Monday, 2 November 2020
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नई शिक्षा नीति : सकारात्मक पक्ष
नई शिक्षा नीति: सकारात्मक पक्ष
कोठारी कमीशन (1964-66) के सुझाव के अनुरूप भारत सरकार ने पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 की घोषणा की जिसमें व्यापक रूप से शिक्षा के प्रत्येक पहलुओं पर प्रकाश डाला गया जिसकी मूलभूत बातों की चर्चा आज तक की नीतियों में भी होती रही है फिर 1992 में दुसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) को संशोधित रूप दिया गया और कार्यान्वयन योजना बनाया गयी। इस प्रकार दूसरी शिक्षा नीति (1986) के 34 वर्षों बाद तीसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बनी। इसका मूल उद्देश्य भारत केंद्रित शिक्षा है जिसमें 27 मुद्दे हैं। 10 स्कूली शिक्षा संबंधित और 10 उच्च शिक्षा व अन्य शिक्षा से जुड़े हैं। कोठारी कमीशन से अब तक शिक्षा नीतियाँ पूरी तरह से अमल में नहीं आई क्योंकि नीतियों को लागू करने के लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं होती। यही कारण है कि कुछ बातों को अमल में लाया जाता है और कुछ बातों को अमल में नहीं लाया जाता। अब तक तो यही होता आ रहा है। नीतियों को थोड़ा बहुत परिमार्जन कर बात आगे बढ़ती है फिर आई-गई हो जाती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 'समान स्कूल प्रणाली (Common School System) है। चुँकि लंबे अंतराल के बाद नई शिक्षा नीति आई है तो कुछ उम्मीद बंधती है। आशा है सकारात्मक कदम उठाए जाएँगे। डॉ. के. कस्तूरीरंगन कमेटी ने 21 मई 2019 को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 जुलाई 2020 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को मंजूरी दे दी है जिससे स्कूल और उच्च शिक्षा, दोनों क्षेत्रों के बड़े पैमाने पर रूपांतरकारी सुधार के रास्ते खुल गए हैं। सबके लिए आसान पहुँँच, समता, गुणवत्ता, वहनीयता और जवाबदेही के आधारभूत स्तंभों पर निर्मित यह नई शिक्षा नीति सतत् विकास के लिए एजेंडा 2030 के अनुकूल है और इसका उद्देश्य 21वीं सदी की जरूरतों के अनुकूल स्कूल और कॉलेज की शिक्षा को अधिक समग्र, लचीला बनाते हुए भारत को एक ज्ञान आधारित जीवन, समाज और ज्ञान की वैश्विक महाशक्ति में बदलना और प्रत्येक छात्र में निहित अद्वितीय क्षमताओं को सामने लाना है।
नई शिक्षा नीति 2020 में खास यह है कि करिकुलम फ्रेमवर्क (5+3+3+4) दिया गया है। (क) 5 वर्ष का आधारभूत चरण ( 3 वर्ष की प्री प्राइमरी और कक्षा 1 और 2), (ख) तैयारी के 3 वर्ष (कक्षा 3 से 5),(ग) मध्य चरण के 3 वर्ष (कक्षा 6 से 8 ) और माध्यमिक चरण के 4 वर्ष (कक्षा 9 से 12)। इस डिजाइन में आधारभूत चरण में बहुत बड़ी खासियत यह है कि इस अवस्था में बच्चे जो भी सीखते हैं, वह टिकाऊ होता है। जीन पियाजे ने अपने ज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development) के सिद्धांत में इसे पूर्व संक्रियात्मक (Pre-Operational Stage) कहा है। इस अवस्था में बच्चों में भाषा का विकास, अनुकरण की प्रवृत्ति, बनावटी खेल, कल्पनाशीलता, चित्रांकन, घटनाओं के बारे में क्यों? कैसे? के प्रश्नों को जानने की रुचि होती है। इस अवस्था के उत्तरार्ध में बच्चों में नई सूचनाओं एवं अनुभव के अनुकूलन की योग्यता होती है। इसे उदाहरण के तौर पर इस प्रकार समझा जा सकता है कि 2 वर्ष से 7 वर्ष-काल के बच्चों के कार्य एवं ज्ञान की ग्राह्यता वैसे ही होते हैं जैसे एक गिलास पानी में नमक डालने पर पानी नहीं गिरता; क्योंकि उसमें वायु-कोष्ठ होते हैं, जहां नमक अपनी जगह बना लेते हैं। इस काल में बच्चे का दिमाग भी ऐसा ही होता है लेकिन इसकी भी सीमा होती है। अमेरिकन मनोवैज्ञानिक जेरोम ब्रूनर के ज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत की प्रतिबिंबात्मक अवस्था (Iconic Stage) भी इसी बात की पुष्टि करता है। यही कारण है कि नीति में भाषा और गणना की बुनियादी योग्यता पर जोर इस काल में दिया गया है। ऐसे भी भाषा और गणित शिक्षा की नींव है। भाषा संप्रेषण का माध्यम है तो गणित जीवन में जूझने की कला प्रदान करता है एवं तर्कशक्ति का विकास करता है।
जहाँ तक व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा की बात है तो पाठ्येतर गतिविधियों, व्यवसायिक शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा के बीच कोई खास अंतर नहीं है। अतः कक्षा-6 से ही व्यवसायिक शिक्षा शुरू की गई है जो डिजाइन की अगली कड़ी है। जीन पियाजे के अनुसार 7 से 11 वर्ष की अवस्था में बच्चे के विचार प्रौढों के विचार से अधिक निकट होते हैं। बच्चा अधिक तार्किक, नम्य और संगठित होता है। इसलिए करिकुलम का डिजाइन मनोविज्ञान पर खरा उतरता है। इस अवस्था में विद्यार्थियों को 'लोकल के लिए वोकल' (Vocal for local) की शिक्षा देकर महात्मा गाँधी की बुनियादी शिक्षा को साकार किया जा सकता है। पिछले 45 साल में रिकॉर्डेड बेरोजगारी को भी दूर की जा सकती है।
नई शिक्षा नीति 2020 में कम से कम पाँचवी कक्षा तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई की अनिवार्यता बताई गई है। इसका मनोवैज्ञानिक कारण यह है कि मूल अवधारणाओं को बच्चे मातृभाषा में ही समझते हैं क्योंकि उसे मातृभाषा से आत्मीय लगाव होता है। माँ की गोद तथा परिवार की पाठशाला में उसकी सोच या अवधारणा मातृभाषा में ही विकसित होती है। कोई भी व्यक्ति अपनी वेदना मूल भाषा में ही व्यक्त करता है। मातृभाषा दिल की आवाज होती है। जाहिर सी बात है कि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में देना तर्कसंगत है। त्रिभाषा सूत्र इस अवधारणा को शक्ति प्रदान करता है। शिक्षा नीति में मूल्यांकन प्रक्रिया में सुधार के संकेत दिए गए हैं। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में भी संशोधन (Modification), परिवर्धनAddition) तथा विलोपन (Deletion) की संभावना है। यह तो समय की मांग है। तनाव मुक्त मूल्यांकन में लचीलापन होगा क्योंकि मौजूदा नीति में कक्षा 3, 5 तथा 8 में राज्य सेंसस परीक्षाओं का प्रस्ताव है। इस प्रस्ताव से मूल्यांकन का मान बढ़ेगा।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है जो करीब वर्ग 1 से वर्ग 8 तक को कवर करता है। यह बड़ी बात है कि नई शिक्षा नीति के तहत् आयु-वर्ग के दायरे को बढ़ाकर बचपन की प्रारंभिक स्कूली शिक्षा और माध्यमिक स्कूली शिक्षा शामिल किया जा सकेगा और अब 3 से 18 वर्ष तक के बच्चे शामिल हो सकेंगे। यह सिफारिश अनिल सदगोपाल, कृष्ण कुमार तथा योगेंद्र यादव सरीखे शिक्षाविदों की शिकायत को दूर कर देती है। आंध्रप्रदेश बनाम उन्नीकृष्णन वाद की मांग को भी कुछ हद तक पूरी करती है। अब शिक्षा के अधिकार को भी सूचना के अधिकार की तरह ही प्रभावी बनाया जा सकेगा।
नीति में अंडर ग्रैजुएट प्रोग्राम को बहुअनुशासनिक (Interdisciplinary), जिसमें सिफारिश की गई है कि विद्यार्थियों को स्पेशलाइजेशन के लिए एक क्षेत्र को मेजर (Major)और वैकल्पिक क्षेत्र को माइनर (Minor) के तौर पर चुनना होगा। नीति में लचीले पाठ्यक्रम, विषयों में रचनात्मक संयोजन, व्यावसायिक शिक्षा एवं उपयुक्त प्रमाणन के साथ मल्टीपल एंट्री एवं एग्जिट बिंदुओं के साथ व्यापक, बहुविषयक, समग्र अवर स्नातक शिक्षा की परिकल्पना की गई है। यूजी शिक्षा इस अवधि के भीतर विविध एग्जिट विकल्पों तथा उपयुक्त प्रमाणन के साथ तीन या चार वर्ष की हो सकती है। उदाहरण के लिए 1 वर्ष के बाद सर्टिफिकेट, 2 वर्षों के बाद एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक की डिग्री तथा 4 वर्षों के बाद शोध के साथ स्नातक। अब 1 वर्ष में स्नातकोत्तर तथा उसके बाद विद्यार्थी सीधे पीएचडी कर सकते हैं। एम. फिल करने की अनिवार्यता को हटा दी गई है। विषयों में लचीलापन आज समय की मांग है। पहले की व्यवस्था में विषय बदलने के चलते विद्यार्थियों की उम्र डिग्री लेने में ही गुजर जाती थी। अब लचीलापन होने से कोई भी कभी भी अपने विषयों को बदल सकता है और अपनी उम्र को भी बचा सकता है। शिक्षा को संकाय में न बांटकर शिक्षा की समग्रता पर विशेष बल दिया गया है। शिक्षण प्रशिक्षण के 4 वर्ष के सिलेबस को विशेष महत्व दिया जाएगा। अब शिक्षक वही बन पाएगा जो माध्यमिक शिक्षा के बाद शिक्षक बनने की प्रबल इच्छा रखता हो क्योंकि शिक्षकों में पेशेवराना अभिवृत्ति एवं कौशल ( Professional attitudes and skills)होना चाहिए।
शिक्षा नीति में मंत्रालय का नाम शिक्षा मंत्रालय रखने की बात की गई है जो तर्कसंगत लगता है क्योंकि मानव संसाधन विकास का अर्थ व्यापक है। मानव संसाधन के दायरे में प्रत्येक कामगार, किसान, मजदूर यहाँ तक कि नौकरशाह से लेकर डिप्लोमेट तक भी आ जाएँगे क्योंकि मानव भी तो एक संसाधन है। मानव के ज्ञान, कौशल एवं व्यवहार उत्पादन के कारण बनते हैं। अतः मानव संसाधन विकास को शिक्षा मंत्रालय में डिब्बाबंद करना उचित नहीं है।
नई शिक्षा नीति में साक्षरता व विज्ञान पर जोर दिया गया है जिसमें गणित, विज्ञान, कला, खेल सभी समान रूप से सिखाया जाएगा। यह समग्र (Holistic approach) को समेटे हुए होगा। पूर्व प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा को एक व्यवस्था मानकर इस पर विचार होगा। 2040 तक सभी उच्च शिक्षा संस्थानों को बहुसंख्यक संस्थान बनाने की बात कही गई है जिसमें 3000 से अधिक छात्र होंगे। विकास सार्वजनिक व निजी दोनों में होगा। इस शिक्षा नीति से एक समग्र और बहुआयामी शिक्षा मानव के बौद्धिक, सौंदर्य, सामाजिक, शारीरिक, भावनात्मक और नैतिक सभी क्षमताओं को एकीकृत तरीके से विकसित करने का लक्ष्य है। बेहतर प्रदर्शन करने वाले भारतीय विश्वविद्यालयों को अन्य देशों में परिसर स्थापित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा। इससे देश का समग्र विकास होगा।
भारतीय कला और संस्कृति का प्रचार न केवल देश के लिए बल्कि व्यक्ति के लिए भी महत्वपूर्ण है। सांस्कृतिक जागरूकता और अभिव्यक्ति बच्चों को विकसित करने के लिए अहम माने जाने वाली प्रमुख दक्षताओं में से एक है। बच्चों में भाषा, कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्कूल के सभी स्तरों पर संगीत, कला और शिल्प पर अधिक जोर दिया जाएगा।बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए भारतीय भाषाओं में मजबूत विभाग और कार्यक्रम, तुलनात्मक साहित्य, रचनात्मक लेखन, कला, संगीत दर्शन आदि देश भर में लांच और विकसित किए जाएँगे। उच्च गुणवत्ता वाले कार्यक्रम, अनुवाद और व्याख्या, कला और संग्रहालय प्रशासन, पुरातत्व संरक्षण, ग्राफिक डिजाइन और उच्च शिक्षा प्रणाली से जुड़े विषयों में डिग्री भी बनाई जाएगी।नई शिक्षा नीति से छात्र योग्य एवं संपूर्ण नागरिक बनेंगे और हर तरह के ज्ञान से लैस हो सकेंगे।
बस, सबसे अहम बात यही है कि नई शिक्षा नीति की अच्छाइयों को जल्द से जल्द मक्खन की तरह निकाल कर कार्यान्वयन योजना (Plan of action) बनाना होगा और उसे लागू करना होगा नहीं तो लॉर्ड मैकाले की नीतियों की तरह शिक्षा शास्त्रियों का इल्ज़ाम लग जाएगा कि जिस तरह लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेज़ीदां भारतीयों को कलर्क बनाया, ताकि अंग्रेजों का हुक्म बजा सकें। ठीक उसी प्रकार युवाओं के लिए नई शिक्षा नीति में व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा का प्रावधान किया गया है ताकि निजी कंपनियों के लिए पेशेवर, कुशल एवं समर्पित कामगार एवं मजदूरों की आवश्यकताओं की पूर्ति सस्ते दर पर की जा सके। विदित हो कि सरकारी एवं राष्ट्रीय संपत्तियों को धड़ल्ले से निजीकरण किया जा रहा है। सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद पदों का नहीं भरा जाना, पदों का सृजन नहीं किया जाना तथा 50 वर्ष वाले सर्विसमैन को जबरन रिटायर करने की योजना इस संशय को पुष्ट करता है।
जाहिद हुसैन
उत्क्रमित म. वि. मलह बिगहा
चंडी नालंदा
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Nice post
ReplyDeleteराष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की विशेषताएँ
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ReplyDeleteराष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986