Sunday, 14 February 2021
New
फेल तो शिक्षक ही होते हैं-मो. जाहिद हुसैन
फेल तो शिक्षक ही होते हैं
मूल्यांकन में न सिर्फ बच्चे की योग्यता की ही जांच होती है बल्कि शिक्षक की भी जांच होती है कि शिक्षक ने क्या पढ़ाया, कैसे पढ़ाया और बच्चों ने उसे समझा या नहीं। बच्चे अपेक्षित उपलब्धि कैसे प्राप्त कर सके, इसकी जिम्मेवारी शिक्षकों की है। शिक्षक स्वमूल्यांकन एवं आत्मविश्लेषण करें ताकि पेशेवर अभिवृत्ति (Professional Attitudes) के साथ अपने उपकरण (Tools) से बच्चे को परखें और उनके अनुरूप शिक्षा देने का काम करें। मूल्यांकन एक व्यापक अवधारणा है जो बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों की ताकत का आभास कराता है। नित नए प्रयोगों से शिक्षक बच्चों को समझा पाने में सफल होते हैं। शिक्षण एक कौशल है। यह शिक्षकों की निरंतर जी-तोड़ मेहनत से आता है। पेशेवर शिक्षक वही है जो नवीन विधियों और तकनीकों से अद्यतन हो। शिक्षक जो कुछ भी बच्चों को सिखाना चाहे, वह चिंतन कर किसी भी युक्ति से बच्चे को सिखा ही देगा।
बच्चों में समुचित मानसिक विकास, किसी विषय या वस्तु के प्रति सही समझ स्थापित होना, कौशल की प्राप्ति, अवधारणा के पक्कीकरण की जानकारी मूल्यांकन के द्वारा होती है। सीखना जारी रखने के लिए मूल्यांकन सहायता करता है। मूल्यांकन का उपयोग उपलब्धियों को बेहतर करने की एक प्रक्रिया है। उपलब्धि यदि साध्य है तो मूल्यांकन उसका साधन है। उपलब्धि तब साधन बन जाती है जब अगली उपलब्धि के लिए उसका इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार साध्य और साधन का खेल चक्रीय रूप में चलती रहती है। जाहिर सी बात है कि कोई व्यक्ति मंजिल तक पहुंच जाए और फिर अगली मंजिल तय करने की सोचे तो समझिए कि इसकी इच्छाएं बढ़ गई हैं। हालांकि बच्चों की उप्लब्धि अपेक्षित एवं स्तरीय होती है जो अगले स्तर को प्राप्त करने के लिए जरिया बनती है। मल्टीग्रेड मल्टी लेवल की पहचान वर्ग-कक्ष में शिक्षकों को पता करना होगा। उनके ज्ञान का डायग्नोसिस (Diagnosis) कर उपचार (Remedy) करना शिक्षकों का काम है। बच्चों में बेसलाइन टेस्ट (Baseline Test) लेना होगा। फिर उपलब्धि होने पर कुछ महीनों के बाद मिडलाइन टेस्ट (Midline Test) लेना होगा। फिर यह समझ में आ जाए कि बच्चे सीख चुके हैं तो एन्डलाइन टेस्ट (Endline Test) लेना होगा, फिर उपलब्धि देखनी होगी। यह संकलनात्मक मूल्यांकन (Summative Evaluation) है जबकि साथ ही साथ संरचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) जरूरी है।
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE-Continuos and Comprehensive Evaluation) जरूरी है। सतत से तात्पर्य है कि मूल्यांकन लगातार पढ़ाने के क्रम में करते चलना चाहिए। सतत् के साथ मूल्यांकन को व्यापक रूप में भी लेने की जरूरत है। व्यापक का मतलब है कि इसमें जांच एवं कमजोरी को दूर करने के उपाय साथ हों तथा केवल संज्ञानात्मक विषयों का ही मूल्यांकन न हो बल्कि सह-शैक्षिक एवं सह-संज्ञानात्मक विषयों को भी मूल्यांकन की परिधि में लाना चाहिए। कई बार ऐसा देखा गया है कि शिक्षकों का ध्यान केवल गणित, भाषा, विज्ञान, समाजिक विज्ञान जैसे संज्ञानात्मक (Scholastic ) विषयों पर ही जाता है लेकिन खेल, समयनिष्ठता, सृजनात्मकता, सांस्कृतिक कार्यक्रम, नियमितता, लगन, सद्व्यवहार, नेतृत्व कला तथा अन्य सह-शैक्षणिक कार्यों में भागीदारी, जैसे सह-संज्ञानात्मक (Co-Scholistic) विषयों पर ध्यान नहीं जाता, जबकि सह-संज्ञानात्मक विकास ऐसी चीजें हैं कि बच्चे की दुनिया बदल देती हैं। कुछ बच्चे को देखा जाता है कि पढ़ने में तेज होता है लेकिन अन्य बच्चों को काफी तंग करते हैं। कुछ बच्चे आदेश का पालन नहीं करते। यदि उन्हें एक गिलास पानी लाने के लिए कहा जाए तो कट कर भाग जाते हैं। लेकिन कुछ बच्चे तत्परता से दौड़कर शिक्षक को पानी लाकर देते हैं। कुछ बच्चे चित्रकारी, गाना, अभिनय आदि में भी काफी अच्छे होते हैं। बच्चों की इस मेधा को मान देना होगा। ये सकारात्मक गतिविधियां उनकी जिंदगी को सफल बना सकती है बशर्ते कि शिक्षक इन क्षेत्रों में बच्चों को प्रोत्साहित करें। उदाहरण स्वरूप- सचिन तेंदुलकर जो मैट्रिक फेल थे, लेकिन वह क्रिकेट में अंतिम शिखर तक पहुंचे क्योंकि क्रिकेट उनका जुनून (Passion) था। बच्चों की जिज्ञासा को पहचाननी होगी और उनके रुझानों के मुताबिक लक्ष्य चुनने की छूट देनी होगी। शिक्षक अभिभावक से भी संपर्क साधें और उन्हें भी समझाएं कि बच्चे की रुचि जिस में है, उससे इतर जबरदस्ती दूसरे क्षेत्रों में न भेजें। जिसे एक अच्छा कलाकार बनने की प्रबल इच्छा हो, वह अच्छा इंजीनियर या डॉक्टर नहीं बन सकता क्योंकि कला ही उसका जुनून है और जुनून में कुछ करना आनंद की अनुभूति देता है।
ब्लूम्स टैक्सनॉमी (Bloom's Taxonomy) के अनुसार तीन पक्षों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए- ज्ञानात्मक पक्ष (Cognitive Domain), भावात्मक पक्ष (Affective Domain) और कार्यात्मक पक्ष (Psychomotor)। ऐसे तो ज्ञान, व्यवहार और कौशल तीनों जीवन में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन भावात्मक पक्ष को इसलिए अधिक महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए कि यह इंसान को आत्ममंथन करने पर मजबूर कर देता है। इसका प्रभाव सीधे-सीधे हृदय पर लगता है। उदाहरण स्वरूप-भावात्मक पक्ष ही है जो रत्नाकर जैसे डाकू को भी बाल्मीकि बनाता है। यही ज्ञानात्मक पक्ष है जो अंगुलीमाल जैसे कुख्यात डाकू को भी बुद्ध के शरण में ले आता है। कहानी यह है कि अंगुलिमाल डाकू के पास जब महात्मा बुद्ध गए तो अंगुलीमाल डाकू ने कहा, "ठहरो।" महात्मा बुद्ध ने कहा," मैं तो ठहर गया, लेकिन तुम कब ठहरोगे।" अंगुलिमाल डाकू सोचने लगा कि यह फिर कौन है, जिसे मेरा खौफ नहीं है। "तुम कब ठहरोगे-------?" ये आवाज उसके कानों में गूंजती रही। "तुम कब ठहरोगे ?" यह आवाज उसकी अंतरात्मा को झकझोर दी और उसने शस्त्र त्याग कर दिया। वह खून खराबे को छोड़कर 'बुद्धम शरणम गच्छामि' हो गया। कलिंग युद्ध में खून की धारा बहने के बाद यही बात सम्राट अशोक के साथ हुई। इसके बाद सम्राट अशोक ने शस्त्र त्याग कर धम्म विजय का रास्ता अपनाया। इस प्रकार भावात्मक पक्ष किसी की भी दुनिया बदल सकता है। बच्चों को प्रेरक प्रसंग और प्रेरक कहानियां सुनाते रहना चाहिए। किसी भी शिक्षाप्रद कहानी या घटना से बच्चे अभिप्रेरित हो जाते हैं, फिर उनके व्यवहार में बदलाव आने लगता है। शिक्षक का कार्य है कि बच्चों में सकारात्मक बदलाव लाएं। ज्ञान, व्यवहार और कौशल-ये तीनों है जो जीवन की सफलता के लिए आवश्यक है। अतः तीनों का मूल्यांकन हो, तभी बच्चे का सर्वांगीण विकास ( All round development) होगा।
बड़ा ही दिलचस्प कहानी है। जंगल में एक स्कूल खोला गया। उसमें अपने-अपने क्षेत्र के दक्ष उस्तादों की भर्ती की गई। पाठ्यक्रम था- दौड़ना, तैरना, पेड़ पर चढ़ना, गाना, नाचना, छलांग लगाना आदि स्कूल में बहुत सारे जानवरों ने नामांकन कराया- बंदर, बुलबुल, बत्तख, चीता, मोर, मुर्गी और हाथी आदि। पहला-पहला दिन था। पीटी सर आए। सभी को लाइन में खड़ा किए और कुछ निर्देश दिए। दौड़ लगाना था। जैसे ही पीटी सर ने 1, 2 ,3 कहा। सभी जानवर दौड़ पड़े। चीता प्रथम स्थान प्राप्त किया, फिर कोई दूसरा तो कोई तीसरा स्थान-----। लेकिन बत्तख महोदय की हालत बहुत ही खराब हो गई। उसके तो पैरों की झिल्लियां ही फट गईं। तैरने में महारत हासिल रखने वाले बत्तख अब तैरने से भी रहे। कुछ दिनों के बत्तख का पैर ठीक हो गया।
तैराकी प्रतियोगिता हुई, जिसमें बत्तख प्रथम स्थान प्राप्त किया और इसी तरह कोई दूसरे स्थान और कोई तृतीय स्थान प्राप्त किया। फिर कुछ दिनों बाद पेड़ पर चढ़ने की प्रतियोगिता हुई, जिसमें बंदर प्रथम आया। फिर उसी तरह दौड़ प्रतियोगिता में चीता प्रथम आया और नाचने की प्रतियोगिता में मोर और गाने में बुलबुल प्रथम आई। सब लोग सभी काम नहीं कर सकते। सभी की अपनी-अपनी क्षमता होती है और अपनी-अपनी दिलचस्पी। उसी तरह बच्चे भी होते हैं। शिक्षकों की जिम्मेवारी है कि उसका मार्गदर्शन उसी तरह करें। वे उनके मनोविज्ञान को समझें और उसका उपयोग वातावरण रचने में करें। अक्सर देखा गया है कि विद्यालय में शिक्षकों के बीच आपस में अपेक्षित तालमेल नहीं होता जबकि होना यह चाहिए कि गणित शिक्षक, अंग्रेजी शिक्षक से कुछ सीखें और अंग्रेजी शिक्षक गणित शिक्षक से कुछ सीखें। इस प्रकार विद्यालय का पूरा माहौल ही अकादमिक हो जाएगा और फिर सभी समस्या का समाधान विद्यालय में ही हो जाएगा।
शिक्षक सुगमकर्ता के रूप में बच्चों को ऐसा संदर्भ दें जिससे बच्चे कल्पना करें और जिज्ञासु बनें। यदि ऐसा नहीं हो तो शिक्षार्थी का फेल होना शिक्षक की ही नाकामी है। बच्चों से स्नेह रखें और फिर उनसे घुल मिलकर रहने में आनंद महसूस करें। उन्हें विषय-वस्तु की अच्छी जानकारी हो। याद रहे कि बेहतर अधिगम बेहतर शिक्षण पर निर्भर करता है।
About ToB Team(Vijay)
Teachers of Bihar is a vibrant platform for all who has real concern for quality education. It intends to provide ample scope and opportunity to each and every concern, not only to explore the educational initiative, interventions and innovations but also to contribute with confidence and compliment. It is an initiative to bring together the students, teachers, teacher educators, educational administrators and planners, educationist under one domain for wide range of interactive discourse, discussion, idea generation, easy sharing and effective implementation of good practices and policies with smooth access.
ToBBlog
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
🌹👍
ReplyDelete