स्वामी विवेकानंद हमारे युगद्रष्टा-देव कांत मिश्र 'दिव्य' - Teachers of Bihar

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Wednesday 13 January 2021

स्वामी विवेकानंद हमारे युगद्रष्टा-देव कांत मिश्र 'दिव्य'

स्वामी विवेकानंद हमारे युगद्रष्टा

          स्वामी विवेकानंद हमारे देश के महान विचारक, चिंतक, दार्शनिक व युगद्रष्टा थे। इसके साथ-साथ वे अजेय प्रखर दिव्य वक्ता व हमारी आर्य भूमि के सच्चे आराधक थे। वे दूसरों की बातों को शीघ्र ही समझ व परख लेते थे। इनकी ओजस्वी वाणी से व्योम गूँज उठता था। वे एक ऐसे सन्यासी थे जिनके उर में मानवजाति और सभी प्राणियों के प्रति असीम दया, प्रेम, सहानुभूति व करुणा थी।
          इनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था। इनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे युवा पीढ़ी को हमेशा प्रेरित करते रहते थे। इनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था। प्रारंभ से ही इनके परिवार का वातावरण धार्मिक व आध्यात्मिक था जिसके फलस्वरूप नरेंद्र भी बाल्यकाल से ही धार्मिक स्वभाव के हो गए थे। यही कारण है कि उनमें धीरे-धीरे अध्यात्म, योग एवं राष्ट्र को एक नई दिशा दिखाने की ललक बढ़ती गई। ऐसी किंवदंती है कि 5 वर्ष की अवस्था से ही इनमें महापुरुषों के सुघड़ व नेक विचार घर कर गये थे। इनकी बुद्धि इतनी प्रखर व कुशाग्र थी कि वे आध्यात्मिक विषयों पर तरह-तरह की विवेचना करते थे। इनकी गहरी अभिरुचि अपने पास पड़ोस में घटित होने वाली घटनाओं के बारे में भी रहती थी। वे इस हेतू गहराई से चिंतन कर निष्कर्ष निकालते थे। शिक्षा के प्रति भी इनकी सोच गहरी थी। वे समाज में व्याप्त गरीबी, द्वेष, निरक्षरता तथा अंधविश्वास को देखकर दुखी व द्रवित हो जाते थे। यही तो उनके जीवन की सच्ची पहचान थी।
          वे  अक्सर कहा करते थे- Education is the solution to all evil. अर्थात्  शिक्षा ही सभी बुराईयों का हल है। उनके विचार के अनुसार-  क्या हमारे पास जो शिक्षा अभी है वह वाकई उचित है? क्या यह हमें अन्वेषक बनने के लिए प्रोत्साहित करती है या केवल अनुकरण करना सिखाती है? बड़ी संख्या में छात्र विद्यालय, कक्षा या शिक्षा से जुड़ा हुआ महसूस नहीं करते। जो छात्र पढ़ने-लिखने में अच्छे हैं सिर्फ उन्हें ही प्रोत्साहित किया जाता है और वही प्रशंसा का पात्र बनता है। आज हमें ऐसी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है जो छात्रों में मौलिक विचार पैदा करे, उन्हें समाज से हमेशा जोड़े रखे, उनमें विश्वास की एक नई किरण पैदा करे। उनके अनुसार- हर छात्र शिक्षा से लाभान्वित हो, यह न सिर्फ रोजगारपरक हो, अपितु जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए  मार्गदर्शन करें और किसी भी स्थिति में छात्रों को अपने पैरों पर खड़ा होने लायक बनाये। वाकई छात्रों में आत्मविश्वास का भाव भरने वाली ऐसी शिक्षा जो आगे चलकर उनमें किसी से कमतर होने का एहसास पैदा न करे। यानि छात्रों में आत्मविश्वास की डोर सदा मजबूत करे। कहने का तात्पर्य है कि कोई भी छात्र चाहे वह किसी भी माध्यम या जिस किसी भी शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हों, उनका ज्ञान बाहर की ओर परिलक्षित होना चाहिए। उनमें सामाजिक सद्भाव एवं नेतृत्व करने की क्षमता का भी विकास होना चाहिए। एक शिक्षक छात्रों की अभिव्यक्ति को निरंतर प्रेरित करते हैं। स्वामी विवेकानंद के शब्दों में उन्हें यह बताया जाना चाहिए कि कैसे सोचना है, न कि क्या सोचना है ? How to think, not what to think? सच में, वे दूरदर्शी व अग्रसोची थे और इस तरह की सोच को जब छात्र शिक्षकों के द्वारा सम्यक विधि या चिंतन से अपनाएँगे तो आने वाला जीवन उनका सुखद तथा मधुरिम बनेगा। इसलिए उन्होंने जोर देकर कहा था- "Education is an expression of the fullness already present in the student." अर्थात् शिक्षा छात्र में पहले से मौजूद पूर्णता की अभिव्यक्ति है। एक बात दीगर है कि स्वामी विवेकानंद  प्रतिभाशाली व्यक्तित्व तथा नेक विचारों के धनी थे। वे व्यक्ति में सही सोच को विकसित करने पर विशेष बल देते थे। वे हमेशा जनमानस में कहा करते थे कि जैसा हम भीतर से सोचते हैं, वैसा ही हमारा वाह्य संसार का निर्माण होता है। हमारे विचार ही चीजों को या तो सुन्दर बना सकते हैं या उसे कुरूप कर सकते हैं। कहने का तात्पर्य है कि आपके अन्दर की सोच ही आपके चरित्र निर्माण का आधार है। अगर आप सज्जन, अच्छे संत, अच्छे विद्यार्थी, अच्छे नागरिक बनने की सोच रखेंगे तो अवश्य ही बनेंगे। महात्मा बुद्ध की तरह सोचेंगे तो वही बनेंगे। अच्छे शिक्षक,  साहित्यकार व चिकित्सक बनने की सोच रखेंगे तो वही बनेंगे। संत तुलसीदास व ईसा मसीह की तरह सोच रखेंगे तो वही होगा। कहने का मतलब है कि हमें तथा छात्र जीवन में छात्रों को अच्छी सोच रखनी चाहिए। यह तो हमारे अंदर ही मौजूद है। वे सभी से प्रेमपूर्वक रहने के पक्षधर थे। प्रेम के बल पर संसार को जीता जा सकता है। तभी तो वे कहा करते थे- 'जो प्रेम में रमा है, सही मायने में वही जीता है।' कहने का सार है कि हम स्नेह प्रेम के सहारे संसार को बदल सकते हैं तथा इसे सुन्दर बना सकते हैं। उनके उपदेशों से छात्रों को भी सीख लेनी चाहिए कि हमें अपने सहपाठियों से मिलजुलकर रहना चाहिए। छोटों को भरपूर स्नेह प्यार देना चाहिए। इन्होंने वेदांत के संदेश का सारी दुनियाँ में प्रचार किया। इनके प्रेरक विचारों को सभी को सहृदय अपनाना चाहिए-  उठो! जगो! और तब तक आगे बढ़ते रहो जब तक कि लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।" हम सभी को उनके बताए गए मार्ग पर चलना चाहिए तथा देश के भविष्य को भी उनके नक्शे कदम चलने हेतु जागृत तथा सतत अभिप्रेरित करते रहना चाहिए। जब हममें विवेक जाग्रत होगा तभी आनंद की प्राप्ति होगी। इसके लिए रामकृष्ण परमहंस जैसे गुरु के सानिध्य में जाना होगा। अतः हम अपने विवेक को जागृत करें।


देव कांत मिश्र 'दिव्य' 
भागलपुर, बिहार

3 comments:

  1. बहुत-बहुत सुंदर और ज्ञानवर्धक!

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  2. Really, Swami Vivekanand was a great scholar, saint and social reformer. He gives us light of meaningful and successful life. Very useful, fruitful and nice article..

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