शिक्षक छात्र और अभिभावक का दायित्व-धर्मेंद्र कुमार ठाकुर - Teachers of Bihar

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Sunday 7 February 2021

शिक्षक छात्र और अभिभावक का दायित्व-धर्मेंद्र कुमार ठाकुर

शिक्षक छात्र और अभिभावक का दायित्व 

          शिक्षा व शिक्षण की पृष्ठभूमि पर मानव जीवन चक्र परिवार के लोगों के बीच संबंध, कार्य की उपयोगिता, नेतृत्व के गुण, विज्ञान की प्रकृति, आध्यात्म तथा नैतिकता पर बात होनी चाहिए। शिक्षक सूचना को ज्ञान में  परिवर्तित करने में और ज्ञान को समझ में परिवर्तित करने में विद्यार्थियों की मदद करें। चुनौतियां तो बहुत है इन सबको एक ऐसी प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए जिसमें शिक्षक, विद्यार्थियों तथा तकनीक को एक ऐसे मार्ग पर खड़ा कर दें जहां शिक्षा के लेन-देन के ऐसे आदर्श हो कि उपयोगी उत्पादों और सेवाओं की तकनीक में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले। हम इस माध्यम का प्रयोग कर शिक्षा में उपयोग होने वाली अच्छी गुणवत्ता के उत्पादों को कम कीमतों पर तैयार कर सकें। यह एक ऐसा नवीन प्रयास होगा जो शिक्षण को अनुसंधान की भांति एक सामूहिक प्रयास में परिवर्तित कर देगा। इस प्रक्रिया में शिक्षकों द्वारा बनाई गई उपयोगी शिक्षा सामग्री को साथियों की सकारात्मक सहानुभूति मिलती तो है ही, इससे शिक्षा व शिक्षकों दोनों के लिए लाभ देखने को मिलेगी। यह लाभ विद्यार्थियों को  भिन्न-भिन्न परिपेक्ष में विषय को समझने और इन्हें स्वयं अपने निष्कर्षों पर करने के लिए प्रोत्साहित करता है। 
          शिक्षा वास्तव में एक ऐसी प्रणाली है, जिसके घटक एक-दूसरे की मदद से कार्य को पूरा करते हैं। अब प्रश्न उठता है कि वह कौन से घटक हैं जो मिलकर शिक्षा को संपूर्ण रूप में परिभाषित करते हैं। पहली अवस्था में व्यवहारिक, ठोस और सुनिश्चित घटक आती है। दूसरी अवस्था पद्धति एवं तरीके हैं। यह कहना सही होगा कि अधिकतर लोग इन दो अवस्थाओं को तो समझ ही जाते हैं। तीसरी अवस्था में एक व्यक्ति समान्य अनुभव के वैचारिक धरातल से होते हुए एक ऐसी अवचेतन समझ की स्थिति में पहुंचता है जो एक विकसित आत्मा की प्रकृतिक उत्थान का सूचक है। चौथी और अंतिम अवस्था दार्शनिक व निराकार आयाम के अस्तित्व की अभिव्यक्ति है। शिक्षा से समाज के नवयुवकों को प्रबुद्ध नागरिक कैसे बनाया जाए? ऐसे वयस्क जो जिम्मेदार हो और विचारों से परिपूर्ण व साहसी हो, यह चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसके लिए नैतिक मूल्यों के सिद्धांतों, राजनीतिक परिकल्पना, सौंदर्यशास्त्र व अर्थशास्त्र की अच्छी समझ आवश्यक है।
          हर क्षेत्र में उन्नति इस बात पर निर्भर करती है कि विद्यालयों की सिखाने की क्षमता क्या है ? इस प्रकार शिक्षा भविष्य के विकास और समृद्धि का साधन है। एक व्यक्ति का विकास तथा अपने लक्ष्यों की पूर्ति बचपन में ही की गई पर्याप्त तैयारी पर निर्भर करती है। नीव जितनी मजबूत बनाई जाएगी बालक जीवन में उतना ही अधिक सफल होगा। शिक्षा के साधारण व बुनियादी तत्व एक बालक को काफी आगे ले जा सकते हैं।
          शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है--"ज्ञान प्रदान करना" मूल रूप से यह लक्ष्य  ज्ञान की प्रकृति उत्पत्ति तथा विचार के बारे में बतलाता है लेकिन ज्ञान की प्रकृति एक विविधता का विश्लेषण एवं आस्था जैसी धारणाओं का ज्ञान से संबद्ध उतना ही महत्वपूर्ण है। हम अपने बच्चों को विदेशी कंपनियों का नौकर बनाने के लिए नहीं पढ़ा रहे हैं। यह तो अपने राष्ट्र के अस्तित्व एवं भविष्य को दांव पर लगाने जैसा है। रविंद्र नाथ टैगोर ने कहा है कि "रचनात्मकता की विकास के लिए संस्कृति उसी प्रकार जरूरी है, जैसे फूलों को खिलने के लिए उपवन"। इसी उपवन में प्रतिभा संपन्न तिरुवल्लूर, कबीर और विवेकानंद जैसे ब्रह्मांड की श्रेष्ठ परंपरा के उदाहरण है। शिक्षा से व्यक्ति का विकास होता है और व्यक्ति से समाज का। जन्म के समय वह सब हमारे पास नहीं होता है और हमें जीवन यापन के लिए जो जरूरी होता है वह शिक्षा से ही संभव है।
          यूनानी मान्यताओं के अनुसार शिक्षा को तीन तरह से वर्गीकृत किया गया है। एक वे जो अपने आप ही सब कुछ समझ लेते हैं। दूसरी तरह के लोग चेतावनी और निर्देश के बिना समझ पाते हैं। तीसरे वे जिनपर इन दोनों का भी असर नहीं पड़ता है। व्यक्ति खोज से पहले नई रचनात्मक के वैचारिक ढांचे को मानस पटल पर प्रतिबिंबित करता है। दूसरी अवस्था खोज करने की होती है, जिसमें इस ढांचे को रचनात्मक विचार प्रकट करने के लिए उपयोग किया जाता है। मेरा विश्वास है कि हर व्यक्ति के जीवन में सफल होने की संभावना होती है। जरूरत है संसाधनों के लिए उत्साह पूर्वक मुकाबला करने की तभी हमें कार्यकारी जीवन में सफलता की किरणें दिखाई देगी। वास्तव में सबसे कठिन परीक्षा स्कूल पढ़ाई के दौरान न होकर उसके बाद के वर्षों में होती है। स्कूलों में पाठ पढ़कर परीक्षा दी जाती है जबकि कार्यकारी जीवन में पहले आपको परीक्षा देनी पड़ेगी, पाठ बाद में सीखा जाता है। 
          मानव समाज विज्ञान, तकनीक और कला अर्जित करने के साथ-साथ दया और परोपकार की भावना तथा दूसरों की समस्याओं को समझने में अपना योगदान करने को उत्सुक होते हैं। अब हम उन पौधों के बारे में बात करेंगे जिसे वृक्ष बनने के लिए उपर्युक्त तथ्य लाभकारी सिद्ध होने की संभावनाएं होती है। पौधा से मेरा आशय उन विद्यार्थियों से है जो अच्छा होने पर एक साधारण शिक्षक से अधिक सीख सकता है किंतु एक कमजोर विद्यार्थी कुशल शिक्षक से भी नहीं सीख पाता है। जीवन में सफल होने के लिए और परिणाम प्राप्त करने के लिए आपको तीन प्रभावकारी शक्तियों को समझना चाहिए और उनमें दक्षता हासिल करनी चाहिए। ये है- इच्छा, विश्वास तथा अपेक्षा करना।
          मैं इस बारे में विश्वस्त हूं कि माता-पिता अध्यापकगण और मार्गदर्शकों का आदर करना। यह तीनों बातें सफलता की नीव रखती है। इतना तो तय है कि आप जीवन में कुछ नहीं कर पाएंगे। यदि माता-पिता, अध्यापकगण और मार्गदर्शकों का सम्मान नहीं कर सकते। किंतु यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि "यह कभी भी अनादरपूर्ण अक्खड़पन का रूप न लें"। परिवार और विद्यालय काफी हद तक प्रेरणा का स्रोत होते हैं। अध्यापक एक ऐसा व्यक्तित्व है जो हमें बनाता है। हमें प्रयत्नशील रखता है तथा हमारी रुचियों को दिशा देता है। शिक्षकों को इस विचार से पढ़ाना चाहिए कि मैं क्रम से पढ़ाऊंगा। शिक्षकों को इस विचार के साथ आगे बढ़ना चाहिए कि 'मैं करूंगा करुणा के साथ बोलूंगा'। शिक्षकों को यह भी विचार करना चाहिए कि 'मेरा बोल भौतिक पारितोषिक के उद्देश्य से प्रेरित नहीं होगा'। शिक्षकों की इस विचार से पढ़ाना चाहिए कि 'मैं अपनी या किसी और की निंदा किए बिना बोलूंगा'। जो भी बच्चा उसके पास पढ़ने आए उसे बिना किसी शर्त का अपना बच्चा माने। अध्यापक की एक और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी यह है कि उसे बच्चों की बुद्धि समझ के स्तर व जरूरतों के हिसाब से देनी चाहिए। एक अध्यापक की यह भी जिम्मेदारी होती है कि वह बच्चों को अच्छी तरह जाने और उनकी समस्याओं को समझे, जिससे वह समस्याओं का समाधान करने और इन्हें सुलझा पाने में बच्चों की मदद कर सकें। इसी कर्तव्य से संबंधित एक और कर्तव्य भी है, वह यह कि अध्यापक को इस प्रकार पढ़ाना चाहिए कि वह उसी प्रतिष्ठा अधिकार व सम्मान पर खरा उतरता हो जो उसे बच्चों और माता-पिता से प्राप्त होता है। हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि अक्सर हम क्या पढ़ाते हैं? ज्यादा हम कैसे पढ़ाते हैं? इसका असर ज्यादा पड़ता है। आप तब तक धैर्य रखें जब तक कक्षा का सबसे कमजोर विद्यार्थी भी सही तरह से न समझ लें। आप नम्रता पूर्वक यह जवाब दें कि यह मैं भी नहीं जानता, चलिए! इसका उत्तर खोजते हैं, वह उत्साह जो आप कमजोर विद्यार्थियों को देते हैं और वह सवासी जो आप उसे छोटी सी उपलब्धि पर देते हैं, उसका प्रभाव पड़ता है। "एक समर्पित अध्यापक उस दीपक की तरह होता है जो दूसरों को प्रकाश देने के लिए स्वयं जल जाता है"। निम्न बिंदुओं पर जरा ध्यान केंद्रित कीजिए जो शिक्षकों को आत्मसात करते हुए योग्यता लाने की चेष्टा करता है। 
(1) शिक्षण के प्रति मेरा प्रेम सर्वप्रथम है, मेरी आत्मा  शिक्षण ही रहेगी। शिक्षण मेरा जीवन का उद्देश्य होगा। 
(2) मैं यह जानता हूं कि एक शिक्षक होने के नाते देश के विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान कर रहा हूं।
(3) मैं यह महसूस करता हूं कि मेरी जिम्मेदारी विद्यार्थियों के साथ-साथ जागरूक नौजवानों को संवारना है। 
(4) मैं अपने को सफल शिक्षक तभी मानूंगा जब मैं एक औसत विद्यार्थी को अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रेरित करने में सक्षम हो जाऊंगा और जब एक भी विद्यार्थी ऐसा नहीं होगा जो अच्छा कार्य नहीं कर रहा हो।
(5)  मैं अपने जीवन को इस प्रकार संगठित व संचालित करूंगा कि मेरा जीवन मेरे विद्यार्थियों के लिए एक आदर्श संदेश बन जाए।
(6) मैं अपने विद्यार्थियों को प्रेरित करूंगा कि वे प्रश्न पूछे जिससे उनमें पूछने की भावना पैदा हों और वे रचनात्मक एवं जागरूक नागरिक बने।
(7) मैं सभी विद्यार्थियों को बराबर समझूंगा और धर्म जाति या भाषा के कारण कोई भेदभाव नहीं करूंगा।
(8)मैं अपनी क्षमताएं बढ़ाता रहूंगा जिससे मैं अपने विद्यार्थियों को हमेशा उच्च गुणवत्ता की शिक्षा दे सकूं। 
(9) मैं हमेशा कोशिश करता रहूंगा कि मेरा मस्तिष्क महान विचारों से प्रेरित रहें और अपने सोचने व कार्य करने में अपनी विनम्रता अपने विद्यार्थियों में बांट सकूं।
(10) मैं हमेशा अपने विद्यार्थियों की सफलता का उत्सव मनाऊंगा।
अगर इन परिस्थितियों में एक अध्यापक से इतनी आशाएं हैं, तो विद्यार्थियों से क्या आशा की जा सकती है?
          विद्यार्थियों का पहला कर्तव्य है कि वह अपने अंदर सच्चाई ईमानदारी निष्ठा तथा विनम्रता के गुण पैदा करें। जब आपका अंतर्मन सुंदर होगा, भावनाएं अच्छी होंगी तब सीखने की शुरुआत करनी चाहिए। एक अध्यापक की तरह विद्यार्थी को भी हमेशा विनम्र रहना चाहिए। ज्ञान से उदंड नौजवान भी विनम्र हो जाते हैं। जैसे बाढ़ में पहाड़ी भी धुल जाती है। ज्ञान मानव को तब तक कुछ नहीं दे पाएगा जब तक मानव अपना सब कुछ ज्ञान को समर्पित न कर दे।
          10 से 20 की उम्र के बर्ष बहुत मुश्किल के होते हैं। इस उम्र में प्रसिद्धि एक बड़ा छलावा जैसी होती है। अगर कोई चींटी सर्वश्रेष्ठ श्रेणी में जाने की कोशिश करती है तो उसके इस प्रयास पर तिरस्कार पूर्वक न मुस्कुराइए। आज जो भी कौशल, संपत्ति या कला आपको प्राप्त है वह पहले स्वप्न मात्र ही नहीं था। जीवन का अर्थ ही संघर्ष और सफलता है। सफलता का सबसे अधिक मोल वही लगा सकते हैं, जो कभी सफल नहीं हो पाए। शहद की मिठास वही जान सकता है जिसे इसकी जरूरत है।
          माता-पिता का व्यवहार बच्चे के व्यक्तित्व की रूपरेखा तय करता है। अगर उसे नकारात्मक व्यवहार मिलता है तो वह शर्मीला हो जाता है। जिससे उसकी प्रकृति व स्वभाविक प्रवृतियां दब जाती है। अगर माता-पिता ध्यान देकर अपनी देख-रेख से इस भ्रम को दूर न करें तो यह एकदम से मनोवृति में बदल जाता है, जिसे भ्रांति रोग कहते हैं। एक सभ्यता की स्थिरता इस समझ पर निर्भर करती है, कि वह अपने संसाधनों को  किस तरह बाँटते हैं, मजदूरों को कार्य सौपते हैं और सत्य के आधार पर बच्चों को निर्देशित करते हैं। हम अपने बच्चों को झूठ बोलना सिखा देते हैं और फिर उनको उसी बात के लिए सजा देते हैं। जो बच्चों को जागृत करना चाहते हैं।
          एक शिक्षा प्रणाली का क्या उद्देश्य होना चाहिए? अगर आप बच्चे पर प्रभुत्व दिखाकर अपने तरीके से कार्य करने पर मजबूर करते हैं, चाहे वह कितना भी सही तरीका क्यों ना हो, तो क्या बच्चा आजादी महसूस करेगा ? अगर हम बच्चे की वास्तविक प्रतिभा को पहचानने और निखारने को शिक्षा का उद्देश्य बनाना चाहते हैं तो शुरु से आजादी देना जरूरी है। यह शिक्षा का लेन-देन में शिक्षक एवं विद्यार्थी के बीच एक नया रिश्ता बनाता है। इसलिए शिक्षक को सबसे अलग करने वाला गुण है। 'सत्य पर आधारित आचरण' केवल व्यक्ति की आजादी और उसके एकीकरण के लिए समर्पित एक शिक्षक को बहुत सदाचारी होना चाहिए। यह किसी धर्म या जाति से संबंधित नहीं होता, किसी विचार या परंपराओं से बंधा नहीं होता। मेरे ख्याल से शिक्षकों के कार्य को कभी भी कम करके नहीं आंका जा सकता। सच कहा जाए तो शिक्षक और अधिक महत्वपूर्ण हो जाएंगे और पूरा शिक्षा जगत शिक्षक की मदद से चला करेगा। इसलिए हमें उसकी तरह बनना चाहिए जो इतने गुणों के बावजूद स्वयं पर अभिमान नहीं करता। शिक्षा का अर्थ है - आजादी! वास्तविक शिक्षा वह होगी जिसमें मात्र जानकारी नहीं दे देंगे बल्कि, अपने जीवन की चीजों जिसका अस्तित्व है, उसके साथ तालमेल बैठाएंगे। यह सब लचीली शिक्षा प्रणाली में ही संभव है। जीविका अर्जित करने के लिए शिक्षा देना एक सामान्य उद्देश्य है। नेतृत्व के लिए शिक्षा देना इससे अलग बात है। आत्मा के अंकुर को पनपने के बजाय कोशिश यह भी  की जा रही है कि विद्यार्थी के जीवन में शिक्षा से पढ़ने वाले वांछित प्रभाव को जबरदस्ती थोप दिया जाए ।सीखने-सिखाने के अंदरूनी तरीकों को परखने और स्पष्ट करने के बारे में है जो हमें समय साथ और मन में आए हुए बुरे विचारों से छुटकारा दिलाता है ।
          पढ़ाने का अर्थ है- व्यक्ति को वास्तविकता से जोड़ना। शिक्षक होने के नाते सत्य पर आधारित समाज बनाना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। हमारे शिक्षकों में एक ऐसा समुदाय उभरना चाहिए जिसमें प्रमाणिक शिक्षा को संभालने की क्षमता हो। अगर हम उस ह्रदय को उत्साह से नहीं भर सकते जो अच्छे शिक्षण का आधार है, तो हम शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं कर सकते। अच्छा शिक्षण कार्य शिक्षक की प्रतिबद्धता और ईमानदारी से आती है। यह एक ऐसा कार्य है, जो समृद्धि और संपूर्णता को बढ़ाता है। अगर हम स्वयं को नहीं जानते हैं तो अपने विद्यार्थियों को भी नहीं जान सकते हैं।
          शिक्षण एक व्यवसाय नहीं है। यह समाज के प्रति दायित्व भाव की एक पुकार है, एक नैतिक मांग है ,जो हमें वह बनने को कहती है। जो हम अभी तक नहीं हैं। "मिट्टी का जो अर्थ पृथ्वी के लिए है वहीं शिक्षकों का समाज के लिए है। "शिक्षक, मिट्टी में छुपे उस ह्यूमस की तरह है, जिसे संरक्षित नही किया जाय तो मिट्टी बंजर बन जाती है"। शिक्षक  अपने अंदर परंपराओं को संजोते हैं। शिक्षक ही विद्यार्थियों के  आवेगों  को समेटते हैं, शिक्षक संस्कृति को संभालते हैं । 'एक ऐसा मूल्य जो संस्कृति का पोषण करती है, वह शिक्षक जिसे  हमें संभालकर रखना चाहिए। हम सभी चाहे वे सफल हो रचनात्मक हो या बहुमूल्य गुण वाले हो कि हमारे शिक्षकों ने ही मदद की तथा पोषण दिया। हमलोग इस पृथ्वी को छोड़ने से पहले पढ़ाएं और आने वाली पीढ़ियों को उपजाऊ धरती दें। ऐसा समाज जो शिक्षकों को मदद नहीं करते जीवित नहीं रह सकता। इसलिए आयें हम सभी एक संकल्प लें कि मिलकर समाज को उन्नत तथा विकसित बनाएं ताकि हमारा राष्ट्र पूरी   दुनिया का अध्यापक बनकर शिक्षित करें।


धर्मेंद्र कुमार ठाकुर
न. सृ. प्रा. वि. नेमानी टोला बेलसारा गोठ
रानीगंज अररिया

3 comments:

  1. बहुत-बहुत सुंदर और संदेशपरक!

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    1. आप लोंगो का प्यार और उत्साह हमारी कलम को और भी मजबूत और तीक्ष्ण बनाएगा
      धन्यवाद

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