बाल अधिकार शुक्ष्म अवलोकन-देव कांत मिश्र दिव्य - Teachers of Bihar

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Sunday 15 November 2020

बाल अधिकार शुक्ष्म अवलोकन-देव कांत मिश्र दिव्य

बाल अधिकार: सूक्ष्म अवलोकन

           बाल अधिकार का अर्थ बच्चों के प्रदत्त अधिकार से है। इस जीवन में अधिकार प्राप्त करना कौन नहीं चाहते। प्रायः सभी चाहते हैं। हमारी दुनियाँ के सारे बच्चों को अधिकार है। यहाँ अधिकार का अर्थ समझ लेना आवश्यक है। अधिकार किसी कार्य को पूरा करने के लिए उपलब्ध कराया गया किसी व्यक्ति की कानून सम्मत दावा या विशेषाधिकार है। नियम कानून द्वारा प्रदान की गई सुविधाएँ अधिकारों की रक्षा करती हैं। एक बात दीगर है कि इन दोनों का अस्तित्व एक दूसरे के बिना संभव नहीं है। जहाँ कानून एक तरफ अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है वहीं दूसरी तरफ इन्हें लागू करने की या इनकी अवहेलना पर नियंत्रण कायम करने की व्यवस्था भी करता है। चलिए अब हम बाल अधिकार पर चर्चा करते हैं।                                 
बाल अधिकार का तात्पर्य:  बच्चे बच्चे ही होते हैं। वे देश के उज्ज्वल भविष्य हैं। आगे चलकर उनके ही कंधों पर सारा दारोमदार होता है। ये किसी भी राष्ट्र की बहुमूल्य सम्पत्ति हैं। इसलिए यदि इन्हें अनुकूल और स्वस्थ माहौल प्रदान किया जाए तो प्रत्येक बच्चा एक उत्पादक वयस्क और राष्ट्र के जिम्मेदार नागरिक के रूप में पुष्पित और पल्लवित हो सकता है। इस तरह समाज के समग्र विकास हेतु बच्चों का हित एवं विकास बहुत आवश्यक है तथा राष्ट्रीय मानव संसाधन को विकसित करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका बच्चों की सम्यक सुरक्षा ही है। अतः बच्चों के मानवाधिकारों को बाल अधिकार (Children's rights) की संज्ञा दी जाती है।
          अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में या उनके नियम की दृष्टि से बच्चा का अर्थ वह व्यक्ति जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम है। यह विश्व स्तर पर बालक की परिभाषा है। यह बाल अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र संघ संयोजन (UNCRC) में किया गया है तथा इसे दुनियाँ के अधिकांश देशों द्वारा मान्यता भी प्रदान की गई है। विश्व स्तर पर बाल अधिकार के संबंध में सबसे पहला अधिवेशन सन 1924 ई. में जेनेवा शहर में हुआ था। पुनः  संयुक्त राष्ट्र संघ की असेम्बली में 1948 ई. में बाल अधिकारों को मान्यता देते हुए इसे मानवाधिकारों की घोषणा में शामिल किया गया। भारतीय संविधान के भी 42वें संविधान संशोधन में बाल अधिकारों को सम्मिलित किया गया। UNO ने अपनी महासभा की 20 नवम्बर 1959 ई. की बैठक में बाल अधिकारों का एक घोषणा पत्र जारी किया। परन्तु लम्बे समय बाद 20 नवम्बर 1989 ई. को संघ में शामिल सभी देशों ने इसपर अपनी एक स्वर से सहमति जताई। यह घोषणा पत्र तीन भागों में बाँटा गया है। ये तीनों भाग 54 अनुच्छेदों में विभक्त हैं। इनमें बच्चों की सुरक्षा तथा उनके सतत विकास के लिए सहमति प्रकट की गई है। इस महत्त्वपूर्ण दस्तावेज में संसार के सभी बच्चों के लिए कुछ आधारभूत अधिकारों का उल्लेख किया गया है। यही घोषणा का मुख्य उद्देश्य भी है। बाल अधिकार के अंतर्गत चार मुख्य अधिकार आते हैं जो इस प्रकार हैं:
जीवन जीने का अधिकार, संरक्षण का अधिकार, विकास का अधिकार, सहभागिता या भागीदारी का अधिकार।
          सचमुच में, जिस बच्चे का जन्म हुआ है उसे जीवित रहने का अधिकार है। जन्मोपरांत पंजीकरण तथा राष्ट्रीयता प्राप्त करने का अधिकार है। इसके साथ-साथ उसे पूरी तरह से संरक्षण का अधिकार प्राप्त है। सभी प्रकार के शोषण से बच्चों को मुक्ति मिलनी चाहिए। उसे अपने जीवन में अच्छे स्वास्थ्य पाने का अधिकार है। विद्यालय जाने का एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है। उसे सामाजिक बनने का अधिकार प्राप्त है। "शिक्षा को भविष्य के लिए निवेश माना जाता है"। इस कथन को दृष्टिगत रखते हुए 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को  विद्यालय में बनाए रखने एवं नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा देने की बात कही गई है। बच्चों की भागीदारी को भी स्वीकार करने की बात कही गई है। तात्पर्य है कि न सिर्फ हम बच्चों को शिक्षा ही प्रदान करें अपितु उन्हें अपनी भागीदारी निर्वहन करने का सुअवसर प्रदान करें जिससे वे अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना ठीक तरह से कर सकें। वह अपनी सुरक्षा के लिए बाल सुरक्षा हेल्प लाइन 1098 का प्रयोग कर सकता है। जुर्म के मामले में सजा दिलवा सकता है। UNO की घोषणा पत्र के अनुसार-
* प्रत्येक बच्चों को अपनी राष्ट्रीयता, नाम एवं पारिवारिक अधिकार है।
* बच्चों के माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध अलग न 
 करने का अधिकार है।
* माता- पिता अथवा परिवार से पुनः एकीकरण और संबंध कायम रखने का अधिकार है।
* बच्चों के अपहरण, क्रय-विक्रय एवं व्यापार को रोकने के लिए राष्ट्रीय कानून बनाने संबंधी अधिकार।
* बच्चों को नशीले द्रव्यों का प्रयोग करने से रोकने का अधिकार।
* जहाँ गोद लेने की मान्यता है वहाँ बच्चों के हित को ध्यान में रखा गया है।
* बच्चों को आर्थिक शोषण, खतरनाक कार्य करने तथा शारीरिक, मानसिक, नैतिक अथवा आत्मिक दृष्टि होने से बचाने का अधिकार।   
* उनके लैंगिक शोषण से बचाने की बात का उल्लेख किया गया है।
* सशस्त्र संघर्ष या युद्ध काल में 15 वर्ष के कम आयु के बच्चों के भाग लेने तथा सेवा में भर्ती होने पर निषेध।
* शारणार्थी बच्चों को संरक्षण प्रदान करना।
          इसके साथ-साथ प्रत्येक बच्चों को अपने हकों और अपनी भलाई के लिए कानूनी तौर पर हिफाज़त का भी अधिकार है। मानसिक तथा शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों को विशेष उपचार, देख-रेख तथा शिक्षा का अधिकार है। बच्चों की उपेक्षा, क्रूरता तथा शोषण के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(3) के अनुसार राज्य को बच्चों एवं महिलाओं के सशक्तिकरण का अधिकार देता है। साथ ही संविधान की धारा 24 के अनुसार-- 14 वर्ष से कम उम्र के कोई भी बच्चे किसी कारखाने या खदान में कार्य करने के लिए नियुक्त नहीं किए जाएँगे और न ही किसी खतरनाक उद्योग में भी। 18 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं की शादी करवाए जाने पर स्थानीय प्रशासन  या सरकार को उन्हें सूचना देने का अधिकार प्राप्त है। ऐसा करके वे बच्चियों की शादी रुकवा भी सकती हैं। 21 वर्ष के कम उम्र के बच्चों का विवाह भी कानूनी जुर्म है।
          इस प्रकार हमारी दुनियाँ के सभी बच्चों के नियमानुसार अपने अधिकार हैं। वे किसी भी राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य हैं, कर्णधार हैं, बहुमूल्य धरोहर हैं। अतः इनके हित, विकास तथा सतत सुरक्षा पर विशेष ध्यान दी जानी चाहिए। बाल अधिकारों से जुड़े दुनियाँ के सारे संगठनों, बुद्धिजीवियों, रहनुमाओं एवं सरकारों को बच्चों के हित एवं सुरक्षा हेतु दिल से समर्थन करना चाहिए और इस हेतु आवश्यक कदम भी समय-समय पर उठाना चाहिए क्योंकि बच्चे सभी के हैं। इनकी सुरक्षा में ही समाज, राष्ट्र एवं संसार की सुरक्षा है। अतः इस बहुमूल्य धरोहर पर सही दृष्टि डाली ही जानी चाहिए। मेरी मानसिकता कहती है--
     बच्चों को उसका अधिकार बताएँ।
     सुरक्षा विकास सदा उन्हें दिलाएँ।।
     इनकी शिक्षा से ही यह देश पुष्पित।
     इनकी सुरक्षा से ही जग पल्लवित।।
   
 
देव कांत मिश्र 'दिव्य'  
मध्य विद्यालय धवलपुरा
सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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