Tuesday, 30 March 2021
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सफल व सार्थक रहा नामांकन अभियान प्रवेशोत्सव-चंद्रशेखर प्रसाद साहु
सफल व सार्थक रहा नामांकन अभियान प्रवेशोत्सव
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के द्वारा संचालित नामांकन अभियान प्रवेशोत्सव इस बार नये रंग एवं नये मिजाज में रहा। ऐसे तो हर साल नामांकन अभियान चलाया जाता था परंतु 8 से 25 मार्च तक का यह नामांकन अभियान हर तरह से अनूठा रहा। इस अभियान को लेकर विभाग व विद्यालयों में गजब का उत्साह देखा गया। सारा तंत्र इस अभियान को सफल बनाने में जी-जान से जुटा भी। ऐसी सक्रियता भला हो भी क्यों नहीं? इस बार की चुनौती ही कुछ ऐसी थी। कोविड-19 के कारण घोषित लॉकडाउन के वजह से लगभग एक साल तक विद्यालय बंद रहे। विद्यालय बंद रहने की सूरत में विद्यालय में बच्चों के छीजन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था। प्रवासी मजदूरों के गांव लौटने से उनके बच्चों का नामांकन स्थानीय विद्यालयों में करने के लिए इस प्रकार के अभियान की दरकार भी थी। इस अभियान के तहत 6 वर्ष से अधिक उम्र के अनामांकित एवं छीजित बच्चों को विद्यालय में नामांकन का लक्ष्य रखा गया जो बहुत ही आवश्यक था और एक उम्दा एवं सराहनीय पहल भी।
नामांकन अभियान 'प्रवेशोत्सव' को सफल बनाने में शिक्षक-शिक्षिकाओं में एक प्रकार की नवीन ऊर्जा एवं उमंग देखा गया। शिक्षक-शिक्षिकाओं ने विद्यालय में बच्चों के नामांकन के लिए खूब प्रचार-प्रसार किया और पोषक क्षेत्र में भ्रमण कर अभिभावकों को जागरूक किया। कई शिक्षक- शिक्षिकाओं ने गीत-संगीत, नुक्कड़-नाटक, गाजे-बाजे के साथ विभिन्न प्रकार की गतिविधियों की सहायता से विद्यालय में नामांकन कराने के लिए बच्चों के माता-पिता को अभिप्रेरित किया। शिक्षक-शिक्षिकाओं ने नामांकन अभियान से संबंधित कई गीत बनाए और पोषक क्षेत्र में गा-गाकर सुनाया और नुक्कड़ नाटक किया। कई शिक्षकों ने ढोल, ताशा, हारमोनियम आदि पारम्परिक साज-सामानों के साथ दल बनाकर नामांकन से संबंधित गीत गाया और बच्चों का नामांकन कराने हेतु लोगों को प्रोत्साहित किया। कहीं ऑटो, ट्रैक्टर, साइकिल आदि वाहनों पर प्रवेशोत्सव का बैनर, तख्ती, स्लोगन लगाकर प्रभात फेरी निकाली गई तो कहीं हाथी-घोड़ों के साथ जागरूकता रैली निकाली गई। इतना हीं नहीं टीचर्स ऑफ बिहार से जुड़े सरकारी शिक्षकों ने प्रवेशोत्सव पर लगभग 50 कविताएँ, निबंध, आलेखों इत्यादि को टीचर्स ऑफ बिहार के माध्यम प्रकाशित करवाकर इसके माध्यम से अभिभावकों को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसका प्रभाव यह हुआ कि विद्यालयों में इस बार नया नामांकन अधिक हुआ।
'प्रवेशोत्सव' के अवसर पर कई विद्यालयों को खूब अच्छे तरीके से सजाया भी गया। नया नामांकन लेने के लिए विद्यालय परिवार में एक गज़ब तरह का जोश-खरोश देखा गया। विद्यालयों को रंग-बिरंगे गुब्बारों से सजाया गया और तोरण द्वार बनाए गए। विद्यालय भवन पर झिलमिल रोशनी वाली लड़ियों को लटकाया गया। कमरों की दीवारों व चहारदीवारों पर सुंदर-सुंदर व आकर्षक चित्र बनवाए गए। विद्यालय में रंग-बिरंगे आकर्षक रंगोलियां बनाई गयी। प्रवेश लेने वाले बच्चों को पुष्प-गुच्छ देकर स्वागत किया गया तो कहीं नव प्रवेशित बच्चों को फूलों के हार पहनाए गए। रोड़ी व चंदन का तिलक लगाया गया व उनकी आरती उतारी गई। कहीं बच्चों के बीच मिठाइयां बांटी गई तो कहीं शिक्षण सामग्री का उपहार दिया गया।
'प्रवेशोत्सव' के दौरान विद्यालयों में जश्न-ए-स्वागत का माहौल देखा गया। इससे अभिभावक भी विद्यालय की ओर आकर्षित हुए और वे अपने अनामांकित बच्चों का विद्यालय में नामांकन कराया। कई शिक्षक-शिक्षिकाओं ने साइकिल व मोटरसाइकिल से पोषक-क्षेत्र का भ्रमण किया और कई अनामांकित बच्चों को अपने वाहन पर बैठाकर विद्यालय में लाया और उनका नामांकन कराया। इन सारे प्रयासों से विद्यालयों में नया नामांकन बढ़ा और बच्चों की उपस्थिति भी बढ़ी।
इस बार यह भी देखा गया कि 'प्रवेशोत्सव' के क्रम में विद्यालय में जो भी गतिविधियां यथा- पोषक-क्षेत्र भ्रमण, जागरूकता रैली, प्रभात फेरी, गीत-संगीत व नुक्कड़ नाटक, आकर्षक साज-सजावट, रंग-बिरंगी रंगोली, भव्य स्वागत का कार्यक्रम आदि का फोटो व वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया। इससे शिक्षा के क्षेत्र में एक सकारात्मक माहौल बना और कई विद्यालय इन गतिविधियों को अपने विद्यालयों में आयोजित कर नामांकन अभियान 'प्रवेशोत्सव' को सफल एवं सार्थक बनाया। कई विद्यालयों की गतिविधियों के फोटोज एवं वीडियोज को शिक्षा विभाग के वरीय अधिकारियों ने लाइक किया और शेयर किया। इससे विद्यालयों में प्रवेश व नामांकन को लेकर भारी उत्साह का संचार हुआ और शिक्षक-शिक्षिकाओं का मान-सम्मान बढ़ा साथ ही उनका मनोबल भी ऊँचा हुआ।
कोरोना काल के बाद विद्यालयों के खुलने पर यहां छात्र-छात्राओं की उपस्थिति बढ़ी है। अभिभावकों का भी विद्यालयों के प्रति विश्वास बढ़ा है। छात्र-छात्राओं एवं उनके अभिभावकों को यह यकीन हुआ है कि विद्यालय का कोई अन्य विकल्प नहीं है। अभिभावक यह समझने लगे हैं कि पढ़ाई-लिखाई एवं अनुशासन के लिए बच्चों के लिए विद्यालय ही एकमात्र उपयुक्त संस्थान है। यही कारण है कि विद्यालयों में दोपहर का पका हुआ भोजन नहीं मिलने के बाद (पका हुआ भोजन के स्थान पर सूखा चावल मिल रहा है) भी बच्चों की उपस्थिति अंतिम घंटी तक रह रही है। यह विद्यालय की सुंदर व आंतरिक शक्ति ही है जो बच्चों और अभिभावकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है।
अब विद्यालय नए शैक्षिक सत्र के लिए पूरी तरह तैयार है। बच्चों के लिए कैच अप कोर्स की तैयारी भी पूरी कर ली गयी है। बच्चों के गुणवत्ता पूर्ण अधिगम के लिए विद्यालय का वातावरण सहज व अनुकूल है। शिक्षक अपना प्यार व दुलार बच्चों पर लुटाने के लिए लालायित हैं। नए शैक्षिक सत्र में विद्यालय की बगिया अवश्य ही बच्चों की किलकारी, चहक व महक से सुवासित व कुसुमित होगी।
चंद्रशेखर प्रसाद साहु
कन्या मध्य विद्यालय कुटुंबा
औरंगाबाद, बिहार
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