Friday, 12 February 2021
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कलम या तलवार-डॉ. सुनील कुमार
कलम या तलवार
एक म्यान में दूसरे को जगह न देने वाला तलवार आखिरकार अपना रंग दिखाया। साधारण व छोटा सा दिखने वाला कलम पर वार कर ही दिया। आखिर वार करता भी तो क्यों नहीं! तलवार को अपने शक्तिशाली होने का घमंड जो था। लेकिन तलवार को यह नहीं पता कि कलम की धार में समाज को पलट देने की क्षमता होती है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी ने 'कलम और तलवार' नामक कविता में कलम और तलवार दोनों का फर्क करते हुए प्रधानता दी है। उनके अनुसार कलम और तलवार दोनों में ही बदलाव लाने की क्षमता होती है। दोनों में ही तेज धार होती है पर फर्क इतना है कि कलम की धार विचारों को जगाती है, तो तलवार की धार खून की धारा बहाती है।
कलम के द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति से समाज को जगाया जा सकता है तो दूसरी ओर अस्त्र-शस्त्र हाथों में लेकर युद्ध जीता जा सकता है। जहांँ मानव समाज में चेतना पैदा करने की बात आए तो कलम ही कारगर साबित होता है। वहीं युद्ध में तथा हिंसक पशुओं से आत्मरक्षा हेतु तलवार की आवश्यकता पड़ सकती है। यदि समाज में चारों ओर सुरक्षा और निर्भरता हो तो अस्त्र-शस्त्रों का नहीं बल्कि कलम का ही काम होता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हमें किसको अपनाकर समाज का निर्माण करना है।
यूं तो कलम और तलवार का संघर्ष युगों से चला रहा है। यह बौद्धिक और शारीरिक शक्ति के बीच एक तरह की प्रतिस्पर्धा है। इसमें कोई शक नहीं कि आदि मानव ने शारीरिक शब्द के जोर पर ही दूसरे साथी मानव को काबू किया होगा। कबीलों के सरदार की ताकत से प्राप्त सुरक्षा ने ही समूह में रहने के लिए जंगली मानव को प्रेरित किया होगा। शासन व शासक का सूत्रपात यहीं से प्रारंभ हुआ होगा। ताकतवर इंसान में बुद्धि भी हो यह जरूरी नहीं लेकिन फिर भी जो शासक चतुर-चालाक और बुद्धिमान भी थे उन्होंने शारीरिक और मानसिक दोनों शक्तियों के समन्वय से लंबे समय तक लोकप्रिय शासन किया। धीरे-धीरे राजा-महाराजा परिवारवाद के शिकार हुए। वंश परंपरा की स्थापना हुई। मगर इसमें भी शारीरिक शक्ति का वर्चस्व बना रहा। एक बेटे द्वारा अपने ही बाप व अन्य भाइयों की हत्या, बूढ़े होते ही बीमार राजा को हटाने का षड्यंत्र, कई रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। राजतंत्र में भी कलम के लिए मंत्री और तलवार के लिए सेनापति हुआ करते थे।
इस प्रकार युगों-युगों तक शरीर का बुद्धि पर दबदबा रहा। उस समय तक राजा एक योद्धा के रूप में ही पहचाना जाता था। मगर नए तंत्र में ऐसा नहीं था। सेनापति और सेना तो थी मगर नए बौद्धिक शासक के नियंत्रण में सारी व्यवस्था थी। सेनापति को तलवार चलाने के लिए भी इनके इशारों की आवश्यकता पड़ने लगी। एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ। हां, शासन में भागीदारी के नाम पर सबको बोलने की स्वतंत्रता दी जाने लगी। और इस तरह शब्द शक्तिशाली बन गए और शब्द वाले शासक।
लेखन का कार्य हिंसा के कार्य की बजाए लोगों पर अधिक प्रभाव डाल सकता है। शब्दों में बल की तुलना में समस्याओं को हल करने की क्षमता अधिक है। कलम सभ्य व्यवहार का संकेत देते हैं जो चीजों को प्राप्त करने के लिए क्रूर शक्ति का इस्तेमाल करने से कहीं बेहतर है।
यदि सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें तो कलम और तलवार में से कलम की शक्ति अधिक है तथा कलम के द्वारा देश में हो रहे भ्रष्टाचार एवं बुराइयों को मिटाया जा सकता है। ज्ञानशक्ति से ही देश की तरक्की की जा सकती है। इसीलिए कलम को ज्ञानशक्ति का प्रतीक मानते हुए सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।
डॉ. सुनील कुमार
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Bahut sundar aalekh , sir
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