के कारण देश में कृषि एवं उद्योग का एक नया युग शुरू हुआ। इसलिए उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता भी कहा जाता है। देश के नौजवानों को कर्मठ बनने की प्रेरणा देने के लिये उन्होंने नारा दिया- "आराम हराम है"। उनकी उपलब्धियों एवं देश के प्रति उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1965 ई० में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत-रत्न" से सम्मानित किया। उन्हें बच्चों से बहुत लगाव था तथा बच्चों में वे चाचा नेहरू के रूप में प्रसिद्ध थे। इसलिए उनका जन्मदिन 14 नवम्बर को "बाल दिवस" के रूप में मनाया जाता है।
          नेहरूजी ने भारत की विदेश नीति के विकास में एक  प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने जोसेफ ब्रोज टीटो और अब्दुल कमाल नासिर के साथ मिलकर एशिया एवं अफ्रीका में उपनिवेशवाद की समाप्ति के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की शुरुआत की। नेहरू जी शान्ति के मसीहा थे। उन्होंने पंचशील सिद्धान्त के साथ चीन की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया लेकिन1962 ई० में चीन ने धोखे से भारत पर आक्रमण कर दिया। नेहरूजी के लिए यह एक बड़ा झटका था और इसी वजह से 27 मई 1964 को दिल का दौरा पड़ने के बाद उनकी मृत्यु हो गई।
          तत्कालीन राष्ट्रपति एवं भारत के महान दार्शनिक डॉ० राधाकृष्णन ने नेहरुजी की मृत्यु पर कहा था- "वे हमारे युग के एक महानतम व्यक्ति थे"। वे एक ऐसे अद्वितीय राजनीतिज्ञ थे जिनकी मानव मुक्ति के प्रति की गई सेवाएं चिरस्मरणीय रहेगी।  नेहरूजी न केवल एक महान राजनेता एवं वक्ता थे बल्कि वे एक महान लेखक भी थे। इसका प्रमाण उनके द्वारा रचित पुस्तकें-डिस्कवरी ऑफ इंडिया एवं गलिम्प्सेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री हैं। इसके अतिरिक्त अपनी पुत्री इन्दिरा प्रियदर्शिनी को नैनी जेल से लिखे गए उनके पत्रों का संकलन "पिता का पात्र पुत्री के नाम'' पुस्तक के रूप में प्रकाशित हैं। इस पुस्तक में जिस तरह उन्होंने सामाजिक विज्ञान, सामान्य विज्ञान एवं दर्शन का वर्णन किया है उससे पता चलता है कि वे उच्च कोटि के विद्वान थे। उन्होंने विश्व को शांतिपूर्ण सहअस्तित्व एवं गुटनिरपेक्षता के महत्वपूर्ण सिद्धान्त दिये। जवाहरलाल नेहरु भारत के सच्चे सपूत थे। उनका जीवन एवं उनकी विचारधाराएँ हम सबके लिये अनुकरणीय हैं। 


हर्ष नारायण दास
मध्य विद्यालय घीवहा (फारबिसगंज)
अररिया
नोट: इसके सभी आँकड़े लेखक के अपने हैं जिसकी सत्यता या असत्यता के लिए टीचर्स ऑफ बिहार जिम्मेेदार नहींं है।

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