बाल अधिकार सुरक्षित रखने में एक शिक्षक की भूमिका-बीनू मिश्रा - Teachers of Bihar

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Wednesday 18 November 2020

बाल अधिकार सुरक्षित रखने में एक शिक्षक की भूमिका-बीनू मिश्रा

बाल अधिकार को सुरक्षित रखने में एक शिक्षक की भूमिका

          बाल अधिकार के संदर्भ में यह जान लेना जरूरी है, किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए उपलब्ध कराए गए कानून के द्वारा दिया गया विशेषाधिकार ही बाल अधिकार कहलाता है। संविधान के द्वारा बनाया गया नियम, कानून द्वारा प्रदत्त की गई सुविधाएँ अधिकारों की रक्षा करती है। इसी के संदर्भ में आज हम बाल अधिकार की चर्चा करते हैं।
          बच्चे ही हमारे देश के कर्णधार हैं और आगे चलकर इन्हें ही देश के नाम को गौरवान्वित करना है।वैज्ञानिक, डॉक्टर और एक अच्छा नागरिक बनकर। बच्चे हमारे देश या किसी भी मुल्क के बच्चे वहाँ के बहुमूल्य संपत्ति होते हैं। इस तरह किसी भी राष्ट्र के मानव संसाधन के रूप में बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा तथा बच्चों का सर्वांगीण विकास बहुत जरूरी है। मार्च 2007 में बच्चे के अधिकारों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग (NCPCR) की स्थापना की गई। यह आयोग संसद द्वारा पारित अधिनियम (2005) protection of child rights adhiniyam) के अंतर्गत स्थापित किया गया। अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार एक बच्चे से अभिप्राय वह मानव प्राणी जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है। बच्चे की परिभाषा सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य है और यूएनसीआरसी द्वारा दी गई है और यह भारत में भी स्वीकार्य है। यह सही है कि सभी बच्चों को उनके सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों या भौगोलिक स्थिति के कारण सुरक्षा की आवश्यकता होती है परंतु कुछ बच्चे दूसरों की अपेक्षा अधिक असुरक्षित अनुभव करते हैं तथा उन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता पड़ती है। वे बच्चे हैं बेघर बच्चे, प्रवासी गलियों में घूमने वाले, अनाथ या फिर परित्यक्त बच्चे, श्रमजीवी बच्चे, भिखारी के बच्चे, जेल में रहने वाले बच्चे या एड्स से ग्रसित बच्चे, नि:शक्त बच्चे तथा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के बच्चे।
          भारत का संविधान सभी बच्चों को कुछ अधिकारों की गारंटी देता है। यह अधिकार है-
1) 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार।
2) 14 वर्ष की आयु तक खतरनाक नियोजन से सुरक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 24)
3) स्वस्थ तरीके से बढ़ने के लिए समान  अवसर तथा सुविधाओं का अधिकार जिसमें स्वतंत्रता का सम्मान परिस्थितियाँ हो और बचपन के निश्चित सुरक्षा हो ताकि शोषण न किया जा सके। (अनुच्छेद 39)
इसके अतिरिक्त इनके अधिकार भारत के किसी भी नागरिक के अधिकारों के समान है। जैसे-
1) समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14)
2) अनुचित भेदभाव या अनुचित पक्षपात के विरुद्ध अधिकार।
3) वैयक्तिक स्वतंत्रता तथा उचित कानूनी प्रक्रिया का अधिकार। (अनुच्छेद 21)
4) समाज के कमजोर वर्गों को सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से बचाए रखने का अधिकार।(अनुच्छेद 46)
          यह सुनिश्चित करना एक विद्यालय अध्यापक का दायित्व है कि विद्यालय के बच्चों के अधिकारों  की सही तरीके से सुरक्षा हो और उनके साथ विद्यालय परिसर में कोई अन्याय न होने पाए। विद्यालय तंत्र में एक अध्यापक एक महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है और उनके सर्वांगीण विकास में सक्रिय भूमिका निभाता है। बच्चों को उनके अधिकार दिए जाएँ तो उनका समुचित विकास होगा। विद्यालय में विभिन्न प्रकार से बाल अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सकता है। हम अध्यापकों को चाहिए कि बच्चों को अनुशासित करने के लिए शारीरिक दंड न दें बल्कि बच्चों में अनुशासन का भाव जागृत कराएँ। हमें यह दिखाना चाहिए कि हम बच्चों का ध्यान रखते हैं क्योंकि विद्यालय में संबंधों का विकास प्रत्येक बच्चे के लिए महत्वपूर्ण होता है।
          इस प्रकार से विद्यालय में एक अध्यापक बच्चे के अधिकारों की सुरक्षा करने में विशेष योगदान दे सकता है। यह न केवल विद्यालय को आनंददायक बनाता है बल्कि बच्चे के सर्वांगीण विकास में भी योगदान देता है।इस प्रकार बच्चे के अपने अधिकार है। वह हमारे बहुमूल्य धरोहर हैं। इन्हें सुरक्षित करके ही हम और हमारा राष्ट्र सुरक्षित रह सकता है। आइए सब मिलकर इन्हें पल्लवित और पुष्पित करें।

बीनू मिश्रा
नवगछिया, भागलपुर
नोट: उपरोक्त विचार लेखिका के स्वयं के हैं।

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