देश दुनिया के पथ प्रदर्शक हमारा बिहार-देव कांत मिश्र 'दिव्य' - Teachers of Bihar

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Saturday 27 March 2021

देश दुनिया के पथ प्रदर्शक हमारा बिहार-देव कांत मिश्र 'दिव्य'

देश दुनिया के पथ प्रदर्शक हमारा बिहार

  दिवस मनाएँ आज हम, ले मन में विश्वास।
  प्रभु से विनती है यही, कीजै पूरी आस।।
  समृद्धि सदा बिहार की, सोचें हमसब आज।
  स्वस्थ पावन विचार से, होंगे पूरण काज।।

          बिहार दिवस का नाम सुनते ही हमारे मानस पटल पर आनंद, उल्लास और नई ऊर्जा से युक्त भाव परिलक्षित होने लगता है। इसके साथ-साथ बिहार के गौरव को निरंतर अपने सम्यक विचारों से पुष्पित पल्लवित करने वाले रहनुमाओं, इसकी माटी से अमिट प्यार रखने वाले सुहृद विशाल हृदय वाले जनों, यहाँ की वसुंधरा, संस्कृति संरक्षित रखने वाले तथा देश दुनिया में अपनी कृति तथा यश का पावन पताका फहराने वाले महानुभावों की याद आती है।
          सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बिहार के 'वैशाली' में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र (Republic) बना। यानि इसे गणतंत्र के चाक की धुरी कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। सम्पूर्ण विश्व को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाला इस पवित्र भूमि का इतिहास ईसा से 725 वर्ष पुराना है जब यहाँ लिच्छवी गणतंत्र था, जिसे वज्जिसंघ कहा जाता था। महात्मा बुद्ध भी वैशाली के इस वज्जिसंघ से काफी प्रभावित थे। जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर की यह जन्मभूमि है। एक बात दीगर है कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों के हृदय में कपिलवस्तु का नाम सुनकर जो श्रद्धा भाव पैदा होता है वही भाव जैनियों में वैशाली और कुंडग्राम से उत्पन्न होता है। सच में, धन्य है बिहार की धरती जहाँ दुनिया को एक नई रोशनी दिखाने वाले बौद्ध और जैन धर्म का यहीं पर आविर्भाव हुआ। ज्ञान मीमांसा की अनुपम भूमि बिहार सदियों से दुनिया में ज्ञान का एक सुखद एहसास करा रहा है और आशा और विश्वास है कि यह भाव सदा कायम रहे।
दिवस मनाने के कारण
बिहार दिवस हर बिहारी के सम्मान व स्वाभिमान का प्रतीक है। किसी भी दिवस के मनाने का कारण होता है। प्रत्येक वर्ष 22 मार्च के दिन को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाता है। 22अक्टूबर, 1764 को ऐतिहासिक बक्सर युद्ध हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेना, बंगाल के नवाब, अवध के नवाब और मुगल शासक साह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच लड़ा गया था। इसमें ईस्ट इंडिया कम्पनी को जीत मिली थी। बंगाल के मुगलों और नवाबों के पराजय के कारण बंगाल के मुगलों तथा नवाबों ने प्रदेशों पर नियंत्रण खो दिया और दीवानी के अनुसार ईस्ट इंडिया कम्पनी को राजस्व के संग्रह और प्रबंधन का अधिकार मिल गया। उस समय बंगाल प्रेसीडेंसी में पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का वर्तमान इलाका सम्मिलित था। 1911 ई. में किंग जॉर्ज पंचम का दिल्ली में राज्याभिषेक किया गया तथा ब्रिटिश भारत की राजधानी दिल्ली को बना दिया गया। 21 मार्च 1912 में जब थॉमस गिब्सन कारमाइकल ने बंगाल के नए गवर्नर का पद सँभाला और घोषणा की कि अगले दिन 22 मार्च को बंगाल प्रेसीडेंसी को बंगाल, उड़ीसा, बिहार और असम चार भागों में बाँटा गया। अतः उसी समय से 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। उस समय हर बिहारवासी में नवीन खुशियों का संचार हुआ। बिहार का कण-कण ढोल, नगाड़ों और गीतों से गुँजायमान हो उठा। पावन खुशी की अनुभूति हुई। 
          इसके साथ-साथ बिहार की पावन वसुंधरा को अपनी सोच से समृद्ध करने में चाणक्य, आर्यभट्ट, सुश्रुत, सम्राट अशोक, महाकवि वाल्मीकि, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह, अनुग्रह नारायण सिंहा, रामधारी सिंह दिनकर तथा उनके जैसे प्रबुद्धजनों, लोकगायकों, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, अभियंताओं, खेतिहर किसानों, वीरों, उद्योगपतियों, राजनीतिज्ञों, कवियों, शिक्षकों तथा उन तमाम लोगों का हाथ है जिन्होंने खून पसीने से, अपने अथक व अनवरत प्रयास से बिहार को समृद्ध करने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। यहाँ की लोक संस्कृति व परम्परा अत्यंत ही समृद्ध व सुन्दर है। यहाँ के लोग संकट काल में चाहे बाढ़, भूकंप या कोविड-19 (कोरोना) या कोई भी संकट हो परस्पर सहयोग से समस्या का समाधान करते हैं। कोरोना संकट काल में जिस तरह बिहारवासियों में चट्टानी एकता दिखी वह प्रशंसनीय, अविस्मरणीय व काबिले-तारीफ है।
          यहाँ की मिट्टी में एक अलग तरह की सौंधी गंध है जो अपनेपन का सुखद एहसास कराती है। यहाँ के जल और भोजन में बहुत ताकत है जो हमें सदा मजबूत बनाए रखता है। यहाँ की आबोहवा में एक विशेष गुण है जो हमें तरोताजा कायम रखती है। यही कारण है कि हम बिहारवासी मजबूती से किसी भी क्षेत्र में अपना कदम बढ़ाते हैं और सफलता के मुकाम पर पहुँचते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हम बिहारवासी किसी से भी कम नहीं है। सच में, "Bihar, showing the light of knowledge to the whole world, is no less than any one. We just need to be more diligent and energetic." वाकई पूरी दुनिया को ज्ञान व गणतंत्र का संदेश हमने ही दिया है। आर्यभट्ट का गणितीय, सुश्रुत का चिकित्सीय तथा चाणक्य का कूटनीतिज्ञ देन जगजाहिर है। नालंदा तथा विक्रमशिला विश्वविद्यालय तो हमारे ऐतिहासिक व अनुपम धरोहर हैं जहाँ देश विदेश के छात्र शिक्षा प्राप्त करने आते थे। पटना का गोलघर, गया का विष्णुपद मंदिर, तथा बोधगया पर्यटन स्थल हैं तो बाबा अजगैबीनाथ, सुलतानगंज का विश्व प्रसिद्ध श्रावण मेला देखने लायक है। मुंगेर का योग विश्वविद्यालय विश्व का पहला योग विश्वविद्यालय है जो शरीर को योग के माध्यम से स्वस्थ रखने का नियमित शिक्षा प्रदान कर रहा है। भागलपुरी तसर का तो देश विदेश में नाम है। सम्पूर्ण संसार को रोशनी दिखाने में हमने कोई भी कसर नहीं छोड़ी है। बस हमें एक खास बात जेहन में कायम रखने की जरूरत है कि हमें  सरकार के साथ- साथ परस्पर मिलकर बिहार को और समृद्ध बनाना है। मुरझाए हुए उपवन में नई बहार लाकर इसे चहुँ ओर सुगंधित करना है। इसी कामना के साथ मेरा विचार है:
            स्वस्थ बिहार, समृद्ध बिहार।
            स्वच्छ विचार, स्वप्न साकार।।
     

देव कांत मिश्र 'दिव्य' शिक्षक मध्य विद्यालय धवलपुरा,सुलतानगंज, भागलपुर






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