अधिगम का एक माध्यम कला शिक्षा-राकेश कुमार - Teachers of Bihar

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Saturday 9 January 2021

अधिगम का एक माध्यम कला शिक्षा-राकेश कुमार

अधिगम का एक माध्यम कला शिक्षा 

          बच्चों के शिक्षण के संदर्भ में अक्सर हम ऐसे अधिगम विधि का प्रयोग करते हैं जो बच्चों के अधिगम क्षमता में सरलतम विधि से वृद्धि कर सकें। इस तथ्य से हम सभी अवगत हैं कि बच्चा सीखने की स्वाभाविक क्षमता के साथ संसार में आता है। हम बच्चे को जो भाषा बोलते हैं वह अधिगम की प्रथम भाषा नहीं होती है। हम सभी इस तथ्य को भी मान कर चलते हैं कि बच्चों के संदर्भ में अधिगम अक्षरों और अंकों, तथ्यों या पुस्तकों तथा विद्यालयों या कक्षाओं से प्रारंभ नहीं होता है। बच्चों की वास्तविक अधिगम तात्कालिक वातावरण, परिदृश्यों, आवाजों तथा बच्चे के आसपास होने वाली नियमित घटनाओं से प्रारंभ होता है। हम देखते हैं कि बच्चा बड़ों द्वारा उत्पन्न आवाज को दुहराता है, हीं-हीं और तालियों का आनंद लेता है तथा नकल और निष्पादन करता है। हम यह भी देखते हैं कि बच्चा एक सुंदर तस्वीर पर एक नजर, एक सुरीली लोरी, एक प्यारी मुस्कान, एक स्नेह भरा स्पर्श के अहसास के प्रति एक स्वतः प्रतिक्रिया प्रकट करता है वहीं दूसरी तरफ गड़गड़ाहट की आवाज, बिजली की चमक औऱ एक खुरदुरा स्पर्श के प्रति बच्चा अपनी चेहरे की प्रतिक्रिया बदल देता है अर्थात् रोने-चिल्लाने लगता है। इस तरह से हम देखते हैं कि बच्चों की अन्वेषण की यात्रा इन नियमित घटनाओं जो हमारे आस-पास होती है से प्रारंभ होती है और यही कला शिक्षा के दो माध्यम दृश्य एवं निष्पादन कलाओं में अधिगम की शुरुआत है।
          इस आलेख को लिखने के क्रम में अध्ययन के दौरान एक प्रश्न स्वतः उत्पन्न होती है कि "कला क्या है? इस संदर्भ में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसकी व्याख्या इस तरह की है-- "कला मनुष्य की सृजनात्मक आत्मा की वास्तविकता की पुकार के लिए एक प्रतिक्रिया है।" आगे बढ़ते हैं तो ज्ञात होता है कि कला शिक्षा अधिगम का एक प्राथमिक रास्ता है, सौन्दर्य परक अनुभव के लिए शिक्षण के अर्थ के खोज की एक यात्रा है। कला मानवीय कल्पना, कौशल और आविष्कार द्वारा सृजित विचारों की एक अभिव्यक्ति है। एक कहावत है "संगीत क्या है? पसंदीदा आवाजों की अनुभूति।" उसी प्रकार यह अन्य कला रूपों पर लागू होता है। गति मनोभाव व्यक्त करता है, आवाज अनुकूलन स्वयं को रास्ता दिखाता है-यही कला शिक्षा  है। यहाँ पर अगर हम देखते हैं तो यह प्रश्न उठता है कि हमारे कला शिक्षा की जरूरत क्यों है? तो हम कह सकते हैं कि कला शिक्षा अधिगम का एक क्षेत्र है जो इन पर आधारित है-
● दृश्य कला
● निष्पादन कला
इन दोनों कलाओं की हम शिक्षण अधिगम  में अगर देखें तो गतिविधियों के तौर पर प्रतिदिन व्यवहार में लाते हैं। बच्चों के बीच चित्रकला, पेंटिंग, मूर्तिकला इत्यादि का हम अगर गतिविधि कराते हैं तो इसे हम दृश्य कला के  रूप में व्याख्या कर सकते हैं। अगर हम किसी भी तथ्य या कार्यविधि करते हैं तो इसे हम दो दृष्टिकोण से अवलोकित करते हैं। एक सामान्य ढंग से एवं एक सैद्धान्तिक(सीख) के रूप में। यहाँ पर हमने इस तथ्य का जिक्र इसलिए किया कि क्योंकि आज की शिक्षण बच्चों के बीच व्यवहारिक अनुभव पर एवं हमारे आस-पास हो रहे गतिविधियों पर आधारित है जो बच्चों के बीच एक सशक्त दृष्टिकोण का निर्माण में सहायक होता है। बच्चों के बीच हम कला शिक्षा को उसके आस-पास उपलब्ध हो रहे गतिविधियों से जोड़ सकते हैं चाहे वह विद्यालय हो या घर क्योंकि यह तथ्य आधारित है कि हमारे चारो ओर कला है। पेंटिंग्स, वास्तुकला, मूर्तिकला आदि में। हमारे घर में हमारा वास्तुकला हमारे पहनावे का तरीका, भोजन प्रदर्शित करने का तरीका, हमारे खड़े होने का तरीका, बैठने या बात करने का तरीका एक व्यक्तिगत तरीका है। हम देखते हैं कि हमारे जीवन में प्रत्येक अवसर, उत्सवों में सौन्दर्यपरक अनुभूति सम्मिलित रहती है। दीवाली पर हमारे दरवाजे पर रंगोली, दशहरा पर रावण की विशाल प्रतिमा, देवी दुर्गा की प्रतिमा। हमारे जीवन में प्रत्येक दिन नये प्रकार, रूप के दिवस उत्पन्न होना इन सब गतिविधियों के आधार पर हम कह सकते हैं कि हमारा जीवन कला सहित है। यहाँ पर हम सभी शिक्षकों की भूमिका कला के वृहत प्रकारों की खोज में अपने विद्यार्थियों को नेतृत्व प्रदान करने की होगी।
          कला शिक्षा के माध्यम से हम विद्यालयी शिक्षा के सभी स्तरों पर प्रत्येक विषय को अधिक रुचिकर बना सकते हैं। यह नियमित पाठ्यपुस्तक अधिगम से बच्चे को दूर ले जाता है और बच्चे में स्वनिर्देशित अधिगम के रूप में यह अधिगम को बढ़ाता भी है, स्व सम्मान को बढ़ाता है और एकाग्रता तथा स्व अनुशासन को भी सुधारता भी है। यह एक बच्चे को  विद्यालय में सीखने और बेहतर निष्पादन करने में सहायता करता है तो चलिये हम सभी कोरोना के कारण प्रत्क्षत: बंद शैक्षिक गतिविधि को एक नये उत्साह और नये तरीके से शुरु करते हैं क्योंकि हम सभी (शिक्षकों) द्वारा किया गया अतिरिक्त प्रयास एक लंबा रास्ता दिखायेगा और हमारे देश के भावी पीढ़ी में अधिक उत्तरदायी भविष्य विकसित करने में सहायक होगा। इसके साथ-साथ गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा कही गई बात- "उच्चतम शिक्षा वह है जो हमें शुद्ध सूचना नहीं देती बल्कि हमारे जीवन में सभी अस्तित्वों के साथ सामंजस्य बनाती है" को सार्थकता प्रदान करें।


राकेश कुमार
मध्य विद्यालय बलुआ
मनेर (पटना)

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