Tuesday, 12 January 2021
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युवाओं का प्रेरणास्रोत है विवेकानंद का दर्शन-चन्द्रशेखर प्रसाद साहु
युवाओं का प्रेरणास्रोत है विवेकानंद का दर्शन
प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को पूरे भारत में स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। सन् 1984 में भारत सरकार ने घोषणा की कि स्वामी विवेकानंद के जन्म दिन 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में पूरे देश में मनाया जाए। स्वामी विवेकानंद ने अपने व्याख्यान एवं वैचारिक आलेख के माध्यम से पूरे विश्व में भारतीय वेदांत दर्शन एवं सनातन धर्म को श्रेष्ठ बताने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति की गौरव-गाथा सुनाने व कहने का महान कार्य किया। उन्होंने विश्व के अनेक देशों को भारत के आध्यात्मिक दृष्टिकोण, दर्शन, ईश्वर की उपासना पद्धति, ध्यान एवं योग साधना आदि से परिचित कराया और सिद्ध किया कि भारतीय दर्शन व्यापक, समृद्ध, लोककल्याणकारी, मानवतावादी है एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी प्रासंगिक है। स्वामी विवेकानंद का जीवन दर्शन एवं वैचारिक दर्शन युवाओं के लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत है। वह युवाओं में मौजूद ऊर्जा एवं उत्साह को एक चमत्कारी शक्ति मानते थे। वह युवाओं को अपनी ऊर्जा को समाज कल्याण के लिए सही दिशा में लगाने को आवश्यक मानते थे। वह युवा शक्ति को समाज कल्याण के साथ-साथ राष्ट्रीय हित की ओर प्रेरित करते थे। वह युवा शक्ति को राष्ट्र की वास्तविक शक्ति मानते थे। वह अपने भाषणों, विचारों एवं आलेखों में युवाओं को राष्ट्र एवं समाज की सेवा करने के लिए प्रेरित करते थे। वह युवाओं में उत्साह भरते थे। वह कहते थे- "उठो मेरे शेरों, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, न ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है, तुम तत्व के सेवक नहीं हो।"
स्वामी विवेकानंद युवाओं को एकाग्रता एवं साहस के साथ अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते थे। वह कहते थे- 'एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो। उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जिओ। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उच्च विचार में डूब जाने दो और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है।'
वह जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए स्पष्ट लक्ष्य, एकाग्रता, साहस, धैर्य, निरंतर परिश्रम (उद्यमशीलता) और कार्य के प्रति समर्पण को आवश्यक मानते थे। स्वामी विवेकानंद युवाओं के सर्वांगीण विकास को आवश्यक मानते थे। वह उनमें आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ बौद्धिक विकास एवं शारीरिक विकास को अनिवार्य मानते थे। वह उनमें मेधा, तर्क, ज्ञान, चिंतन तो पैदा करना ही चाहते थे साथ ही वह उनके लिए स्वस्थ एवं मजबूत शरीर का होना भी आवश्यक मानते थे। वह कहते थे कि युवाओं की स्नायु फौलादी होना चाहिए क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। उन्होंने एक बार कहा था - 'युवकों को गीता पढ़ने के बजाय फुटबॉल खेलना चाहिए।'
स्वामी विवेकानंद को राष्ट्र के साथ युवाओं से भी प्रेम था। वह भारत के गौरव को पुनः स्थापित करने में युवाओं की ही अधिक भूमिका मानते थे। उन्होंने युवकों में उत्साह बढ़ाने के लिए, उन्हें सन्मार्ग पर प्रेरित करने के लिए बहुत कुछ कहा और लिखा। वह राष्ट्र की समृद्धि के लिए राष्ट्र की शाश्वत परंपराएं, आदर्शों एवं मूल्यों को आवश्यक मानते थे। परंतु स्वामी विवेकानंद के दर्शन एवं सिद्धांतों का भारतीय युवाओं पर कोई खास असर नहीं देखने को मिल रहा है। भारतीय युवा फैशन, ग्लैमर एवं आधुनिकता की चकाचौंध में फंसकर अपनी मौलिक शक्ति को खोता जा रहा है। आवश्यकता है कि विवेकानंद के दर्शन एवं विचारों को आत्मसात किया जाए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान भारत युवा-शक्ति की ओर ही आस लगाया है। भारत को विकसित एवं समृद्ध करने में युवाओं की ही सर्वोपरि भूमिका है। युवा पीढ़ी को अपनी सोच को गौरवशाली अतीत एवं शाश्वत परंपराओं से जोड़े रखना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद कहते थे - "भौतिक उन्नति तथा प्रगति अवश्य ही वांछनीय है परंतु देश जिस अतीत से भविष्य की ओर अग्रसर हो रहा है, उस अतीत को अस्वीकार करना निश्चय ही निर्बुद्धिता का द्योतक है। अतीत की नींव पर ही राष्ट्र का निर्माण करना होगा। युवा वर्ग में यदि अपने विगत इतिहास के प्रति कोई चेतना न हो, तो उनकी दिशा प्रवाह में पड़े एक लंगर हीन नाव के समान होगी। ऐसी नाव कभी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंचती।" स्वामी विवेकानंद बारंबार कहते थे- "अतीत की नींव के बिना सुदृढ़ भविष्य का निर्माण नहीं हो सकता। अतीत से जीवन शक्ति ग्रहण करके ही भविष्य जीवित रहता है। जिस आदर्श को लेकर राष्ट्र अब तक बचा हुआ है, उसी आदर्श की ओर वर्तमान युवा पीढ़ी को परिचालित करना होगा ताकि वह देश के महान अतीत के साथ सामंजस्य बनाकर लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सके।
भारत की लगभग आधी आबादी युवाओं की है। देश एवं समाज को उन्नत बनाने में युवाओं को शामिल होना अति महत्वपूर्ण है। युवाओं को देश के विकास के लिए अपना सक्रिय योगदान प्रदान करना चाहिए। विवेकानंद के विचारों एवं दर्शन को अपनाकर युवा पीढ़ी अपने आध्यात्मिक बौद्धिक एवं शारीरिक विकास कर सकती है।
चंद्रशेखर प्रसाद साहु
कुटुंबा, औरंगाबाद (बिहार)
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